लेखिका -राधा शर्मा ( मुंबई -महाराष्ट्र )
कल रास्ते में निधि मिली | निधि उम्र ३२ साल एक घरेलू महिला व् दो बच्चों की माँ है | सामान्य रूप से शिक्षित निधि जब १० साल पूर्व गाजे –बाजे के साथ ससुराल में आई थी तब अक्सर उसे अपने पिता द्वारा दहेज़ कम देने के ताने सुनने पड़ते थे | निधि सोचती कि समय के साथ सब ठीक हो जाएगा ,वह सबकी की सेवा से सबका दिल जीतने का प्रयास करती रही |पर जब दहेज़ के ताने बर्दाश्त से बाहर हो गए तो उसने छोटे बच्चो को ट्यूशन पढ़ना शुरू किया | अपने ममतामयी व्यवहार के कारण धीरे –धीरे कई बच्चे उससे ट्यूशन पढने आने लगे |निधि खुश रहने लगी पर उसका मन तब टूट गया जब उसने अपनी सास को पड़ोसन से कहते सुना “ बहू के पिता ने तो कुछ दिया नहीं,लड़का सेत में चला गया . पर अब ये कुछ कमाने लगी है ,चलो हम यही मान लेंगे यही दहेज़ है |
हमारे समाज का कोढ़ दहेज़ न जाने कितनी लड़कियों को लील चुका है | कहीं न कहीं लड़की जन्म के समय निम्न और माध्यम वर्गीय माता –पिता के माथे पर आई चिंता की लकीरों का कारण भी यही है कि उन्हें लगता है “ बेटी हो गयी अब तो उन्हें जोड़ना ही जोड़ना है उसके लिए |
माता –पिता के मन में यह भाव रहता है कि अगर उनके पास ज्यादा पैसे होंगे तो अपनी बेटी के लिए ज्यादा दहेज़ का इंतजाम करके ज्यादा अच्छे घर में शादी कर पायेंगे |दहेज़ ही अनेकों बेमेल विवाहों की वजह बनता है जहाँ लडकियाँ केवल हाथ पीले करने के उद्देश्य से ब्याह दी जाती हैं | मानसिक शारीरिक ,वैचारिक स्तर पर हुए ये बेमेल विवाह एक पूरे परिवार को घुट –घुट कर जीने को मजबूर कर देते हैं |
इसी दहेज प्रथा महिसासुर ने एक नया रूप ले लिया है सर्विस वाली बहू को दहेज़ मानने का | अपने बेटे की शादी का कार्ड बाँटने आई मीता जी खुले आम सबसे कहती घूम रहीं हैं “ लड़की देखने –सुनने में हमें ज्यादा पसंद नहीं थी,उसके पिता की भी हैसियत कोई ख़ास नहीं थी | पर लड़की किसी कम्पनी में उच्च पद पर है | मोटी तनख्वाह है | आखिर पैसा जाएगा कहाँ ,आयेगा तो हमारे ही घर | हमारे लिए तो सर्विस वाली बहू ही दहेज़ है |ऊपर से उसके ओहदे व् रसूख की वजह से हमारे चार काम बनेगे , घर परिवार के बच्चो को नौकरी मिलने की संभावना है | वो समझो बोनस |मीता जी अपने व्यवहारिक ज्ञान पर इतरा रही थी और मैं दो दिलों के पवत्र बंधन विवाह की कूटनीतिक राजनीति को देख कर भ्रम में पड रहा था कि क्या ऐसी कमजोर नीव पर बने रिश्ते दीर्घजीवी हो सकते हैं ?
