क्षमा करना किसी
कैदी को आज़ाद करना है , और ये समझना है की वो कैदी आप खुद हैं – लुईस .बी .
सेमेडेस
कैदी को आज़ाद करना है , और ये समझना है की वो कैदी आप खुद हैं – लुईस .बी .
सेमेडेस
मदर्स डे आने वाला है | ठीक एक महीने बाद
फादर्स डे है | गर्मी की छुट्टियों में आने वाले ये दिन बच्चों , खासकर छोटे
बच्चों के लिए बहुत स्पेशल होते है | बच्चे अपने पेरेंट्स के लिए गिफ्ट्स ,
ग्रीटिंग कार्ड्स वैगैरह बड़े जतन से बनाते
हैं | और क्यों न करें जब पेरेंट्स होते ही इतने स्पेशल हैं | सोशल मीडिया हो ,
प्रिंट मीडिया हो , या आम महफ़िल हर तरफ माता – पिता के त्याग और निस्वार्थ प्रेम
की बात हो रही है | फिर भारतीय संस्कृति में तो माता पिता का दर्जा भगवान् से भी
ऊँचा है | ऐसे में मेरे लेख का शीर्षक पढ़
कर आप जरूर सकते में आ गए होंगे | हो सकता है आप मुझे किसी दुष्ट बच्चे की उपाधि से भी नवाज़ दें | कैसा बच्चा है अहसान
फरमोश जो माता – पिता को माफ़ करने की बात कह रहा है | क्या जमाना आ गया है बच्चे
संस्कार हीन हो गए हैं | आप के इन आरोपों के बीच में मुझे याद आ रही है सात साल की छोटी सी बच्ची
जिसकी माँ ने पिता से झगडे के बाद फिनायल की पूरी बोतल पी ली थी | माँ हॉस्पिटल
में आई सी यू में ऑक्सीजन मास्क लगाए अपनी साँसों के लिए संघर्ष कर रही थी और मैं
अपने एक साल के छोटे भाई को गोद में लिए बाहर से टुकुर – टुकुर ताक रही थी | मुझे पहली बार अहसास हो रहा था , माँ
इतना पास हो कर भी मुझसे इतना दूर हैं | मेडिकल स्टाफ मुझे माँ के पास जाने से रोक
रहा है | मैं उन्हें छटपटाते हुए देख सकती थी पर मैं
उन्हें गले से नहीं लग सकती | मैं दूसरी तरफ देखती हूँ वहां पिताजी किसी पुलिस
वाले से बात कर रहे हैं , वो उन्हें पैसे दे रहे हैं | शायद मामला रफा – दफा करने
के लिए | (तब तो नहीं समझी थी पर आज समझती हूँ ) मेरी गोद में मेरा भाई रो रहा है
| मैं उसे चुप करा रही हूँ , वो सुसु कर देता है मैं उसके कपडे बदलती हूँ | माँ से
जिस भाई को गोद लेने पर मैं झगड़ती थी की उसे उतारों मुझे लो , आज मैं उसी भाई की
माँ बन गयी हूँ | नन्ही सी माँ | तभी पिताजी मेरी तरफ आते हैं | मेरी गोद से भाई
को छीनते हैं और मेरी बांह पकड़ कर घसीटते हैं चालों घर चलो ये इतना रो रहा है
अस्पताल की शांति भंग कर रहा है | मैं जाने से इनकार करती हूँ | पिताजी मुझे
घसीटते हैं | मैं माँ – माँ चिल्लाती हूँ | पिताजी मुझे एक थप्पड़ मारते हैं ,” मत
कर माँ – माँ , बहुत घटिया औरत है तेरी माँ , मरने चल दी , अरे मेरी नौकरी चली जाती….
सुसाइड करेंगी , नीच औरत | पिताजी अनवरत माँ को गालियाँ दिए जारहे हैं | इस बीच
मैं पीछे मुड – मुड़ कर माँ को ढूंढती हूँ | मैं
फिर माँ चिल्लाती हूँ | पिताजी मेरे बाल नोचते हैं ,” नाम न ले उस घटिया
औरत का | पर माँ को ऐसी हालत में अस्पताल में अकेले छोड़ कर जाना मुझे गंवारा नहीं
है मैं अनवरत रो रही हूँ व् मार खाते हुए भी फिर – फिर पिताजी की बांह पकड कर कहीं
रहीं हूँ ,” पिताजी माँ कब लौटेंगी | जितनी बार मैं माँ शाद कहती हूँ उतनी बार
पिताजी मुझे मारते हैं | अपनी माँ को मरणासन्न हालत में छोड़ कर पिताजी से अनवरत
माँ के लिए अपशब्द सुनने को विवश हूँ |
फादर्स डे है | गर्मी की छुट्टियों में आने वाले ये दिन बच्चों , खासकर छोटे
बच्चों के लिए बहुत स्पेशल होते है | बच्चे अपने पेरेंट्स के लिए गिफ्ट्स ,
ग्रीटिंग कार्ड्स वैगैरह बड़े जतन से बनाते
हैं | और क्यों न करें जब पेरेंट्स होते ही इतने स्पेशल हैं | सोशल मीडिया हो ,
प्रिंट मीडिया हो , या आम महफ़िल हर तरफ माता – पिता के त्याग और निस्वार्थ प्रेम
की बात हो रही है | फिर भारतीय संस्कृति में तो माता पिता का दर्जा भगवान् से भी
ऊँचा है | ऐसे में मेरे लेख का शीर्षक पढ़
कर आप जरूर सकते में आ गए होंगे | हो सकता है आप मुझे किसी दुष्ट बच्चे की उपाधि से भी नवाज़ दें | कैसा बच्चा है अहसान
फरमोश जो माता – पिता को माफ़ करने की बात कह रहा है | क्या जमाना आ गया है बच्चे
संस्कार हीन हो गए हैं | आप के इन आरोपों के बीच में मुझे याद आ रही है सात साल की छोटी सी बच्ची
जिसकी माँ ने पिता से झगडे के बाद फिनायल की पूरी बोतल पी ली थी | माँ हॉस्पिटल
