रचयिता—–रंगनाथ द्विवेदी
मै उसके कान की बाली का राग झुमर सुन रहा हूं,
कंगन,बिछुवे,चुड़ियां संगत कर रही,
कोई घराना नही दिल है———–
जिससे मै राग चाहत सुन रहा हूं,
मै उसके कान की बाली का राग झुमर सुन रहा हूं।
उसका इस कमरे,उस कमरे आना-जाना,
एक सुर,लय,ताल का मिलन है
उस मिलन से उपजी———–
मै राग पायल सुन रहा हूं,
मै उसके कानो की बाली का राग झुमर सुन रहा हूं।
कपकंपाते होंठ सुर्खी गाल की,
तील जैसे लग रही उसकी सखी,
और कर रही छेड़छाड़ भर बदन,
उफ!उसकी उम्र के उन्माद का——
मै राग काजल सुन रहा हूं,
मै उसकी कान की बाली का राग झुमर सुन रहा हूं।
घन-गरज है,बिजलियाँ है
काँधे पे वे श्वेत आँचल लग रहा कि मछलियाँ है,
उन मछलियो के प्रेम की——–
मै राग बादल सुन रहा हूं,
मै उसके कानो की बाली का राग झुमर सुन रहा हूँ
रचयिता—–रंगनाथ द्विवेदी।
जज कालोनी,मियाँपुर
जौनपुर(उत्तर-प्रदेश)।
बहुत सुन्दर कविता … मधु