मदर्स डे पर विशेष- प्रिय बेटे सौरभ

एक माँ का पत्र बेटे के नाम
              प्रिय बेटे सौरभ ,
                             आज तुम
पूरे एक साल के हो गए | मन भावुक है याद आता है आज ही का दिन जब ईश्वर ने तुम्हे
मेरी गोद में डाला था तब मैं तो जैसे पूर्ण हो गयी थी | जिसे पूरे नौ महीने अपने
अन्दर छुपा कर रखा , पल –पल जिसका इंतज़ार किया उसे देखना छूना कितना सुखद है | हाँ
 महसूस तो मैं तुम्हे पहले से ही कर रही थी
अपने गर्भ  के अन्दर | जब लगता था किसी कली
 को अपने अन्दर कैद कर लिया है | जो पल –पल
खिल रही है | मेरी जिंदगी अब तुम्हारे चारों और घूमती है , सुबह से रात तक | जानती
हो तुम्हारी नानी हँसती  हैं , कहती है ,”
ये कल की बिटिया मम्मी बनते ही बदल गयी | और क्यों न बदलूँ  , तुम हो ही इतने प्यारे | जब तुम खेलते –खेलते
आकर मुझे देख जाते हो , मुझे देखते ही किसी की गोदी से उतर कर मेरे पास आने की जिद
करते हो या मुझे किसी दूसरे बच्चे को गोद में उठाता हुआ देखकर रोने लगते हो , तो
अपने वजूद पर अभिमान हो उठता है | मेरे नन्हे से फ़रिश्ते ईश्वर तुम्हे खूब लंबी  आयु  व्
जीवन की हर ख़ुशी दें | अले ले ले … का तुमने तो रोना शुरू कर दिया … अब पत्र
लिखना बंद , मेरा बेटू  बुलाएगा तो मम्मी
सबसे पहले उसके पास जायेगी |