में आई सी यू में ऑक्सीजन मास्क लगाए अपनी साँसों के लिए संघर्ष कर रही थी और मैं
अपने एक साल के छोटे भाई को गोद में लिए बाहर से टुकुर – टुकुर ताक रही थी | मुझे पहली बार अहसास हो रहा था , माँ
इतना पास हो कर भी मुझसे इतना दूर हैं | मेडिकल स्टाफ मुझे माँ के पास जाने से रोक
रहा है | मैं उन्हें छटपटाते हुए देख सकती थी पर मैं
उन्हें गले से नहीं लग सकती | मैं दूसरी तरफ देखती हूँ वहां पिताजी किसी पुलिस
वाले से बात कर रहे हैं , वो उन्हें पैसे दे रहे हैं | शायद मामला रफा – दफा करने
के लिए | (तब तो नहीं समझी थी पर आज समझती हूँ ) मेरी गोद में मेरा भाई रो रहा है
| मैं उसे चुप करा रही हूँ , वो सुसु कर देता है मैं उसके कपडे बदलती हूँ | माँ से
जिस भाई को गोद लेने पर मैं झगड़ती थी की उसे उतारों मुझे लो , आज मैं उसी भाई की
माँ बन गयी हूँ | नन्ही सी माँ | तभी पिताजी मेरी तरफ आते हैं | मेरी गोद से भाई
को छीनते हैं और मेरी बांह पकड़ कर घसीटते हैं चालों घर चलो ये इतना रो रहा है
अस्पताल की शांति भंग कर रहा है | मैं जाने से इनकार करती हूँ | पिताजी मुझे
घसीटते हैं | मैं माँ – माँ चिल्लाती हूँ | पिताजी मुझे एक थप्पड़ मारते हैं ,” मत
कर माँ – माँ , बहुत घटिया औरत है तेरी माँ , मरने चल दी , अरे मेरी नौकरी चली जाती….
सुसाइड करेंगी , नीच औरत | पिताजी अनवरत माँ को गालियाँ दिए जारहे हैं | इस बीच
मैं पीछे मुड – मुड़ कर माँ को ढूंढती हूँ | मैं
फिर माँ चिल्लाती हूँ | पिताजी मेरे बाल नोचते हैं ,” नाम न ले उस घटिया
औरत का | पर माँ को ऐसी हालत में अस्पताल में अकेले छोड़ कर जाना मुझे गंवारा नहीं
है मैं अनवरत रो रही हूँ व् मार खाते हुए भी फिर – फिर पिताजी की बांह पकड कर कहीं
रहीं हूँ ,” पिताजी माँ कब लौटेंगी | जितनी बार मैं माँ शाद कहती हूँ उतनी बार
पिताजी मुझे मारते हैं | अपनी माँ को मरणासन्न हालत में छोड़ कर पिताजी से अनवरत
माँ के लिए अपशब्द सुनने को विवश हूँ |
दो दिन हो गए मुझे माँ के बारे में कुछ पता
नहीं | मैं पिताजी से पूंछने की हिम्मत भी नहीं कर पा रही हूँ | मैं भाई के लिए
सरेलेक बना रही हूँ , उसे सुसु ,छि- छि करा रही हूँ |पर मेरी भूख खत्म है | मैं
बार – बार सोंच रही हूँ | मेरी माँ को पिताजी ऐसे शब्द क्यों कह रहे हैं | वो तो
इतना प्यार करती हैं फिर वो घटिया औरत क्यों हैं ? माँ कह कर मैं रोती हूँ सुबकती
हूँ | ऐसा नहीं है की माता पिता का ये झगड़ा मेरे सामने पहली बार हुआ हो | दोनों
जोर – जोर से चिल्लाते थे | हमेशा मैं सहम जाती थी | माँ घंटो रोती रहती , रोती रहती पर कुछ दिन बाद सब ठीक हो जाता
| मैं फिर खेल में मगन हो जाती मुझे लगता “ happy family “ ऐसी ही होती है | पर
शायद मैं गलत थी | तीसरे दिन पिताजी माँ को घर छोड़ कर ऑफिस चले गए | माँ ने हम
दोनों को भाई – बहनों को प्यार किया | खाना बनया कपडे धोये | वैसे ही जैसे कुछ हुआ
ही न हो | मैंने माँ से वादा भी लिया की माँ हमें छोड़ कर कभी मत जाना | माँ ने
मेरे माथे को चूम कर हामी भरी | मैंने सोंचा अब सब कुछ ठीक हो गया है | हमारी
फैमली “ happy family “ हो गयी है | कुछ दिन सब ठीक रहा | फिर झगडे फिर से शुरू हो
गए | मैंने अब झगड़ों पर ध्यान देना शुरू किया | पिताजी माँ को घर में कैद रखना
चाह्ते थे | इतना इस कदर की सब्जी भी खरीदने वो अकेली नहीं जा सकती थी | मौसी –
मामा , नानी – नाना से भी वो कितनी बात कर सकती है इसके भी नियम थे | वो उनसे
कितना प्यार कर सकती हैं इसके भी नियम थे | इन नियमों को न मानने पर वो घटिया औरत की श्रेणी में आ जाती | माँ बिलकुल
वैसे ही करती जैसे पिताजी कहते तब तक घर में सब कुछ शांत रहता | पर कुछ दिनों में इस थोपी हुई जिन्दगी में उनका दम घुटने लगता
| वो बाहर जाने की ,काम करने की जिद करती रिटैलीएट करती फिर पिताजी का रूप उग्र हो
जाता वो उन्हें गन्दी औरत कहते , बाहर काम करने की इच्छा को दूसरे पुरुषों से बात
करने की इच्छा कहते | माँ जोर – जोर से रोती चिल्लाती , अपने हाथ – पाँव जमीन पर
पटकती , सर दीवार पर दे मारती , फर्श पर दीवाल पर कपड़ों पर माँ का खून लग जाता | तब – तक चीखती जब तक बेदम न हो जाती | फिर आँसूं
पोंछ कर समझौता करने को तैयार हो पिताजी
