स्त्री विमर्श का दूसरा पहलू

एक तरफ समाज की यह बिडम्बना है …!जहाँ दहेज जैसे समस्याओं को लेकर , ससुराल वालों के द्वारा , तरह तरह से महिलाएं घरेलू हिंसा की शिकार हो रही हैं …….!.सिसकती है उनकी जिन्दगी ….!.और कभी कभी तो क्रूरता इतनी चरम पर होतीं है , कि छिन जाती है स्वतंत्रता और सरल भावनाओं के साथ साथ उनकी जिन्दगी भी ….! कड़े कानून बने हैं , फिर भी नहीं रुक रहा है ..! स्त्रियों के साथ क्रूरता बढता ही जा रहा है …! बढता जा रहा है उनके साथ दिनोदिन अत्याचार…….!. नहीं सुरक्षित हैं उनके अधिकार……..!.चाहे जितना भी नारी शक्तिकरण की बातें क्यों न हम कर ले……..!चाहे जितने भी कानून क्यों न बने !
वहीं समाज का एक दूसरा सत्य पहलू यह भी है कि , बहुओं के द्वारा भी उनके ससुराल वाले अत्यंत पीडित हैं ..! जिसपर ध्यान कम ही लोगों का जा पाता है…. … !जहाँ महिलाएं अपने मिले हुए अधिकारों का समूचित दुरूपयोग कर रही हैं…….! जो कानूनी हथियार उनकी सुरक्षा के लिए बने होते हैं , उसे वह बेकसूर ससुराल वालों के खिलाफ धडल्ले से इस्तेमाल कर रही हैं ..!.झूठा मुकदमा दर्ज कराकर , धज्जियां उड़ा रही हैं ससुराल वालों की इज्जत प्रतिष्ठा की…….! शायद ऐसी ही स्त्रियों के लिए महाकवि तुलसीदास ने लिखा होगा …!
ढोल गंवार शुद्र पशु नारी ]
ये सब तारन के अधिकारी ]]


ऐसी ही स्त्रियों की वजह से ,समस्त स्त्री जाति को प्रतारणा सहनी पडती है !
कुछ के तो घर टूट जाते हैं !
और कुछ लोग घर न टूटे , इस डर से अपनी प्रतिष्ठा बचाने के लिए अपनी बहुओं के प्रत्येक मांग को मानने को मजबूर हो जाते हैं !
इसमें सीधे साधे , शरीफ और संस्कारी लडके अपनी माँ , बहन और पत्नी के बीच पिस से जाते हैं ..! और सबसे मजबूरी उनकी यह होती है , कि वो अपने दुखों की गाथा किसी से सुना भी नहीं सकते ..! क्यों कि पुरूष जो हैं …..!सबल हैं …!नहीं रोते वो …!.कौन सुनेगा उनकी दुखों की गाथा ….? कौन समझेगा उनके दुविधाओं की परिभाषा ?
माँ और पत्नी दोनों ही उनकी अति प्रिय होती हैं..! किसी एक को भी छोडना उन्हें अधूरा कर देता है ….!.यदि लडके के माता पिता समझदार एवं सामर्थ्यवान होते हैं , तो ऐसी स्थिति में दे देते हैं अपने अरमानों की बलि…… ! कर देते हैं अलग अपने कलेजे के टुकड़े को ..!.टूट जाता है घर , चकनाचूर हो जाता है हॄदय माता पिता का !
कुछ महिलाओं का तो मुकदमा करने का उद्देश्य ही ससुराल वालों को डरा धमाका कर धन लेने का होता है ..! जिसमें उनके माता पिता का सहयोग होता है…! वो लोग अपनी बेटियों का इस्तेमाल सोने के अंडे देने वाली मुर्गी की तरह करते हैं , और समाज का सहनुभुति भी प्राप्त कर लेते हैं !
चूंकि बेटे वाले हैं तो समाज की निगाहें भी उनमें ही दोष ढूढती है …! सहानुभूति तो बेटी वालों को प्राप्त होती है …….!ऊपर से कानून का भय अलग !
क्यों बनती हैं महिलाएं नाइका से खलनायिका ?
क्यों करती हैं विध्वंस ?
क्यों नहीं बहू बेटी बन पाती ?
क्यों नहीं अपना पाती ससुराल के सभी रिश्तों को ?
क्यों बनती है घरों को तोड़ने का कारण ?
क्यों नहीं छोड़ पाती ईर्ष्या द्वेष जैसे शत्रुओं को ?
क्यों सिर्फअधिकारो का भान रहता है और कर्तव्यों का नहीं ?
नारी तुम शक्ति हो , सॄजन हो पूजनीय हो , सहनशील हो मत छोडों ईश्वर के द्वारा प्राप्त अपने मूल गुणों को ……!.नहीं है तुम्हारे जितना सहनशक्ति पुरुषों में……!.नहीं कर सकते तुम्हारे जितना त्याग……..! नहीं दे पाएंगे वो पीढी दर पीढी वो संस्कार जो तुम्हारे धरोहर हैं…..! नहीं चल पाएगी सॄष्टि तुम बिन…….! नहीं सुरक्षित रह पाएगा सॄष्टि का सौन्दर्य तुम बिन…….!मत छोडो अपनी संस्कृति और सभ्यता…!
माना कि अबतक तुम्हारे साथ नाइन्साफी होती रही है …….!.बहुत सहा है तुमने ….!..बहुत दिया है तुमनें ……! सींचा है तुमने निस्वार्थ भाव से परिवार , समाज , सम्पूर्ण सॄष्टि को मान रहे हैं अब सब …!… अब समाज की विचारधाराएं बदल रही है ..! तुम भी पूर्वाग्रहों से ग्रसित मत हो……! मत लो बदला ….!.नहीं तो , रुक जाएगा सम्पूर्ण जगत ……..!.तबाही आ जाएगी …..! विनाश हो जाएगा सम्पूर्ण सॄष्टि का !
महाकवि जयशंकर प्रशाद ने तुम्हारे लिए कितनी सुन्दर पंक्तियों लिखी हैं
नारी तुम केवल श्रद्धा हो , विश्वास रजत नभ पग तल में
पीयूष श्रोत सी बहा करो , जीवन के सुन्दर समतल में ]]

किरण सिंह
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