किस्सा बाँटना चाहती हूँ | जिसमें सिर्फ मेरा ही नहीं हम सब का मनो विज्ञान छिपा
है | बात तब की है जब मैं इस इस कालोनी में नयी – नयी रहने आई थी | और सुधा के रूप
में मुझे एक अत्यंत सुलझी हुई महिला पड़ोसन केर रूप में मिली |हम दोनों की अक्सर
बातचीत होने लगी | जाहिर सी बात है हम दोनों
के विचार मिलते थे व् हम दोनों को
आपस में बात करना अच्छा लगता था | हम
दोनों घंटों बात करते | पर जब सुधा ये
बताती की उसने खाने में क्या बनाया है | या उसके पति ने उसके बनाये खाने की
तारीफ़ में क्या – क्या कशीदे पढ़े तो मैं अपसेट
सी हो जाती | कहीं न कहीं मैं हर्ट फील
करती |एक दिन तो अति हो गयी | मैंने ने
गाज़र का हलवा बनाया व् बड़े प्रेम से सुधा को परोसा | सुधा ने हलवे की तारीफ़ करते
हुए कहा , बना तो बहुत अच्छा है पर अगर तुम थोड़ी देर और आंच पर रखती तो शायद और
बेहतर बनता | सुनते ही मैं आगबबुला हो गयी और सुधा से तीव्र स्वर में बोली ,” क्या
मतलब है आपका , क्या मुझे हलवा बनाना नहीं आता | या आप अपने को किचन क्वीन समझती
हैं | अरे आप के पति आप के खाने की प्रशंसा कर देते हैं तो आप को लगता है की आप
सबसे बेहतर हो गयी | मेरे हलवे की बुराई करने के लिए धन्यवाद |इतना ही नहीं उनके
जाने के बाद भी मैं बहुत देर तक अनाप शनाप जाने क्या – क्या कहती रही | सुधा को बहुत बुरा लगा | उसने मोहल्ले भर में बात
फैला दी | मीरा तो दोस्ती करने लायक ही नहीं है | गुस्सा तो नाक पर रखा रहता है
| आखिर बस इतनी सी बात पर इतना गुस्सा क्यों हो गयी |
| तो मुझे भी बहुत अफ़सोस हुआ | आखिर इत्ती सी बात पर मैंने न जाने क्या – क्या कह
दिया | फिर मैंने अपने पूर्व अनुभवों को याद किया की अनेकों बार मैं इत्ती सी बात
पर हर्ट हो जाती हूँ | मेरे कई रिश्ते इसी बात पर टूटे | ये मेरा एक पैटर्न था | पर
अब मैं इसे बदलना चाहती थी | मैं दुबारा सुधा से दोस्ती करना चाहती थी | या कम से कम इतना चाहती थी की अब जिससे
दोस्ती करु वो रिश्ता न टूटे | इसलिए मैंने गहन पड़ताल की और पाया की बात सिर्फ मेरी या सुधा की नहीं है हम सब
अनेकों बार किसी की बस इतनी सी बात पर बहुत नाराज़ हो जाते हैं या कोई हमारी बस
इतनी से बात पर बहुत नाराज़ हो जाता है | हमें समझ नहीं आता की हमारे या किसी दूसरे के लिए ये इत्ती सी बात
इतनी महत्वपूर्ण कैसे हो जाती है | हां ये जरूर है की हमारी इत्ती सी बात दुसरे की
इत्ती सी बात से अलग होती है | अब जब भी आपको इत्ती सी बात पर गुस्सा आये तो जरा
गौर करियेगा की आपको उस बात पर गुस्सा आ रहा है या उसके पीछे कोई इतिहास है | दरसल
हम सब के इमोशनल ट्रिगर्स होते हैं | उन का संबंध अतीत के हमारे किसी दर्द , किसी
अधूरी इच्छा या किसी अपेक्षा से होता है | हम अपने सर पर एक बहुत बड़ा बोझा ढो रहे होते हैं | उस बोझे के साथ हम किसी तरह से
संतुलन बना कर चल रहे होते हैं | पर जब ये इत्ती सी बात का वजन बढ़ जाता है तो
हमारा संतुलन टूट जाता है | उदहारण के तौर पर इत्ती सी बात के अपने इमोशनल
ट्रिगर्स बता रही हूँ
बनाये खाने की प्रशंसा सुनना चाहती थी |मैं
अच्छे से अच्छा खाना बनाती और परोसती पर वो चुपचाप बिना कोई एक्सप्रेशन दिए