से माफ़ी मांग कर कहती ठीक है जैसा आप कहते हैं वैसा ही होगा | फिर वो पिताजी और
दिया तथाकथित अच्छी औरत का कवच पहन लेती और मैं happy faimily और unhappy faimily की
परिभाषाओं के बीच में अटक जाती |
नहीं | मैं पिताजी से पूंछने की हिम्मत भी नहीं कर पा रही हूँ | मैं भाई के लिए
सरेलेक बना रही हूँ , उसे सुसु ,छि- छि करा रही हूँ |पर मेरी भूख खत्म है | मैं
बार – बार सोंच रही हूँ | मेरी माँ को पिताजी ऐसे शब्द क्यों कह रहे हैं | वो तो
इतना प्यार करती हैं फिर वो घटिया औरत क्यों हैं ? माँ कह कर मैं रोती हूँ सुबकती
हूँ | ऐसा नहीं है की माता पिता का ये झगड़ा मेरे सामने पहली बार हुआ हो | दोनों
जोर – जोर से चिल्लाते थे | हमेशा मैं सहम जाती थी | माँ घंटो रोती रहती , रोती रहती पर कुछ दिन बाद सब ठीक हो जाता
| मैं फिर खेल में मगन हो जाती मुझे लगता “ happy family “ ऐसी ही होती है | पर
शायद मैं गलत थी | तीसरे दिन पिताजी माँ को घर छोड़ कर ऑफिस चले गए | माँ ने हम
दोनों को भाई – बहनों को प्यार किया | खाना बनया कपडे धोये | वैसे ही जैसे कुछ हुआ
ही न हो | मैंने माँ से वादा भी लिया की माँ हमें छोड़ कर कभी मत जाना | माँ ने
मेरे माथे को चूम कर हामी भरी | मैंने सोंचा अब सब कुछ ठीक हो गया है | हमारी
फैमली “ happy family “ हो गयी है | कुछ दिन सब ठीक रहा | फिर झगडे फिर से शुरू हो
गए | मैंने अब झगड़ों पर ध्यान देना शुरू किया | पिताजी माँ को घर में कैद रखना
चाह्ते थे | इतना इस कदर की सब्जी भी खरीदने वो अकेली नहीं जा सकती थी | मौसी –
मामा , नानी – नाना से भी वो कितनी बात कर सकती है इसके भी नियम थे | वो उनसे
कितना प्यार कर सकती हैं इसके भी नियम थे | इन नियमों को न मानने पर वो घटिया औरत की श्रेणी में आ जाती | माँ बिलकुल
वैसे ही करती जैसे पिताजी कहते तब तक घर में सब कुछ शांत रहता | पर कुछ दिनों में इस थोपी हुई जिन्दगी में उनका दम घुटने लगता
| वो बाहर जाने की ,काम करने की जिद करती रिटैलीएट करती फिर पिताजी का रूप उग्र हो
जाता वो उन्हें गन्दी औरत कहते , बाहर काम करने की इच्छा को दूसरे पुरुषों से बात
करने की इच्छा कहते | माँ जोर – जोर से रोती चिल्लाती , अपने हाथ – पाँव जमीन पर
पटकती , सर दीवार पर दे मारती , फर्श पर दीवाल पर कपड़ों पर माँ का खून लग जाता | तब – तक चीखती जब तक बेदम न हो जाती | फिर आँसूं
पोंछ कर समझौता करने को तैयार हो पिताजी
से माफ़ी मांग कर कहती ठीक है जैसा आप कहते हैं वैसा ही होगा | फिर वो पिताजी और
दिया तथाकथित अच्छी औरत का कवच पहन लेती और मैं happy faimily और unhappy faimily की
परिभाषाओं के बीच में अटक जाती |
बड़े होते – होते मैंने जान लिया था की माँ उच्च
शिक्षित थी कुछ करना चाहती थी पर उन्हें दरवाजे पर सब्जी लेने का भी अधिकार नहीं
था | एक बार किसी झगडे में माँ दुखी हो कर अपना संतुलन खो कर अपना सर दरवाजे पर
पटकती जा रही थी खून बहता जा रहा था मैं बीच में कूद पड़ी | दोनों को अलग किया |
बदहवास सी माँ के एक थप्पड़ मारा की चुप हो जाओ , मत करो अपने पर अत्याचार , कोई
तुम्हारे सर में पड़े गूमड़ या खून देख कर द्रवित नहीं होने वाला है | पिताजी के
खिलाफ खुलकर माँ का समर्थन लेने पर पिताजी मुझसे नाराज़ हो गए | वो मुझे पीटने लगे
| मुझे उनसे नफरत सी हो गयी | मुझे लगने
लगा माँ तो हिम्मत नहीं करेंगीं पर मैं पढ़ – लिख कर कुछ बन कर माँ को इस नरक से
निकालूंगी | मैं जम कर पढने लगी | १० वी में मैंने १० पॉइंट हासिल किये | हालंकि अब पिताजी
का स्वाभाव थोडा बहुत बदल चुका था | पर हमारे घाव कभी न भरने वाले नासूर थे | माँ
सिर्फ और सिर्फ अतीत में जीती थीं |मेरी आशाएं उम्मीदें अभी भी कायम थी | पर
न जाने कैसे जैसे सूर्य पर ग्रहण लग जाता है , 11 वी में आते ही मेरे सपनों ,
जीवंन , कुछ बड़ा करने की इच्छा पर ग्रहण लग गया | इतने झगड़ों और स्त्री विरोधी
बयानों के बीच मैं अपनी पढ़ाई सँभालने में असफल हो गयी | मैं पढने बैठती तो वही
बातें याद आने लगती | मैं पिछड़ने लगी | पिछड़ने से मुझे भय लगने लगा की ऐसे तो मैं माँ को नहीं निकाल पाउंगी | भय के
दवाब में पढ़ाई करने से मैं और पिछड़ने लगी | मैं 11 वी में फेल हो गयी | मेरी
हिम्मत टूटने लगी | मुझे लगने लगा की माँ को तो छोड़ो मैं खुद ही इस जिंदगी से नहीं
