– श्री रवि शंकर ने आध्यात्म की कमी को आत्महत्या का कारण बताया है | यह वक्तव्य उन्होंने चाहे जिस सन्दर्भ में दिया हो
पर इससे इस विषय पर वाद विवाद जरूर आरम्भ हो गया है की लोग आत्महत्या क्यों करते हैं ? अपने जीवन को स्वयं समाप्त कर देना आसन नहीं है
| फिर भी लोग ऐसा निर्णय लेते हैं उसके पीछे बहुत सारी मानसिक वजहें रहती हैं | आत्महत्या
किसी भी कारण से की जाए वो है बहुत दुखद और उससे भी ज्यादा दुखद है की उनके पीछे
छूटने वाले उनके प्रियजन जीवन भर उसे न
बचा सकने के अपराध बोध व् उसने ऐसा क्यों किया के प्रश्न के साथ जीते हैं | मनोविशेषज्ञों
की माने तो आत्महत्या के पीछे ६ मुख्य कारण होते हैं |
होता है | जहाँ यह लगने लगे अब कुछ भी ठीक नहीं हो सकता | तब सारी आशाएं टूट जाती
हैं | कुछ भी अच्छा न लगने से शुरू हुआ अवसाद जब इस सीमा पर पहुँच जाए की मेरे
बिना मेरे अपनों का जीवन ज्यादा बेहतर होगा | तब व्यक्ति अपने को अपने के दुःख का
अपराधी मानने लगता है | ऐसे व्यक्ति बार – बार अपने आस – पास वालों से आत्महत्या
से सम्बंधित अपने विचारों को बताते हैं , जिन्हें लोग नज़र अंदाज कर देते हैं | एक
६ साल की बच्ची ट्रेन के आगे कूद गयी | उसने अपने नोट में लिखा – वो अपनि माँ के
साथ रहना चाहती है जो उसे छोड़ कर भगवान् के पास चली गयी है | अवसाद केवल निराश
लोगों को ही नहीं बल्कि अपनी मोनोटोनस जिंदगी से ऊबे लोगों को भी हो जाता है |
मशहूर अभिनेत्री दीपिका पादुकोण भी अवसाद का शिकार रह चुकी हैं | उनके चलाये हुए
कैम्पेन में कई मशहूर हस्तियों ने स्वीकार किया की वो जीवन में कभी न कभी अवसाद का
शिकार रह चुके हैं | क्योंकि अवसाद का
इलाज़ है | इसलिए जरूरी है की लोग अपने आस – पास नज़र रखे की कहीं कोई उनका परिचित
चुपके – चुपके आत्महत्या की योजना तो नहीं बना रहा है |
मनोरोग होते हैं जिसमें Schizophrenia प्रमुख
है | इनको पहचानना और भी मुश्किल है | क्योंकि ये कभी नहीं कहते की अंदर ही अंदर
इनके मन में खुद को मारने के ख्याल हावी हो रहे है | और उसका शोर इतना तेज़ है की
इन्हें बाहर की हंसी – ख़ुशी की कोई आवाजें सुनाई ही नहीं दे रहीं हैं | हालांकि ये
1 % ही होते हैं परन्तु इनकी आत्मघाती प्रवत्ति बहुत ज्यादा होती है | इसका भी
इलाज़ है |” अपने को खत्म कर लो “की आवाजे जो इन्हें अपने अंदर सुनाई देती है जिसे
वो दोस्तों परिचितों से छुपाये रहते हैं इलाज़ के दौरान स्वीकार कर लेते हैं |
हालांकि अगर रोग बढ़ गया है तो Schizophrenics तो
इन्हें अस्पताल में भारती करना पड़ता है | यह तब तक होता है , जब तक उन्हें ये शोर
सुनाई देना बंद न हो जाए |
अंतर्गत लिया जाता है | बाहर से शांत नज़र आने वाले ये व्यक्ति अपने जीवन के किसी
वाकये से बेहद शर्म महसूस कर रहे होते हैं
| जब पश्चाताप बढ़ जाता है तो ये ये घातक कदम उठा लेते हैं | माता – पिता के डांटने से बच्चों द्वारा की
गयी आत्महत्या इसी श्रेणी में आती है | इम्पल्सिव होने के बावजूद अगर कोई ऐसा कदम
