साधना सिंह
गोरखपुर
दिन भर मेहमानों की आवाजाही , ऊपर से रात से तबीयत खराब थी भारती की.. फिर भी कोई कोताही नही बरती खातिरदारी मे । सुबह का नाश्ता, दोपहर का लंच और रात कौ रात का डिनर.. कमर मानो टुट ही गयी थी । आखिरकार मेहमान गये तो सास को खाना देकर थोडी देर पीठ सीधी करने कमरे मे गयी तो बच्चो ने पुरा घर बिखेरा था ..एक दम से झल्ला उठी पर क्या करती .. रूम ठीक किया और आँखे बंद करके लेट गयी । पतिदेव अभी आये नहीं थे । आज जाने क्यों सोच का सिरा अतीत की तरफ भाग रहा था ।
12 साल पहले शादी करके छोटी उम्र मे बड़े -बडे़ अरमान लेकर इस संयुक्त परिवार मे आयी थी । सबका दिल जीतने की उम्मीद से पर यो इतना आसान कहाँ होता है ये बाद मे समझ आया । जितना करती लोग थोडी और उम्मीद कर लेते ये सोचे बिना कि उसके भी तो कुछ अरमान है। सारा रसोई उसके उपर छोड दी गयी.. मायके मे कभी उसने इतना काम किया नही था जाहिर है कुछ गलतियाँ हो ही जाती जैसे नमक का डब्बा टाइट नहीं बंद हुआ या चीनी चायपत्ती का डब्बा स्लैब पर छुट गया । वही जेठानी को लिये बडी बात थी । रोटी तो उससे कभी अच्छी बन ही नहीं पायी ।
मजे की बात ये थी कि रोटियाँ उससे अच्छे नही बनती थी फिर भी उसे ही बनानी थी बुराई सुन सुन कर भी । कोफ्त मे पति से कुछ कहती तो अलग लडाई हो जाती कि बाहर से आता हूं ये सब सुनने । रोज रोज कलह बढती रही .. बात बहुत साधारण होती थी जैसे दाल मे छौंक लगाना भुल गयी या चटनी पीसना भुल गयी ।जिस दिन पति के साथ बाहर चली जाती थी उस दिन तो उनका मुंह ही सीधा नहीं रहता था। जेठानी को जैसे उससे और उसकी हर बात से समस्या थी और सास की कोई अपनी राय ही नही थी कि भारती को भावनात्मक सहयोग ही दे देती । पति से कहो तो बंटवारे पर उतर जाते थे और भारती ये कलंक नही लेना चाहती थी । बेचारी मायूस हो जाती कि अच्छा था शादी ही नहीं करती.. क्या है औरत की जिंदगी… दिन भर इनके लिये करो, फिर भी किसी का मुंह सीधा नहीं.. कोई ये भी नही पुछता कि तुमने खाया या नहीं.. या तुम कैसी हो ? क्या यही होता है परिवार.. संयुक्त परिवार?
इसी तरह दिन गुजर रहे थे कि पता चला वो माँ बनने वाली थी । जब प्रेगनेंसी के 6 महीने बीते तो एक दिन उसे चक्कर आ गया वो बाथरूम मे गिर पडी .जाँच करने पर पता चला कि बीपी बहुत हाई था । डाक्टर ने कम्पलीट बेड रेस्ट बोल दिया । पति बहुत ख्याल रखने लगे.. और जब पति ख्याल रखने लगता है तो परिवार वाले भी इज्जत देने ही लगते हैं । सास भी अपने आने वाले वंश के लिये भारती का ख्याल रखने लगी तब अब तक पुरे घर पर एकछत्र राज करने वाली जेठानी की अकड़ थोडी कम हुई पर जैसे उनको भारती के आने वाले बच्चे और भारती के सेहत से कोई सरोकार नहीं था ।
फिर एक दिन नये मेहमान गोद मे आया तो कुछ दिन के लिये घर मे सकारात्मक माहौल आ गया । भारती कुछ दिनो के लिये जैसे सारा तनाव, सारा दवाब भुल गयी थी बच्चे के एक मुस्कान मे । सास तो खैर अपने सेहत से लाचार थी पर जेठानी ने कोई सहयोग नही दिया बच्चे के लालन पालन मे पर भारती को कोई परवाह नहीं था.. बहुत खुश थी वो अपने बच्चे के साथ । धीरे-धीरे उसके समझ मे आने लगा कि जब उसे उसी घर मे उनके साथ ही रहना है तो उसे अपनी बात रखनी ही होगी.. आखिर कब तक वो इस तरह तनाव मे रहेगी ।
बच्चा तीन महीने का हो गया था । नया साल आ रहा था। नये साल की पार्टी मे सब लोग बाहर इन्जॉय करने गये.. रात मे वापसी पर भारती बच्चे को लेकर सीधे कमरे मे चली गयी उसके दिमाग से ये बात निकल गयी कि दुध फ्रिज मे रखना है । जाडे का दिन था दुध बाहर भी रह गया तो कोई खराब नहीं होता पर जेठानी को इस बात का बतंगड बनाने का मौका नही खोना था । अगले दिन सास के कमरे मे पंचायत लग गयी.. जैसे कोई बडी गलती कर दी हो.. सास भी बडी बहू के हाँ मे हाँ मिलाने लगी । बहुत सालों से खुद पर संयम रखने वाली भारती ने बडे संयमित लहजे मे कहा कि -‘क्या हुआ अगर एक दिन वो दुध रखना भुल गयी.. आप लोग भी तो रख सकती थी । अगर घर मे चार लोग है और चापो लोग स्वस्थ्य है तो घर का काम एक की ही जिम्मेदारी नहीं । ‘ और वो कमरे आगयी । जब ये बात जेठ को पता चली तो उन्होंने भी भारती का साथ दिया कि बात सही है सबकी जिम्मेदारी है घर सम्भालना फिर उसका छोटा बच्चा भी है ।
उस दिन भारती ने तय किया कि अब वो अपने सुख, अपने खुशी से समझौता नहीं करेगी । अपनी बात, अपनी इक्छाएं वो सबके सामने जरूर रखेगी । अगले दिन जब वो सोकर उठी तो नये साल का नया सबेरा नयी रौशनी के साथ उसके कमरे के खिडकी से उतर रहा था और वो मुस्करा उठी ।
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बहुत ही खूबसूरती से लिखी गई कहानी घर घर की!