निकल पाउंगी | यही वो समय था की मुझे माँ से भी नफ़रत होने लगी | माँ ने क्यों सही
समय पर अलग होने का निर्णय नहीं लिया | वो शिक्षित थी , वो सक्षम थी फिर क्यों वो
पिताजी के बदल जाने का इंतज़ार करती रहीं | क्यों वो समाज के दवाब में इतना ज्यादा
रहीं की उन्होंने अपनी और हम लोगों के जीवन की आहुति दे कर अपनी शादी को बचाए रखा
की समाज में उन्हें तथाकथित अच्छी औरत का दर्जा मिले | जिस माँ को न्याय दिलाने के
लिए मैं संघर्षरत थी मुझे वो भी अन्यायी लगने लगी |क्यों वो अपने दर्द बताने के बाद
हंसती मुस्कुराती पिताजी के पास चली जाती | क्यों दिन में 23 घंटे अतीत में जीने
वाली माँ पिताजी के दो शब्द प्रेम से बोल देने पर मक्खन की तरह पिघल जाती | जब
शादी बचानी ही उनकी प्राथमिकता थी तो वो रिटैलीऐट क्यों करती थी | शायद उनका अन्याय था उनकी लो सेल्फ एस्टीम | जिससे वो
सदा अनिर्णय की स्तिथि में रहीं | या उन्हें कम्फर्ट जोन से बाहर निकलने का साहस
ही नहीं किया | जो भी हो मैं अवसाद में जाने लगी | मैं दो बार और फेल हुई | मैंने घर के बाहर निकलना ,
खाना – पीना हँसना बोलना सब छोड़ दिया | मुझे अपना जीवन गहरे अन्धकार में डूबता नज़र
आने लगा | माँ और भाई मुझसे बात करना चाहते पर मैं बात करने को तैयार नहीं थी |
मैं इंटर नेट पर घंटों अपनी परिस्तिथियों
सम्बन्धी भुक्त भोगिय्यों के लेख पढ़ती | इसी में कई फॉरगिवनेस पर थे | ho’oponopono की विधि ने मुझे काफी आकर्षित किया | परन्तु
सबसे ज्यादा फायदा मुझे एक ऐसी विदेशी लड़की की सच्चाई जानने पर हुआ |
शिक्षित थी कुछ करना चाहती थी पर उन्हें दरवाजे पर सब्जी लेने का भी अधिकार नहीं
था | एक बार किसी झगडे में माँ दुखी हो कर अपना संतुलन खो कर अपना सर दरवाजे पर
पटकती जा रही थी खून बहता जा रहा था मैं बीच में कूद पड़ी | दोनों को अलग किया |
बदहवास सी माँ के एक थप्पड़ मारा की चुप हो जाओ , मत करो अपने पर अत्याचार , कोई
तुम्हारे सर में पड़े गूमड़ या खून देख कर द्रवित नहीं होने वाला है | पिताजी के
खिलाफ खुलकर माँ का समर्थन लेने पर पिताजी मुझसे नाराज़ हो गए | वो मुझे पीटने लगे
| मुझे उनसे नफरत सी हो गयी | मुझे लगने
लगा माँ तो हिम्मत नहीं करेंगीं पर मैं पढ़ – लिख कर कुछ बन कर माँ को इस नरक से
निकालूंगी | मैं जम कर पढने लगी | १० वी में मैंने १० पॉइंट हासिल किये | हालंकि अब पिताजी
का स्वाभाव थोडा बहुत बदल चुका था | पर हमारे घाव कभी न भरने वाले नासूर थे | माँ
सिर्फ और सिर्फ अतीत में जीती थीं |मेरी आशाएं उम्मीदें अभी भी कायम थी | पर
न जाने कैसे जैसे सूर्य पर ग्रहण लग जाता है , 11 वी में आते ही मेरे सपनों ,
जीवंन , कुछ बड़ा करने की इच्छा पर ग्रहण लग गया | इतने झगड़ों और स्त्री विरोधी
बयानों के बीच मैं अपनी पढ़ाई सँभालने में असफल हो गयी | मैं पढने बैठती तो वही
बातें याद आने लगती | मैं पिछड़ने लगी | पिछड़ने से मुझे भय लगने लगा की ऐसे तो मैं माँ को नहीं निकाल पाउंगी | भय के
दवाब में पढ़ाई करने से मैं और पिछड़ने लगी | मैं 11 वी में फेल हो गयी | मेरी
हिम्मत टूटने लगी | मुझे लगने लगा की माँ को तो छोड़ो मैं खुद ही इस जिंदगी से नहीं
निकल पाउंगी | यही वो समय था की मुझे माँ से भी नफ़रत होने लगी | माँ ने क्यों सही
समय पर अलग होने का निर्णय नहीं लिया | वो शिक्षित थी , वो सक्षम थी फिर क्यों वो
पिताजी के बदल जाने का इंतज़ार करती रहीं | क्यों वो समाज के दवाब में इतना ज्यादा
रहीं की उन्होंने अपनी और हम लोगों के जीवन की आहुति दे कर अपनी शादी को बचाए रखा
की समाज में उन्हें तथाकथित अच्छी औरत का दर्जा मिले | जिस माँ को न्याय दिलाने के
लिए मैं संघर्षरत थी मुझे वो भी अन्यायी लगने लगी |क्यों वो अपने दर्द बताने के बाद
हंसती मुस्कुराती पिताजी के पास चली जाती | क्यों दिन में 23 घंटे अतीत में जीने
वाली माँ पिताजी के दो शब्द प्रेम से बोल देने पर मक्खन की तरह पिघल जाती | जब
शादी बचानी ही उनकी प्राथमिकता थी तो वो रिटैलीऐट क्यों करती थी | शायद उनका अन्याय था उनकी लो सेल्फ एस्टीम | जिससे वो
सदा अनिर्णय की स्तिथि में रहीं | या उन्हें कम्फर्ट जोन से बाहर निकलने का साहस