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प्रिय बेटे सौरभ
           आज तुम पूरे ५ साल के हो गए
| तुम्हारा स्कूल का पहला दिन | जब तुम्हे तुम्हारी टीचर मुझसे दूर कर के क्लास
में ले जा रही थी और तुम बेतरह मुझे देख कर मम्मी , मम्मी चीख रहे थे | उफ़ ! जैसे
मेरा कालेज कटा  जा रहा था | फिर भी उपर –ऊपर
से तुम्हे मोटिवेट कर रही थी ,” अरे पढ़ेगा नहीं तो ,  तो कमाएगा कैसे ? फिर  अपनी मम्मी के लिए सुंदर  साड़ी   कैसे लाएगा , क्या मैं हमेशा पापा की लायी साड़ी
 ही पहनती रहूंगी , बेटे की दी  नहीं | इतना सुनते ही तुम जैसे जिम्मेदारी  के अहसास से भर गए | थोडा सुबकते ही सही पर
आँसू पोंछ कर चुपचाप क्लास में चले गए | और मैं पूरा दिन घर में बेचैनी से
तुम्हारा इंतज़ार करती रही | कितना बुरा लग रहा था आज करीने से सजा घर | हर चीज
जहाँ की तहां | न बात – बात पर रोने चीखने की आवाज़े न खिलखिलाकर हंसने की | ये भी
कोई घर है | पर शुक्र है भगवान् का तुम्हारे  आते ही सब कुछ पहले जैसा हो गया |  हाँ  इतना फर्क जरूर आया है की अब तुम समझदार होने
लगे हो ,” तभी तो मेरे पिछले बर्थ डे पर छुप –छुप  कर मेरे लिए कार्ड बनाते रहे और सुबह मेरे उठते
ही , “ हैप्पी  बर्थडे टू यू  मम्मी कह कर गले  से लग गए | कार्ड क्या . कुछ आड़ी  तिरछी  रेखाए , पर ये कार्ड मेरे जीवन का सबसे अनमोल
तोहफा है | और उससे भी अनमोल तोहफा है बात बात पर तुम्हारा कहना ,” मम्मी आप
दुनिया की सबसे अच्छी मम्मी हो | |मेरी बगिया  के फूल जीते रहो मेरे लाल |
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प्रिय बेटे सौरभ
             आज तुम पूरे १४ साल के हो
गए | मन में अपने पौधे  को बढ़ते हुए देखने
की ख़ुशी तो है पर ये क्या … क्या हो गया मेरे लाल , क्यों  तुम मुझसे दूर जा रहे हो |  मैं तो वही हूँ , फिर क्यों तुम्हे मेरी हर बात
गलत दिखाई देती है | मैं तो पहले की ही तरह खाने –पीने सोने हर बात में तुम्हारा
ध्यान रखती हूँ | पर अब तुम्हे वो ध्यान नहीं टोंका टोंकी लगने लागा है | “ माय
लाइफ , माय  रूल्स “ का जुमला जो तुम बार –
बार उछालते हो तो सुन लो बेटा मैं ऐसे कैसे तुम्हे अपनी मर्जी चलने दूं | आखिरकार
तुम मुझसे पृथक तो नहीं हो | तुम मेरे अंश हो | और वो क्या जो तुम दोस्तों से कहते
फिरते हो ,” मम्मी चैनल “ जो दिन भर नॉन स्टॉप चलता रहता है |  अपने बच्चे का ध्यान रखना गलत है क्या ? पर
किससे कहूँ  तुम्हे तो मेरी हर बात से
शिकायत है , मेरा बनाया खाना अच्छा नहीं लगता … दोस्त की मम्मी अच्छा बनाती है ,
मैं ठीक से कपडे प्रेस नहीं करती , सलवट रह जाती है | दोस्त की मम्मी ने
साइंस  पढ़ा दी  इसलिए उसके नंबर अच्छे आ गए … और फिर उलाहना
में कहना ,” मैं कहाँ से अच्छे नम्बर लाऊं तुम्हे तो साइंस भी नहीं आती | बेटा
क्या साइंस न आना किसी माँ का इतना बड़ा दोष होता है | उस दिन जो तुम कहते –कहते
रूक गए , “ हिटलर माँ टोंका –टांकी  न करो
,” आप तो दुनिया की सबसे बुरी … “ | तुमने तो कह दिया पर मैं घंटों तकिये में
मुँह छिपाए रोती  रही | तुम्हारे पापा कह
रहे थे इस उम्र में होता है , सब ठीक हो जाएगा | हे प्रभु सब ठीक हो जाए ,मेरा
जीवन तुम्हारे इर्द –गिर्द घूमता है | तुम मुझे गलत समझो … सहन नहीं होता …
सहन नहीं होता | खूब तरक्की करो मेरे लाल |
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प्रिय बेटे सौरभ
                प्रतियोगी परीक्षाओं
में तुम्हारा चयन इतने अच्छे कॉलेज में हो गया | मन बहुत खुश है | सभी पड़ोसनें
मुझे बहुत भाग्यशाली बता रही हैं | सच में हूँ तो मैं भाग्यशाली जो तुम्हारे जैसा
बेटा पाया है | पर तुम्हे घर से दूर  भेजने
में बहुत बेचैनी है | कौन तुम्हारा ध्यान रखेगा | कौन कमरा साफ़ करेगा , कौन कपडे
धोएगा , और तुम तो हो ही लापरवाह .. खाने पीने की सुध तो रहती नहीं | यहाँ भी तो
खाना सामने पड़ा –पड़ा ठंडा होता रहता है | जब तक मैं याद न दिलाऊ , तुम खाते ही
नहीं | अब वहाँ क्या खाओगे | सोंच –सोंच कर कलेजे में हूक सी उठ रही है | तुम्हारे
पापा कह रहे थे वहीँ से कैम्पस इंटरव्यू से नौकरी मिल जायेगी | पर मिलेगी बड़े शहर
में , हमारे छोटे शहर में नहीं | तो क्या बेटा अब तुम मुझसे दूर ही रहोगे | अभी भी
पिछले दो सालों से जब तुम परीक्षा की तैयारी में लगे  हुए थे तो भी कहाँ मुझसे बात कर पाते थे | पर
मैं तुम्हे देख कर ही तसल्ली कर लेती | तुम्हारी मेहनत को देख कर  मन ही मन ढेरों दुआएं देती | पर अब सोचती हूँ उस
समय दो पल बात कर लेती | फिर संजो कर रख लेती उन्हें अपनी यादों में | हे प्रभु !