कुछ समय पहले कुछ ऐसा ही विषय टी वी के एक नाटक में देखा था | जहाँ लड़के के परिवार वाले अपने लड़के की नौकरी न करने वाली बात लड़की वालों से छुपा लेते हैं | बार – बार झूठ पर झूठ बोलते हैं कि उन्हें अपने लायक लड़के के लिए बस लायक लड़की चाहिए |दहेज़ तो एक रुपया नहीं चाहिए |दरसल उनकी नज़र लड़की की मोटी तनख्वाह वाली नौकरी पर होती है, जिसमें उन्हें अपने बेरोजगार बेटे, बेटियों की शादी व् घर की आर्थिक समस्याओं का समाधान नज़र आता है | लड़की वाले उनकी बातों और उच्च संस्कारों के झूठे ताने –बाने की गिरफ्त में आ जाते है | वो तो नाटक था पर अफ़सोस हमारे समाज में ये नाटक कोढ़ में खाज की तरह फैलता जा रहा है |
आजकल लडकियाँ तेज़ी से विकास के पथ पर हैं | उच्च शिक्षा पा कर लडकियाँ लगभग हर क्षेत्र में अपनी प्रतिभा का डंका बजा चुकी हैं | बोर्ड परीक्षाओ में लड़कियों की श्रेष्ठता काफी पहले ही सिद्ध हो चुकी है अब आई ए . एस जैसी परीक्षाओ में उन्होंने अपना परचम लहरा दिया है | ऐसे में अपने योग्य पुत्र के लिए एक उच्च शिक्षित सर्विस वाली बहू की कामना करना कोई गलत बात नहीं है | परिवार में स्त्री –पुरुष दोनों कमाए तो आर्थिक रूप से मजबूती आती है | घर सुचारू रूप से चलता है | इसमें कुछ गलत नहीं हैं | फर्क केवल भावना का है| जो लोग सर्विस वाली बहू को दहेज़ समझ कर घर लाते हैं या उसके लिए लिए झूठ बोल कर अपना स्वार्थ सिद्ध करते हैं | सर्विस वाली बहू पाने के लिए अपने घर व् संस्कारो को बढ़ा चढ़ा कर पेश करते हैं | समाज में यह कहते घूमते हैं कि “ हमारी तो बहू ही हमारा दहेज़ है | तो समझ लीजिये की उन की नीयत में खोट है |
अगर कोई ऐसा करता हैं तो जाहिर सी बात है वो लोग अपनी बहू को नोट कमाने वाली मशीन समझेंगे जो दिन भर ऑफिस से खट कर आये और घर आते ही अपनी सारी थकान भूल कर गृह कार्य दक्ष बहू की तरह सारे काम उसी प्रकार करे जैसे घर में रहने वाली बहूए करती हैं | साथ ही महीने के अंत में अपनी तनख्वाह भी घर खर्च देवर के मोबाइल व् ननद की ड्रेस की फरमाइशों को पूरा करने में लगाए | तो यह बहू को इंसान न समझने वाली बात हो गयी | ऐसे घरों में ज्यादातर बहूओं को दोहरी जिम्मेदारी निभानी पड़ती है | झूठ बोलकर की गयी शादी में हुआ धोखा जहाँ उन्हें अन्दर से तोड़ देता है वही सबको खुश रखने के चक्कर में उनका स्वास्थ्य प्रभावित होता है | ऑफिस में वो बड़ी जिम्मेदारियाँ लेने से बचती हैं और अक्सर पदोन्नति में पिछड जाती हैं | घर और बाहर दोनों मोर्चों में अपने को सिद्ध करने के असफल प्रयास में अवसाद की शिकार हो जाती हैं | इससे घर के सारे रिश्ते प्रभावित होते हैं |
सर्विस वाली बहू लाना गलत नहीं है पर उसे दहेज़ से जोड़ देना कहाँ तक न्याय संगत है ? जरूरत है समाज के सोच में परिवर्तन की कि अगर बहू घर के बाहर जा कर काम करती है तो उसके द्वारा अर्जित धन पर उसका अधिकार सुनिश्चित होना चाहिए | दोहरी जिंदगी के उसके शारीरिक और मानसिक दवाब को समझते हुए उसके साथ सहानभूतिपुर्वक व्यवहार करना चाहिए |घरेलू जिम्मेदारियों निभाने में भी घर के हर सदस्य यहाँ तक कि बेटे को भी सहयोग देना चाहिए | तभी एक स्वस्थ समाज की स्थापना हो सकती है |