ही नहीं किया | जो भी हो मैं अवसाद में जाने लगी | मैं दो बार और फेल हुई | मैंने घर के बाहर निकलना ,
खाना – पीना हँसना बोलना सब छोड़ दिया | मुझे अपना जीवन गहरे अन्धकार में डूबता नज़र
आने लगा | माँ और भाई मुझसे बात करना चाहते पर मैं बात करने को तैयार नहीं थी |
मैं इंटर नेट पर घंटों अपनी परिस्तिथियों
सम्बन्धी भुक्त भोगिय्यों के लेख पढ़ती | इसी में कई फॉरगिवनेस पर थे | ho’oponopono की विधि ने मुझे काफी आकर्षित किया | परन्तु
सबसे ज्यादा फायदा मुझे एक ऐसी विदेशी लड़की की सच्चाई जानने पर हुआ |
ये कहानी थी मोनिका की , जो अपने सौतेले पिता के द्वारा करीब दस साल तक सेक्सुअल अब्यूज का
शिकार होती रही | उसके पिता ने उसे तब छोड़ा जब वो इतनी बड़ी हो गयी की अगर उसके
पिता उसे हाथ लगाते तो शायद वो उन्हें मार डालती | अफ़सोस ! पिता की मार से डरी उसकी माँ सब कुछ हो जाने
देती रही | उसका शारीरिक शोषण तो बंद हो गया परन्तु अपने से घिन , अपराध बोध ,
गुस्सा , नफरत से वो बाहर ही नहीं निकल पा रही थी | मोनिका बड़ी हो कर दूसरे देश
में रहने लगी थी | वो अपने माता – पिता से फोन पर भी बात नहीं करती थी | पर उसका अतीत वो सारी भावनाएं गुस्सा नफरत , घिन अभी भी उसके साथ थे | वो एक
नार्मल जिंदगी जी पाने में असमर्थ थी | आखिरकार उसने अपने माता – पिता को माफ़ किया
उनसे फोन पर बात कर के इस बारे में बताया , उसके बाद वो उनसे मिली भी | कुछ अच्छी
यादों के साथ उसने विदा ली | धीरे – धीरे अतीत उससे पीछा छुड़ाने लगा | वर्तमान
जीने लायक होने लगा | अब वो पूरी तरह से स्वस्थ है व् एक सामान्य खुश जिंदगी जी रही
है | मोनिका की इस सच्चाई को जानने के बाद मेरे रोंगटे खड़े हो गए | मोनिका से मेरी स्तिथि बेहतर थी | मैं समझ गयी
की माफ़ किये बिना मैं जीवन में आगे नहीं बढ़ पाउंगी | एक कहावत है की “ आप जिससे
प्रेम करते है या जिससे नफरत करते हैं दोनों को कभी भूल नहीं पाते | एक को दिल से
याद करते हैं दुसरे को दिमाग से | पर दिमाग से किसी को याद करना कितना
पीड़ादायक होता है ये भुक्तभोगी ही जान सकता है | क्योंकि वो अतीत के पिंजरे में इस
कदर बंद हो जाता है की वि वहां से निकल ही नहीं सकता | यहाँ ये जानने की जरूरत है
की माफ़ आप दूसरे के लिए नहीं अपने लिए कर रहे हैं | क्योंकि इतनी नकारत्मक भावनाओं
के साथ आप भविष्य में आगे बढ़ ही नहीं सकते |
शिकार होती रही | उसके पिता ने उसे तब छोड़ा जब वो इतनी बड़ी हो गयी की अगर उसके
पिता उसे हाथ लगाते तो शायद वो उन्हें मार डालती | अफ़सोस ! पिता की मार से डरी उसकी माँ सब कुछ हो जाने
देती रही | उसका शारीरिक शोषण तो बंद हो गया परन्तु अपने से घिन , अपराध बोध ,
गुस्सा , नफरत से वो बाहर ही नहीं निकल पा रही थी | मोनिका बड़ी हो कर दूसरे देश
में रहने लगी थी | वो अपने माता – पिता से फोन पर भी बात नहीं करती थी | पर उसका अतीत वो सारी भावनाएं गुस्सा नफरत , घिन अभी भी उसके साथ थे | वो एक
नार्मल जिंदगी जी पाने में असमर्थ थी | आखिरकार उसने अपने माता – पिता को माफ़ किया
उनसे फोन पर बात कर के इस बारे में बताया , उसके बाद वो उनसे मिली भी | कुछ अच्छी
यादों के साथ उसने विदा ली | धीरे – धीरे अतीत उससे पीछा छुड़ाने लगा | वर्तमान
जीने लायक होने लगा | अब वो पूरी तरह से स्वस्थ है व् एक सामान्य खुश जिंदगी जी रही
है | मोनिका की इस सच्चाई को जानने के बाद मेरे रोंगटे खड़े हो गए | मोनिका से मेरी स्तिथि बेहतर थी | मैं समझ गयी
की माफ़ किये बिना मैं जीवन में आगे नहीं बढ़ पाउंगी | एक कहावत है की “ आप जिससे
प्रेम करते है या जिससे नफरत करते हैं दोनों को कभी भूल नहीं पाते | एक को दिल से
याद करते हैं दुसरे को दिमाग से | पर दिमाग से किसी को याद करना कितना
पीड़ादायक होता है ये भुक्तभोगी ही जान सकता है | क्योंकि वो अतीत के पिंजरे में इस
कदर बंद हो जाता है की वि वहां से निकल ही नहीं सकता | यहाँ ये जानने की जरूरत है
की माफ़ आप दूसरे के लिए नहीं अपने लिए कर रहे हैं | क्योंकि इतनी नकारत्मक भावनाओं
के साथ आप भविष्य में आगे बढ़ ही नहीं सकते |
मैंने अपने माता – पिता को माफ़ करने
का निर्णय लिया | माफ़ करने का अर्थ ये नहीं था की मैं उसी सड़ी – गली जिंदगी में
रहना चाहती थी | माफ़ करने का अर्थ ये था की मैं अब अतीत का बोझ नहीं ढोना चाहती थी