ये दिन इतनी जल्दी क्यों बीत जाते हैं |  कौन
कहता है की बेटियाँ परायी होती हैं | अब तो बेटे भी विदा किये जाते हैं .. कैरियर
के लिए | पर ये मत सोचना की मैं तुम्हे 
मोह के बंधन में डाल रही हूँ | ये तो माँ का दिल है कुछ भी बड़बड़ाता  रहता है | खूब तरक्की करो बेटा , खूब नाम कमाओ |
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प्रिय बेटे सौरभ
              आज तुम्हारी  शादी हुए
पूरा  एक साल बीत गया | आज भी याद आता है
जब बरात निकरौसी के समय सब औरतें कह रही थी ,” अभी चला लो हुकुम , अब तो बेटा बहु
का हो जाएगा , तुम्हारा नहीं रहेगा | और मैं गर्व से कहती , “ दुनिया बदल जाए पर
मेरा बेटा नहीं बदलेगा | तुमने भी तो उस समय मेरा हाथ पकड कर कहा था ,” मेरे लिए दुनिया
में सबसे पहले आप  हो माँ , बाकी सब बाद
में | पर अफ़सोस औरतें सही थीं और मैं गलत ,” तुम बदल गए हो बेटा “|  पहले तो हर छुट्टी में आ जाते थे | अब तो
पन्द्रह – पंद्रह दिन हो जाते फोन भी नहीं करते | इतने लापरवाह तो तुम कभी नहीं थे
| शिकायत नहीं  कर रही हूँ | पर तुम्हे
देखने की इच्छा तो होती है | तुम्हारा हाल जानने के लिए मन तड़प उठता है | खुश रहो
, प्रसन्न रहो बेटा , पर कभी –कभी आ तो जाया करो | अब तो तुम्हारे पापा भी रिटायर
हो गए हैं | उनकी भी आँखें दरवाजे पर लगी रहती हैं |
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प्रिय बेटे सौरभ
       लो अब तो तुम अपनी माँ तो माँ
भारत माँ को भी छोड़ कर विदेश में बस गए | 
मुझे पता है बहु ने ही कहा था विदेश में नौकरी को | निकले न जोरू के गुलाम
| पैसा ही प्यारा है | हम लोगों की कोई  कद्र नहीं | अभी तुम्हारे पापा गिर गए थे | पैर
की हड्डी टूट गयी | अब मुझसे तो उठाये न जाते | रात – बिरात पड़ोसियों  को बुलाना पड़ा | क्या अच्छा लगता है | क्या इसी
लिए इतने मंदिर पूजे थे , मन्नते मानी थी तुम्हे पाने को | पता नहीं मरने पर भी
आओगे  की नहीं या मिटटी भी पराये ही ठिकाने
लगायेंगे | सोच लो , अपना किया सामने आता है |  तुम्हारे भी तो बेटा है , जिसको सीने से लगाये
आगे पीछे घूमते हो | वही एक दिन तुम्हे हमारे दर्द का अहसास कराएगा | खैर तुम चाहे
जो करो , मेरा तो माँ का दिल है आशीर्वाद ही देगा | सुखी रहो |
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बेटे सौरभ
               अभी ६ महीने पहले ही तो आये थे | अब क्यों  आना चाहते हो | अब ५० के अल्ले –पल्ले तो हो
रहे हो | बार – बार आने से कहीं बीमार न पड़ जाओ | फोन कर लेते  हो हाल चल मालूम पड़ जाता है , तसल्ली हो जाती
है | पिछली बार आये थे तो मेरा हाथ पकड़ कर कितना रूआसे हो गए थे , “ मम्मी पता
नहीं अगली बार तुम्हे देख पाऊंगा या नहीं , ठीक रहना “|  तुम्हारे आँसू मुझे नन्हे सौरभ की याद दिला देते
हैं |   अभी भी उतने ही गड़ते हैं मेरे दिल
में | सच में कितना स्नेह करते हो तुम मुझसे , आत्मा तक भीग गयी | हमारा क्या है ,
हम तो पके आम हैं कब टपक जाए | कभी कभी रात में नींद खुलती है तो सोंचती हूँ काश
जब प्राण निकले तो तुम्हे देख पाऊ | फिर खुद ही मन को समझा लेती हूँ ,” अरे देख तो
लूंगी ही ,मन तो तुम्हारे पास ही रहता है | पर तुम चिंता न करना , बूढ़े तो जाते ही
हैं , अपना घर देखो तुम्हारे ऊपर बहुत जिम्मेदारियां हैं बेटा | बच्चों की पढाई का
भी टेंशन है | बहु का स्वास्थ्य भी ठीक नहीं रहता | उससे कहना अपना ध्यान रखे |
अगर घर की औरत स्वस्थ रहती है तभी घर सुचारू रूप से चलता है | अपना भी ब्लड प्रेशर
का इलाज करवा  लो बेटा | अब बुढ़ापा आने
वाला है |  बुढ़ापा यानी बुरापा | सेहत का
ध्यान रखना | ईश्वर तुम्हारी झोली में हर ख़ुशी डाल दे |
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आँसू
भरे नेत्रों के साथ सौरभ देखता है दीवार पर माला चढ़ी एक तस्वीर जैसे बोल उठती हैं
,” प्रिय बेटे सौरभ , पगले रोता क्यों है | मैं गयी कहाँ हूँ | माँ अपने बच्चों के
साथ हमेशा रहती है … याद के रूप में , अहसास के रूप में , आशीर्वाद के रूप में
……………….

वंदना बाजपेयी 


आप सभी को मदर्स डे की हार्दिक शुभकामनाएं 


                   

3 thoughts on “मदर्स डे पर विशेष- प्रिय बेटे सौरभ”

  1. हिदायतें एक उम्र में बुरी लगने लगती हैं,
    फिर हिदायतों का अर्थ समझ में आता है
    यह वक़्त
    बड़े और छोटे, दोनों के लिए एक कठिन परीक्षा का समय होता है !

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  2. हर खत में ऐसा लग जैसे हर नारी अपना ही अनुभव लिख रही है। बहुत सुंदर प्रस्तुति।

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