मदर्स डे : माँ को समर्पित कुछ भाव पुष्प ~रंगनाथ द्विवेदी




जहाँ एक तरफ माँ का प्यार अनमोल है वही हर संतान अपनी माँ के प्रति भावनाओं का समुद्र सीने में छुपाये रखती है | हमने एक आदत सी बना रखी है ” माँ से कुछ न कहने की ” खासकर पुरुष एक उम्र के बाद ” माँ मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूँ ” कह ही नहीं पाते | मदर्स डे उन भावनाओं को अभिव्यक्त करने का अवसर देता है | इसी अवसर का लाभ उठाते हुए रंगनाथ द्विवेदी जी ने माँ के प्रति कुछ भाव पुष्प अर्पित किये हैं | जिनकी सुगंध हर माँ और बच्चे को सुवासित कर देगी |








माँ की दुआ आती है
मै घंटो बतियाता हूं माँ की कब्र से,
मुझे एैसा लगता है कि जैसे——-
इस कब्र से भी मेरी माँ की दुआ आती है।
नही करती मेरी सरिके हयात भी ये यकिने मोहब्बत,
कि इस बेटे से मोहब्बत के लिये,


कब्र से बाहर निकल———-
मेरे माँ की रुह यहां आती है।
जब कभी थकन भरे ये सर मै रखता हू,
कुछ पल को आ जाती है नींद,
किसी को क्या पता?———–
कि मेरी माँ की कब्र से जन्नत की हवा आती है।
एै,रंग—-ये महज एक कब्र भर नही मेरी माँ है,
जिससे इस बेटे के लिये अब भी दुआ आती है।





ठंड मे माँ———–

जिस जगह गीला था वहाँ सोयी थी।
ठंड-दर-ठंड———
तू कितना बडा हो गया बेटे,
कि तू हफ्तो नही आता अपनी माँ के पास।
देख आज भी गीला है———
माँ का वे बीस्तर!
बस फर्क है इतना कि पहले तू भीगोता था,
अब इसलिये भीगा है रंग———-
कि माँ रात भर रोयी थी।
ठंड मे माँ—————
जिस जगह गीला था वहाँ सोयी थी।






माँ पर लघु कवितायें

१——-
मै घंटो बतियाता हूँ माँ की कब्र से,
ऐ,रंग—-ऐसा मुझे लगता है कि!
जैसे इस कब्र से भी—————
मेरे माँ की दुआ आती है।
२————–
भूखी माँ सुबह तलक—-
भूख से बिलबिलाती बेटी के लिये,
लोरी गाती रही।
पड़ोसीयो ने कहा बेटी मर गई,
ऐ,रंग—-वे इस सबसे बे-खबर!
कहके चाँद को रोटी गाती रही।
३———–
माँ—————
मै आज ढ़ेरो खाता हूँ,
पर तेरी चुपड़ी रोटी की भूख रह जाती है।
आज सब कुछ है———–
स्लिपवेल के गद्दे,एसी कमरे,
पर नींद घंटो नही आती है।
ऐ,रंग—-यादो मे!
माँ की गोद और लोरी रह जाती।
४———–
बचपन होता बचपन की चोरियाँ होती,
माँ मै चैन से सोता————–
इस पत्थर के शहर में,
गर तू होती और तेरी लोरीयाँ होती।







रंगनाथ दुबे



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