| अब मैं कमरे से बाहर निकलने लगी | ठीक से खाने – पीने लगी | मैंने फिर से पढाई
में दिल लगाना शुरू किया | आज मैं एक स्कूल में अध्यापिका हूँ | अपने अतीत से दूर
दूसरे शहर में आर्थिक रूप से स्वतंत्र एक स्वाभिमानी महिला के रूप मैंने अपने जीवन
की दूसरी पारी शुरू कर दी हैं |थोड़े ही दिन में माँ मेरे पास रहने आ जायेंगी | मैं खुश हूँ | और हर छोटी बड़ी चीज में खुशियाँ
ढूँढने का प्रयास करती हूँ |
का निर्णय लिया | माफ़ करने का अर्थ ये नहीं था की मैं उसी सड़ी – गली जिंदगी में
रहना चाहती थी | माफ़ करने का अर्थ ये था की मैं अब अतीत का बोझ नहीं ढोना चाहती थी
| अब मैं कमरे से बाहर निकलने लगी | ठीक से खाने – पीने लगी | मैंने फिर से पढाई
में दिल लगाना शुरू किया | आज मैं एक स्कूल में अध्यापिका हूँ | अपने अतीत से दूर
दूसरे शहर में आर्थिक रूप से स्वतंत्र एक स्वाभिमानी महिला के रूप मैंने अपने जीवन
की दूसरी पारी शुरू कर दी हैं |थोड़े ही दिन में माँ मेरे पास रहने आ जायेंगी | मैं खुश हूँ | और हर छोटी बड़ी चीज में खुशियाँ
ढूँढने का प्रयास करती हूँ |
एक भुक्तभोगी होने के नाते मैं
जानती हूँ की जब घाव गहरे हों तो माफ़ करना आसान नहीं होता | पर जो विधि मैंने अपनाई
मैं आप के साथ बांटना चाहती हूँ | अगर आप
भी ऐसी ही किसी समस्या से गुज़र रहे हों तो शायद माफ़ करने में आपको भी आसानी हो |
जानती हूँ की जब घाव गहरे हों तो माफ़ करना आसान नहीं होता | पर जो विधि मैंने अपनाई
मैं आप के साथ बांटना चाहती हूँ | अगर आप
भी ऐसी ही किसी समस्या से गुज़र रहे हों तो शायद माफ़ करने में आपको भी आसानी हो |
क्यों से पार देखे
जब हम गहरे दर्द में होते हैं तो हमारा पहला
प्रश्न होता है मेरे साथ की क्यों | जिसका कोई जवाब हमारे पास नहीं होता | दूसरा
क्यों समाज की तरफ से आता है | तुम ऐसी क्यों हो , पढ़ाई में क्यों पिछड़ रही हो |खाना
क्यों कम खाती हो | अगर आप लड़की हैं , कम उम्र हैं तो आपके हर अवसाद को बॉय फ्रेंड
से जोड़ कर भी क्यों उठ खड़ा हो सकता है | आपको अपने और दूसरों के इस क्यों के पार
जाना है | नो आंसर प्लीज का फार्मूला अपनाना है | क्योंकि अगर आप आगे बढना चाहते हैं तो अतीत को पूरा पीछे छोड़ना पड़ेगा | क्योंकि जब तक क्यों व् उसके उत्तर रहेंगे ,
अतीत रहेगा | याद रखिये एक योद्धा तलवार उठाते समय प्रश्नों के उत्तर नहीं देता , पूरी शिद्दत से युद्ध कर जीतने का प्रयास करता है |
प्रश्न होता है मेरे साथ की क्यों | जिसका कोई जवाब हमारे पास नहीं होता | दूसरा
क्यों समाज की तरफ से आता है | तुम ऐसी क्यों हो , पढ़ाई में क्यों पिछड़ रही हो |खाना
क्यों कम खाती हो | अगर आप लड़की हैं , कम उम्र हैं तो आपके हर अवसाद को बॉय फ्रेंड
से जोड़ कर भी क्यों उठ खड़ा हो सकता है | आपको अपने और दूसरों के इस क्यों के पार
जाना है | नो आंसर प्लीज का फार्मूला अपनाना है | क्योंकि अगर आप आगे बढना चाहते हैं तो अतीत को पूरा पीछे छोड़ना पड़ेगा | क्योंकि जब तक क्यों व् उसके उत्तर रहेंगे ,
अतीत रहेगा | याद रखिये एक योद्धा तलवार उठाते समय प्रश्नों के उत्तर नहीं देता , पूरी शिद्दत से युद्ध कर जीतने का प्रयास करता है |
सच्चाई को क़ुबूल
करिए
करिए
जब आप क्यों को नकार दे आप
का मन क्यों के पार चला जाए तब यही समय है की आप अपने बारे में बात करें | अपने सच
को उन लोगों को स्वयं बताये जो आप पर विश्वास करते हों | आपके हितैषी हों | न केवल
सच बताएं बल्कि उन भावनाओ को भी बताएं जो उस समय आप फील कर रहे थे |वो भावनाएं जो आप अभी भी ढो रहे हैं | ये जरूरी इसलिए हैं की बाहर की दुनिया में अभी भी आप happy family का नकाब ओढ़ कर चल रहे थे | जिस झूठ से सबसे ज्यादा कष्ट आपको होता है | परन्तु ये एक बहुत
कठिन काम होता है क्योंकि आपको उन सभी
भावनाओं से फिर से गुज़रना होता है |आप के हितैषी कुछ समझें या नहीं , राय दे या नहीं इसकी आप को परवाह नहीं करनी है | आप केवल अपनी नकारात्मक सोंच के पैटर्न से निकलना चाहते हैं इसलिए कह कर आप हल्का महसूस करते हैं | व् कहीं न कहीं मोरल सपोर्ट भी मिलता हैं | अपने अपराध बोध से मुक्त हो कर अगला कदम बढाने को तैयार हो जाते हैं |
राउंड दा टेबल बात कहिये