उठाने का प्रयास करता है तो वो बार – बार ऐसा कदम उठाएगा ये नहीं कहा जा सकता | यहाँ
दवाइयों व् अस्पताल के स्थान पर कारण को दूर करने का प्रयास करना चाहिए |
कई बार दूसरों को अपनी आशांति से अवगत काराने के लिए उठाया गया कदम भी होती है |
ये लोग वास्तव में मरना नहीं चाहते हैं | बस चाहते हैं की दूसरा उनकी बात या तकलीफ
को समझे | इस कारण ये आत्मघाती कदम उठाते हैं | कई बार ये खुद भी नहीं जानते की
इससे इनकी मृत्यु भी हो सकती है | उन्हें विश्वास होता है की अगला उन्हें बचा लेगा
| जैसे एक पति – पत्नी के झगड़े में पति ने कई की गोलियां खायी , तैश में पत्नी ने भी बची हुई
गोलियां खा लीं | मृत्यु नहीं हुई पर गोलियों के साइड इफ़ेक्ट से दोनों की
मांसपेशियां अकड गयी व् दोनों कई दिन तक बेड
रिडेन हो गए | दोनों ने स्वीकार किया की उनका उदेश्य मात्र अपनी तकलीफ समझाना था |
इन परिस्तिथियों को रोक पाना मुश्किल है | यहाँ स्वविवेक ही काम आता है |कई बार यह तात्कालिक निर्णय भी होता है | केवल कुछ समय टलने से आत्महत्या का विचार हट सकता है |
के कई बार दार्शनिक कारण भी होते है | जहाँ वो व्यक्ति जो टर्मिनल बिमारी से जूझ
रहे हों , मृत्यु को चुनते है | न उन्हें अवसाद होता है , न मनोरोग न वो हेल्प के
लिए चिल्लाते हैं | उन्हें पता होता है की उनकी बीमारी का कोई इलाज़ नहीं है | अपनी
शारीरिक समस्याओं का समाधान उन्हें केवल मृत्यु में दिखाई देता है , जो धीरे –
धीरे उनकी और बढ़ रही होती है बस वो उसकी गति तवरित करना चाहते हैं | विदेशों में
अस्पतालों में ऐसे टर्मीनली इल लोगों के लिए काउंसलर’स होते हैं | जो उन्हें जीवन
क्ले आखिरी दिनों को शांति के साथ जीने में मदद करते हैं | हमारे यहाँ अभी ऐसा कोई
प्रावधान नहीं है |
वर्ग की आत्महत्याओं में देखने को मिलता है | ऐसी ही एक स्त्री नियाग्रा फाल के
पास रेलिंग पर चढ़ गयी | लोग उसको बचने के स्थान पर इस रोमांचक दृश्य को कैमरे में
कैद करनेमें लग गए | जब तक पुलिस की गाडी आती उसकी जीवन लीला समाप्त हो चुकी थी | यहाँ
शिक्षा , परिजनों का साथ व् वातावरण बदलाव बहुत काम आता है |
आत्महत्या का कारण चाहें जो हो , पर मृत्यु किसी समस्या का
समाधान नहीं है | आत्महत्या करने वाले भले ही मृत्यु में अपनी समस्या का हल ढूढे परन्तु वह अपने पीछे अपने
परिजनों को जीवन भर के लिए अपराधबोध , गुस्से व् हीनता बोध में छोड़ जाते हैं |बेहतर
है कि हम ऐसे लोगों को पहचाने जो आत्महत्या कर सकते हैं | उन पर नज़र रखे व् उन्हें
भावनात्मक सहारा दें | “ जीवन अनमोल है “ इसे किसी को यूँही नष्ट न करने दें | और
जैसा की श्री – श्री रवि शंकर ने कहा आध्यात्मिक शिक्षा की जरूरत है | ये समझने की
जरूरत है की सुख व् दुःख जीवन के अभिन्न अंग हैं | ये चक्र सबके जीवन में है |
किसी भी परिस्तिथि में टूटने के स्थान पर आशा की ज्योति जलाई रखनी चाहिए |
वंदना बाजपेयी