हमेशा सबकी मदद करने के लिए आगे रहिये , पर खुद को पीछे मत छोड़ दीजिये – अज्ञात
माँ को हार्ट अटैक पड़ा था |
मेजर हार्ट अटैक |
वो अस्पताल के बिस्तर पर पर लेटी थी |
इतनी कमजोर इतनी लाचार मैंने उन्हें पहले कभी नहीं देखा था |
तभी डॉक्टर कमरे में आया |
माँ का चेकअप करने के बाद बोला |
इनका पेस मेकर बहुत वीक है |
माताजी आप को पहले कभी कोई अंदाजा नहीं हुआ |
माँ ,
धीमे से बोली ,”
कभी सीढियां चढ़ते हुए लगता था ,
फिर सोंचा उम्र बढ़ने का असर होगा |
या काम करते हुए थक जाती तो जरा लेट लेती |
बस ! डॉक्टर मुस्कुराया ,”
खुद के प्रति इतनी लापरवाही तभी तो आपका दिल केवल १५ % काम कर रहा है |
डॉक्टर फ़ाइल मुझे पकड़ा कर चला गया |
अरे ! निधि तू डॉक्टर की बातों में मत आना ,
मैं ठीक हूँ ,
चिंता मत कर |
माँ ने अपने चिर परिचित अंदाज़ में कहा |
और मैं याद करने लगी ,”
ये मैं ठीक हूँ “
के इतिहास को |हमेशा
से मैं माँ के मुँह से यही सुनती आ रही थी |
हम सब को बुखार आता ,
खांसी ,
जुकाम ,
मलेरिया जाने क्या – क्या होता |
माँ सब की सेवा करती ,
प्रार्थनाएं करती |
माँ को कभी बीमार पड़ते नहीं देखा |
हां ! इतना जरूर देखा की कभी सर पर पट्टी बाँध कर खाना बना रही हैं ,
पूंछने पर ,”
अरे कुछ नहीं ,
जरा सा सर दर्द हैं |
मैं ठीक हूँ |
बुखार में बर्तन माँज रही हैं और मुस्कुरा कर कह रही हैं ,
बुखार की दवा ले ली है ,
अभी उतर जाएगा ,
मैं ठीक हूँ |
गला इतना पका है की बोला नहीं जा रहा है तो इशारे से बता रही हैं अदरक की चाय ले लूँगी ,
मैं ठीक हूँ |
धीरे – धीरे हम सब पर माँ के इस मैं ठीक हूँ का असर इतना ज्यादा हो गया की हमें लगने लगा माँ को भगवान् ने किसी विशेष मिटटी से बनाया है जो वो हमेशा ही ठीक रहती हैं |
माँ अपने खाने का ध्यान नहीं रखती फिर भी वो ठीक रहती हैं ,
वो पूरी नींद सोती नहीं ,
फिर भी वो ठीक रहती है ,
वो दिन भर काम करके भी थकती नहीं ठीक रहती है |
पर डॉक्टर की फ़ाइल तो माँ के ‘मैं ठीक हूँ ‘के झूठ की पोल खोल रही थी |
हीमोग्लोबिन ,
कैल्सियम ,
कोलेस्ट्रोल ,
और हार्ट सब गड़बड़ |
मेरी आँखों में आँसू भर रहे हैं |
मैं माँ पर चिल्लाना चाहती हूँ ,”
माँ ऐसा क्यों किया ,
क्यों अपना ध्यान नहीं रहा ,
क्यों मैं ठीक हूँ का झूठ बोलती रही |
पर अचानक मेरे शब्द जैसे जम गए |
मैं भी तो यही करती हूँ |
आज मैं भी तो एक माँ हूँ |
और अपने बच्चों से ” मैं ठीक हूँ का झूठ बोलती हूँ |
माँ ,
मैं ,
अन्य महिलाएं न जाने कितने लोग ऐसा करते हैं |
नाउम्मीद करती उम्मीदें – निराशा और अवसाद के चक्रव्यूह से कैसे निकलें