जिस व्यक्ति ने आपको लम्बे समय तक आहत किया जिसके लिए आप के मन में गुबार भरा हुआ है उससे सीधे बात करिए | कम से कम एक बार अपने को अतीत के दर्द से मुक्त करने के लिए बिना ब्लेम लगाए अपनी तकलीफों के बारे में खुल कर बात करिए | मैंने जब अपने माता –पिता के सामने
बैठ कर अपनी फीलिंग्स के बारे में बात की तो मैं लगातार रोती जा रही थी | मैंने दोनों से अलग – अलग बात की |
हालांकि वो अपना बचाव करने लगे पर उसके बाद मुझे बहुत अच्छा महसूस हुआ | एक दम
हल्का | मैंने ये बातें ब्लेम देने के स्वर में नहीं बोली थी | पर दोनों में से
कोई भी मेरी पीड़ा की जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं था | फिर भी इस वार्तालाप का
फायदा ये हुआ की मुझे उनके खासकर पिताजी
के बचपन के कुछ ऐसे दर्द पता चले जिस कारण उनका स्वाभाव मेरी माँ के प्रति ऐसा हुआ | हालांकि इससे मेरा
दर्द कम नहीं हुआ पर मुझे दर्द को “ इट्स ओके “ कहने की हिम्मत आ गयी |
का मन क्यों के पार चला जाए तब यही समय है की आप अपने बारे में बात करें | अपने सच
को उन लोगों को स्वयं बताये जो आप पर विश्वास करते हों | आपके हितैषी हों | न केवल
सच बताएं बल्कि उन भावनाओ को भी बताएं जो उस समय आप फील कर रहे थे |वो भावनाएं जो आप अभी भी ढो रहे हैं | ये जरूरी इसलिए हैं की बाहर की दुनिया में अभी भी आप happy family का नकाब ओढ़ कर चल रहे थे | जिस झूठ से सबसे ज्यादा कष्ट आपको होता है | परन्तु ये एक बहुत
कठिन काम होता है क्योंकि आपको उन सभी
भावनाओं से फिर से गुज़रना होता है |आप के हितैषी कुछ समझें या नहीं , राय दे या नहीं इसकी आप को परवाह नहीं करनी है | आप केवल अपनी नकारात्मक सोंच के पैटर्न से निकलना चाहते हैं इसलिए कह कर आप हल्का महसूस करते हैं | व् कहीं न कहीं मोरल सपोर्ट भी मिलता हैं | अपने अपराध बोध से मुक्त हो कर अगला कदम बढाने को तैयार हो जाते हैं |
राउंड दा टेबल बात कहिये
जिस व्यक्ति ने आपको लम्बे समय तक आहत किया जिसके लिए आप के मन में गुबार भरा हुआ है उससे सीधे बात करिए | कम से कम एक बार अपने को अतीत के दर्द से मुक्त करने के लिए बिना ब्लेम लगाए अपनी तकलीफों के बारे में खुल कर बात करिए | मैंने जब अपने माता –पिता के सामने
बैठ कर अपनी फीलिंग्स के बारे में बात की तो मैं लगातार रोती जा रही थी | मैंने दोनों से अलग – अलग बात की |
हालांकि वो अपना बचाव करने लगे पर उसके बाद मुझे बहुत अच्छा महसूस हुआ | एक दम
हल्का | मैंने ये बातें ब्लेम देने के स्वर में नहीं बोली थी | पर दोनों में से
कोई भी मेरी पीड़ा की जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं था | फिर भी इस वार्तालाप का
फायदा ये हुआ की मुझे उनके खासकर पिताजी
के बचपन के कुछ ऐसे दर्द पता चले जिस कारण उनका स्वाभाव मेरी माँ के प्रति ऐसा हुआ | हालांकि इससे मेरा
दर्द कम नहीं हुआ पर मुझे दर्द को “ इट्स ओके “ कहने की हिम्मत आ गयी |
फॉरगिव एंड फॉरगॉट संभव नहीं
लोग कहते हैं की फॉरगिव एंड
फॉरगॉट पर यह संभव नहीं | खासकर तब जब आपने किसी बेहद
करीबी रिश्ते में ये दर्द झेला हो | हां माफ़ करने से आप उस दर्द से अपना वर्तमान
व् भविष्य बचा सकते हैं | जब भी वो बातें याद आएँगी मन में पीड़ा होगी | पर
नकारात्मक विचार आप पर हावी नहीं होंगे | यहाँ तक की मैं तो कभी – कभी इन
परिस्तितियों पर हंसती हूँ | जिन्होंने मुझे एक समझदार इंसान बनाया है | मुझे पता
है शादी किसी परी कथा की शुरुआत नहीं हैं | मैं रिश्तों को बारीकी से परखना और हर अत्चायाचार को शुरू में ही ना कहना सीख गयी हूँ | ये समझदारी उन नकारत्मक फीलिंग्स
से सकारात्मक संज्ञान लेने के कारण हुई है |
फॉरगॉट पर यह संभव नहीं | खासकर तब जब आपने किसी बेहद
करीबी रिश्ते में ये दर्द झेला हो | हां माफ़ करने से आप उस दर्द से अपना वर्तमान
व् भविष्य बचा सकते हैं | जब भी वो बातें याद आएँगी मन में पीड़ा होगी | पर
नकारात्मक विचार आप पर हावी नहीं होंगे | यहाँ तक की मैं तो कभी – कभी इन
परिस्तितियों पर हंसती हूँ | जिन्होंने मुझे एक समझदार इंसान बनाया है | मुझे पता
है शादी किसी परी कथा की शुरुआत नहीं हैं | मैं रिश्तों को बारीकी से परखना और हर अत्चायाचार को शुरू में ही ना कहना सीख गयी हूँ | ये समझदारी उन नकारत्मक फीलिंग्स
