दफ्तर से लौटते समय सुरेश बाबू ने स्कूटर धीमी कर के देखा , हाँ ! ये सोमेश जी ही थे | अब ऐसा क्या हुआ जो ये यहाँ आ गए | ये तो बहुत ख़ुशी या गम में ही पीते थे | चलो पूंछते हैं , साथ तो देना बनता है , सोंचते हुए सुरेश बाबू ने स्कूटर किनारे लगा दी और पहुँच गए सोमेश जी का साथ देने | कुर्सी खिसका कर बैठते ही प्रश्न दागा ,” क्या रे सोमेश अब आज क्या हुआ ?
सोमेश ने एक बड़ा सा घूँट गटकते हुए कहा , ” कुछ न पूंछो , ?ये औरतें न हों न दो दुनिया का कोई मर्द शराब खाने की और रुख न करे | तुम्हारी भाभी हैं न, उन्ही को देखो ?
अब ऐसा क्या कर दिया भाभी ने , सुरेश जी रहस्य से पर्दा उठाने को बेताब हो गए |
बहुत मुँह खुल गया है | मायके में किसी की शादी पड़ रही है | |
भाभी ऐसी साडी पहनेंगी , दीदी ऐसी साडी , मुझे भी चाहिए | जब मैंने असमर्थता जाहिर की तो मुँह बना कर बोली ठीक है तुम्हारी औकात नहीं है खरीदने की तो अब नहीं कहूँगी |
भाभी ऐसी साडी पहनेंगी , दीदी ऐसी साडी , मुझे भी चाहिए | जब मैंने असमर्थता जाहिर की तो मुँह बना कर बोली ठीक है तुम्हारी औकात नहीं है खरीदने की तो अब नहीं कहूँगी |
और तुमने सुन लिया ,” सुरेश जी ने आश्चर्य और क्रोध मिश्रित भाव से पूंछा ?
सोमेश जी मुँह बनाते हुए बोले ,” सुन कैसे लेता , एक के बदले हज़ार सुनाई | |सारी पुरानी बातें दोहरा दी |जो हमेशा सुनाता रहता था | बाप के पास था ही क्या , यूँ ही अपनी गंवार बेटी को मेरे पल्लू में बाँध दिया , ढंग का स्कूटर तक नहीं दिया |देते भी कैसे औकात ही नहीं थी |
सुरेश : ओह ! तब तो भाभी जी भी आहत हो कर यहीं कहीं कोई प्याला गुटक रहीं होंगी |
सोमेश : अरे नहीं ! दिन भर ओंधे मुँह पड़ी रोती रहेगी | फिर रात को मेरी पसंद की मटर – पनीर की सब्जी बनाएगी , शयद वो नीली वाली नाईटी भी पहन लें ( कहते हुए सोमेश जी ने बायीं आँख दबा दी )
सुरेश : अच्छा ! ऐसा ?
सोमेश : और नहीं तो क्या , बाप ने पैसे बचाने के चक्कर में ज्यादा पढाया नहीं , दहेज़ और पढ़ाई डबल खर्चा जो होता | जो थोडा बहुत पढ़ा था वो भी बच्चों के पोतड़े बदलते – बदलते उड़ गया | ये औरतें भी न ऐवेई भाव खाती हैं | अब मुझ से झगड़ कर कहाँ जायेगी | ” औकात ‘ क्या है उसकी ?
वंदना बाजपेयी
मर्दो किसोच कोबहुत ही खूबसूरती से बताया है आपने। सच मे आज का पढ़ा लिखा पुरुष भी ऐसा ही सोचता है।
धन्यवाद