ऐसे लोग जो परिवार का , और दूसरे लोगों की हर छोटी बड़ी जरूरतों का ध्यान रखते हैं | पर जब अपनी बात आती है तो पीछे हट जाते हैं |सेल्फ केयर गुनाह क्यों लगता है | बचपन से हमारे दिमाग में ये बात हावी रहती है की अपने को आगे रखना गलत है | हमेशा दूसरों को ही पहले रखना चाहिए | खुद का ख्याल रखना स्वार्थी होना है | बहुत कुछ ऐसा है जो गलत धारणाओं के कारण पनपता है | खासकर जब बात शारीरिक व् मानसिक स्वास्थ्य की हो | महिला हो या पुरुष , किसी की भी सेहत बिगडने से पूरा परिवार प्रभावित होता है | शरीर साथ नहीं देता तो कोई भी साथ नहीं देता |हालांकि मामले की तह में जाए तो मामला और अधिक गंभीर हैं जो केवल स्वास्थ्य तक जुड़ा न होकर , मी टाइम ,अपनी पसंद के कपडे ,अपनी पसंद से उठाना , बैठना , खाना – पीना आदि की लंबी फेहरिस्त तक जाता है | फिर अपने प्रति इतनी लापरवाही क्यों ? ढूँढने पर कुछ कारण समझ में आते हैं | जो मेरे साथ रहे है | शायद आप के साथ भी रहे हों |
हमें लगता है खुद का ख्याल रखने वाले स्वार्थी होते हैं
बचपन से समाज हमें ये घुट्टी पिलाता है की खुद का ख्याल रखने वाले स्वार्थी होते हैं | एक सास अपनी तारीफ़ करती हुए कह रही थीं की मैंने तो अपनी बहू को इजाज़त दे रखी है की रसोई में चाय पीते – पीते काम करो | दूसरी औरते उनकी महानता पर धन्य थी | भले ही उन की बहू को दोपहर दो बजे तक कुछ भी खाने को न मिलता हो पर वो चाय पीने के लिए स्वतंत्र है | पर वहीं बैठी 4 साल की बच्ची के दिमाग में ये आया की चाय पीना बहू की महानता को कम करता है | बड़े होकर उसने चाय भी रसोई का काम खत्म होने के बाद ही पी | अफ़सोस की वो छोटी बच्ची मैं थी | जाने अनजाने न जाने कितनी धारणाएं समाज हमारे ऊपर आरोपित कर देता है | जहाँ खुद की देखभाल करना स्वार्थी होना लगने लगता है |
कठिन रिश्ते : जब छोड़ देना साथ चलने से बेहतर लगे
हम दूसरों का ध्यान रखने के स्थान पर उसे अपने हिसाब से चलाने की कोशिश तो नहीं कर रहे ….
हमारे पास बिलकुल भी टाइम नहीं है की हम खुद को देख सकें | एक कप चाय भी शांति से पी सके | क्योंकि हमें , इसका उसका सबका ध्यान रखना है | इस हद तक की हम बीमार पड़ जाए | क्या ये सही है ? क्या वास्तव में अगला यही चाहता है की हम इस तरह से ध्यान रखे | खासकर के तब जब घर में कोई बीमार हो | ऐसे ही एक रिश्तेदार की बीमारी के समय हम सब उसका ध्यान रखने में कोई कसर नहीं रख रहे थे | हमारे पास इंस्ट्रक्श्न्स की एक लिस्ट थी जिसे उसे फॉलो करना था ताकि वो जल्दी अच्छा हो जाए | उसे कमजोरी न आये और वो जल्दी ठीक हो जाए | इसलिए उसके चलने , फिरने यहाँ तक की बोलने पर भी हम ने लगाम लगा दी | मरीज तो ठीक नहीं हो रहा था | पर हम स्ट्रेस की वजह से जरूर बीमार पड़ने लगे थे | उपाय डॉक्टर ने ही बताया | इनको बिलकुल नार्मल लाइफ जीने दीजिये | तब ये जल्दी ठीक होंगे | बॉडी अपनी रूटीन में जितनी जल्दी आती है | जल्दी हील होती है | इसका अर्थ ये कतई नहीं है की किसी की मदद नहीं करनी चाहिए | ऐसा तभी करें जब वो खुद मांगें , न की उनो अपने ऊपर निर्भर बना दे
हम जरूरत से ज्यादा केयर को प्यार समझने की भूल करते हैं