से सकारात्मक संज्ञान लेने के कारण हुई है |
बार – बार याद रखने
की जरूरत
की जरूरत
यहाँ ये याद रखने की जरूरत है
की अगर कोई लम्बे समय तक नकारात्मक परिस्तिथियों में रहा है | तो माफ़ करने के बाद
भी समान परिस्तिथियों का जरा सा भी ट्रिगर दबने पर सभी भावनाएं दर्द वापस आ सकते
हैं | तब जरूरत है एक गहरी सांस ले कर उन्हें बाहर निकालने की | क्योंकि ये सारा
नकारात्मक कचरा एक विष है जिसे हम सहेज लेते हैं | पी लेते हैं जो शारीरिक व् मानसिक व्याधि के रूपमें सिर्फ हमें परेशान करता है | इसलिए अगर आप भी कोई जहर पिए हुए हैं तो उठिए माफ़ करिए और भविष्य की और बढ़ाइए ” अगला कदम ”
की अगर कोई लम्बे समय तक नकारात्मक परिस्तिथियों में रहा है | तो माफ़ करने के बाद
भी समान परिस्तिथियों का जरा सा भी ट्रिगर दबने पर सभी भावनाएं दर्द वापस आ सकते
हैं | तब जरूरत है एक गहरी सांस ले कर उन्हें बाहर निकालने की | क्योंकि ये सारा
नकारात्मक कचरा एक विष है जिसे हम सहेज लेते हैं | पी लेते हैं जो शारीरिक व् मानसिक व्याधि के रूपमें सिर्फ हमें परेशान करता है | इसलिए अगर आप भी कोई जहर पिए हुए हैं तो उठिए माफ़ करिए और भविष्य की और बढ़ाइए ” अगला कदम ”
** मनोवैज्ञानिक सुशील दवे के
अनुसार माफ़ करना आपको जीवन को फिर से एक नई शुरुआत करने का अवसर देता है | पर अगर आप किसी
को माफ़ नहीं कर पा रहे हैं तो आप कोई बुरे इंसान नहीं हैं | अपने को समय दीजिये | व्यस्त
रखिये | खाली बैठ कर सोंचिये नहीं तब तक जब तक इस नकारत्मकता को आप अपने नियंत्रण
में न ले लें |
अनुसार माफ़ करना आपको जीवन को फिर से एक नई शुरुआत करने का अवसर देता है | पर अगर आप किसी
को माफ़ नहीं कर पा रहे हैं तो आप कोई बुरे इंसान नहीं हैं | अपने को समय दीजिये | व्यस्त
रखिये | खाली बैठ कर सोंचिये नहीं तब तक जब तक इस नकारत्मकता को आप अपने नियंत्रण
में न ले लें |
रियल स्टोरी : इशिता
सेन , मुंबई
सेन , मुंबई
कॉपी राइटर : वंदना
बाजपेयी
बाजपेयी
अगला कदम के लिए आप अपनी या अपनों की रचनाए समस्याएं editor.atootbandhan@gmail.com या vandanabajpai5@gmail.com पर भेजें
#अगला_कदम के बारे में
हमारा जीवन अनेकों प्रकार की तकलीफों से भरा हुआ है | जब कोई तकलीफ अचानक से आती है तो लगता है काश कोई हमें इस मुसीबत से उबार ले , काश कोई रास्ता दिखा दे | परिस्तिथियों से लड़ते हुए कुछ टूट जाते हैं और कुछ अपनी समस्याओं पर कुछ हद तक काबू पा लेते हैं और दूसरों के लिए पथ प्रदर्शक भी साबित होते हैं |
जीवन की रातों से गुज़र कर ही जाना जा सकता है की एक दिया जलना ही काफी होता है , जो रास्ता दिखाता है | बाकी सबको स्वयं परिस्तिथियों से लड़ना पड़ता है | बहुत समय से इसी दिशा में कुछ करने की योजना बन रही थी | उसी का मूर्त रूप लेकर आ रहा है
” अगला कदम “
जिसके अंतर्गत हमने कैरियर , रिश्ते , स्वास्थ्य , प्रियजन की मृत्यु , पैशन , अतीत में जीने आदि विभिन्न मुद्दों को उठाने का प्रयास कर रहे हैं | हर मंगलवार और शुक्रवार को इसकी कड़ी आप अटूट बंधन ब्लॉग पर पढ़ सकते हैं | हमें ख़ुशी है की इस फोरम में हमारे साथ अपने क्षेत्र के विशेषज्ञ व् कॉपी राइटर जुड़े हैं |आशा है हमेशा की तरह आप का स्नेह व् आशीर्वाद हमें मिलेगा व् हम समस्याग्रस्त जीवन में दिया जला कर कुछ हद अँधेरा मिटाने के प्रयास में सफल होंगे
जीवन की रातों से गुज़र कर ही जाना जा सकता है की एक दिया जलना ही काफी होता है , जो रास्ता दिखाता है | बाकी सबको स्वयं परिस्तिथियों से लड़ना पड़ता है | बहुत समय से इसी दिशा में कुछ करने की योजना बन रही थी | उसी का मूर्त रूप लेकर आ रहा है
” अगला कदम “
जिसके अंतर्गत हमने कैरियर , रिश्ते , स्वास्थ्य , प्रियजन की मृत्यु , पैशन , अतीत में जीने आदि विभिन्न मुद्दों को उठाने का प्रयास कर रहे हैं | हर मंगलवार और शुक्रवार को इसकी कड़ी आप अटूट बंधन ब्लॉग पर पढ़ सकते हैं | हमें ख़ुशी है की इस फोरम में हमारे साथ अपने क्षेत्र के विशेषज्ञ व् कॉपी राइटर जुड़े हैं |आशा है हमेशा की तरह आप का स्नेह व् आशीर्वाद हमें मिलेगा व् हम समस्याग्रस्त जीवन में दिया जला कर कुछ हद अँधेरा मिटाने के प्रयास में सफल होंगे
” बदलें विचार ,बदलें दुनिया “