वैसों तो प्यार परिभाषाओं से परे है | परन्तु हमारे दिमाग पर फ़िल्मी प्यार हावी रहता है | हम उसी माध्यम से प्यार को समझने की और जताने की कोशिश करते हैं | चाहे वो मामला जीवन साथी का हो या बच्चों का या किसी अन्य रिश्ते का हम जरूरत से ज्यादा देखभाल को ही प्यार समझ लेते हैं | कितनी माएं हैं जो बड़े होने के बाद भी अपने बच्चों की किताबें अलमारी में जमाती हैं | जूते पॉलिश करती है | यहाँ तक की ब्रश पर टूथ पेस्ट लगा कर देती हैं | क्यों ? बच्चा खुद कर सकता है | पर नहीं ये प्यार जताने का तरीका है | धीरे – धीरे बच्चों की आदत बिगड़ जाती है | और हमारे पास अपने लिए समय सदा कम पड़ा रहता है | ब्रह्म कुमारी आश्रम की “शिवानी “ जी बताती हैं की कई माता – पिता अपने बच्चों को सुबह जगा – जगा कर इतनी आदत बिगाड़ देते हैं की वो स्वयं अलार्म सुनते ही नहीं | यहाँ तक की बच्चों के पढने के लिए विदेश चले जाने पर भी माता – पिता उन्हें फोन पर कॉल कर के जगाते हैं | इस तरह बिना जरूरत ओवरबिजी होकर हम सदा अपने लिए समय निकालने का रोना रोते रहते हैं |
हम दूसरों से अपनी देखभाल किये जाने की उम्मीद करते हैं
ऐसा नहीं है की जो लोग खुद का ख्याल न रख कर सदा दूसरों का ख्याल रखते हैं वो दुनिया से अलग अलहदा होते हैं | दरसल वो दिल के किसी कोने में ये ख्वाब पाले होते हैं की जिस तरह वो बिना कहे दूसरों का ख्याल रखते हैं दूसरे भी उनका ख्याल रखे | विशेषकर महिलाएं | वो कहती नहीं , पर उनको हमेशा ये उम्मीद रहती है किउनके पति व् बच्चे उनका उसी तरह से ख्याल रखे जैसे वो रखती हैं | पर अपने को हमेशा दूसरों से पीछे रखने की आदत के चलते कह नहीं पाती | इस “ ओपन सीक्रेट “ को जानने के बाद भी पति व् परिवार के पुरुष “ पत्नियों को समझना ब्रह्मा के बस की भी बात नहीं है “ कहकर बहाना बना देते हैं व् बच्चे अपने बचपने के कारण क्षमा कर दिए जाते हैं | जब युगों – युगों से यही चला आ रहा है तो सेल्फ़ केयर क्यों न की जाए |
बदलाव किस हद तक
हम वैसे ही लोगों को आकर्षित करते हैं
जब हम खुद मानते हैं और जताते हैं की हमारी जरूरतें दूसरों के बाद हैं | तो हमरा औरा गिवर का हो जाता है | और हमें जीवन में वैसे ही लोग मिलते जाते हैं | जो हमसे ले तो लेते हैं पर बात जब देने की आती है तो मुकर जाते हैं | धोखा , एक और धोखा , हम अपने धोखों की संख्या गिनने में लगे रहते हैं या बुराई करने में | हमने तो उसके साथ ये ये किया और उसने हमारे साथ वो वो नहीं किया | लो सेल्फ एस्टीम वाली महिलाओं के पास ऐसे किस्सों की भरमार होती हैं | क्यों हमने पहले खुद का ध्यान नहीं रहा | और अपनी जरूरत पूरी करने के बाद मदद की | वो कैसे जानेगा की हम हमारे पास जितना है वह सब दे रहे हैं | और अगर वह पूर्णतया स्वार्थी भी है तो भी हम उसको दोष देने के स्थान पर खुद को सुधारें तो बेहतर हैं | रुपया , पैसा , समय , श्रम अगर खुद की आवश्यकताओं को पूरा करने के बाद करें तो कोई शिकायत ही नहीं रह जायेगी |
कैसे करे सेल्फ केयर
टाइटन रागा का एक बहुत ही खूबसूरत सा विज्ञापन आता है
“ क्योंकि माँ बनना सैक्रीफाइस नहीं है “
ये सब पढने के बाद अगर आप को सेल्फ केयर का महत्व समझ आ गया है तो आप भी इस पर अमल करना शुरू कर दें | वैसे ये सबके लिए थोडा – थोडा अलग हो सकता है | पर कुछ मुख्य बिंदु इस प्रकार हैं ….
1 … हेल्दी डाईट
२ .. व्यायाम
३… मी टाइम
4 ..पूरी नींद
5..खुद को कुछ बेहतर करने का प्रयास
इसके अतिरिक्त आपकी एक अपनी पर्सनल लिस्ट भी हो सकती है | सबसे अलग , सबसे अलहदा |
रियल स्टोरी – नेहा सेनगुप्ता , दिल्ली कॉपी राइटर – वंदना बाजपेयी
अगला कदम के लिए आप अपनी या अपनों की रचनाए समस्याएं editor.atootbandhan@gmail.com या vandanabajpai5@gmail.com पर भेजें
#अगला_कदम के बारे में
हमारा जीवन अनेकों प्रकार की तकलीफों से भरा हुआ है | जब कोई तकलीफ अचानक से आती है तो लगता है काश कोई हमें इस मुसीबत से उबार ले , काश कोई रास्ता दिखा दे | परिस्तिथियों से लड़ते हुए कुछ टूट जाते हैं और कुछ अपनी समस्याओं पर कुछ हद तक काबू पा लेते हैं और दूसरों के लिए पथ प्रदर्शक भी साबित होते हैं |
जीवन की रातों से गुज़र कर ही जाना जा सकता है की एक दिया जलना ही काफी होता है , जो रास्ता दिखाता है | बाकी सबको स्वयं परिस्तिथियों से लड़ना पड़ता है | बहुत समय से इसी दिशा में कुछ करने की योजना बन रही थी | उसी का मूर्त रूप लेकर आ रहा है
” अगला कदम “
जिसके अंतर्गत हमने कैरियर , रिश्ते , स्वास्थ्य , प्रियजन की मृत्यु , पैशन , अतीत में जीने आदि विभिन्न मुद्दों को उठाने का प्रयास कर रहे हैं | हर मंगलवार और शुक्रवार को इसकी कड़ी आप अटूट बंधन ब्लॉग पर पढ़ सकते हैं | हमें ख़ुशी है की इस फोरम में हमारे साथ अपने क्षेत्र के विशेषज्ञ व् कॉपी राइटर जुड़े हैं |आशा है हमेशा की तरह आप का स्नेह व् आशीर्वाद हमें मिलेगा व् हम समस्याग्रस्त जीवन में दिया जला कर कुछ हद अँधेरा मिटाने के प्रयास में सफल होंगे
” बदलें विचार ,बदलें दुनिया “
बिल्कुल सही कहा आपने। हम दूसरों को खुश रखने के चक्कर मे खुद की ओर अनदेखी करते है और इस बातका जब हम एहसास होता है तब तक हमारा शरीर हमारा साथ देना छोड़ने लगता है। सुंदर प्रस्तुति।
बिल्कुल सही कहा आपने। हम दूसरों को खुश रखने के चक्कर मे खुद की ओर अनदेखी करते है और इस बातका जब हम एहसास होता है तब तक हमारा शरीर हमारा साथ देना छोड़ने लगता है। सुंदर प्रस्तुति।
सही कहा बाई आपने …हम और अक्सर महिलाएँ परिवार में अपने स्वस्थ, अपनी खुराक और व्य्याम को अंत पे रखते हैं जो की किसी भी तरह से उचित नहीं है … पहले अपने आप को देखना चाहिए तभी दूसरों को भी देखा जा सकता है …
शुक्रिया दिगंबर जी