हुए खा लेते | मैंने कई बार टोंका तो वो
बस इतना उत्तर दे देते की वो खाने के लिए नहीं जीते , उन्हें और भी जरूरी काम करने
हैं जिंदगी में | और मैं चुपचाप झूठी प्लेटें उठाने में लग जाती | कारण चाहें जो भी रहा हो पर मेरे पति ने मेरी ये इच्छा पूरी नहीं की | धीरे – धीरे मुझे को
लगने लगा की मैं अच्छा खाना नहीं बनाती |
पर जब मैं खुद अपना बनाया खाना चखती तो मेरी पाककला मेरी अपने प्रति स्वयं ही बनायी धारणा के खिलाफ चुगली कर देती | मेरा दिल और दिमाग
अलग – अलग बोलता | मैं बहुत असमंजस में पड़ जाती |ऐसे में जब कोई ये बताता की उसके
पति उसके बनाये खाने की कितनी प्रशंसा करते हैं तो कहीं न कहीं मेरा दर्द उमड़ आता
और मैं खुद पर काबू न कर पाती | मैंने यही चीज कुछ और लोगों में भी देखी …
·
निधि ने
आई आई टी की तैयारी की पर exam से ठीक पहले बीमार पड़ गयी | वो आई आई टी में सफल
नहीं हो पायी | हालांकि उसने अच्छे एन आई
टी से शिक्षा हासिल की पर जब कोई आई आई टी
की तारीफ़ करता है तो वो हर्ट हो जाती है | यहाँ तक की परिवार के अन्य बच्चों के
सिलेक्शन की खबर सुन कर वो लम्बा भाषण दे डालती है की आई आई टी जीवन में सफलता की
गारंटी नहीं है | कहते –कहते उसका स्वर उग्र हो जाता और साफ़ पता चल जाता की उसे बुरा
लगा है |
·
निकिता
जी का बेटा विदेश में रहता है | वो यहाँ अकेले बुढापे में रह रहीं हैं | जब कोई
अपने बेटे की सेवा भाव की तारीफ़ करता तो बात उन्हें चुभ जाती |·
मीता की
माँ भाई – भाभी के पास रहती हैं | भाई – भाभी दोनों उनका ख्याल नहीं रखते हैं |
मीता अपना ये दर्द किसी से बांटती नहीं | पर जब कोई उससे कहता की तुम्हारी माँ तो
बहुत सुखी हैं जो बेटे – बहू की सेवा का सुख भोग रही हैं | तो मीता का स्वर उग्र
हो जाता और वह तरह – तरह के उदाहरणों से समझाने लगती की आजकल के ज़माने में कौन से बेटे बहू सेवा करते
हैं |
*दिव्या और उसके पिता के बीच में बचपन से ३६ का आंकड़ा रहा | दिव्या
ऐसे पिता की बात सुनते ही उत्तेजित हो जाती है जो अपनी बेटी को बहुत प्यार करते
हैं |
| जैसा की मैंने पहले कहा की वो हमारी
अतीत की दर्द तकलीफों , कमी , अपेक्षा से जुड़े होते हैं | जिसके कारण हम ट्रिगर
दबते ही बार – बार उसी साइकिल में पहुँच जाते हैं | ये बहुत ही पीड़ा दायक है साथ
में अपने व् अपनों के लिए असुविधाजनक भी | क्योंकि रिश्ते इत्ती सी बात पर टूट
जाते हैं | अगर आप अपने इमोशनल ट्रिगर को पहचान गए हैं तो केवल आप ही अपनी समस्या
को दूर कर सकते हैं और अपने वर्तमान व् भविष्य को अनावश्यक बोझ धोने से बचा सकते
हैं | इसके कुछ तरीके हैं |
वर्तमान पर हावी न होने दें
है | वो दस साल पुराना हो सकता है , पन्द्रह साल पुराना या बचपन का | जब आप ये बात
समझ ले तो अतीत को वर्तमान से डिस्कनेक्ट कर दे | और कहने वाले के इंटेंशन पर
ध्यान दें | क्या उसने आपको बुरा लगने के लिए कहा है | या यूँ ही अपनी बात बता रहा
है | अगर वो यूँ ही बता रहा है तो उस पल में खो जाए व् बातों का आनंद लें |
वालों पर ध्यान न दें
चाहता है | वो जानबूझ कर आपको नीचा दिखाना चाहता है | ऐसे में आप याद करिए बचपन
में वो राक्षस जो आपके कपड़ों की अलमारी में छिपा रहता था बत्ती जलाते ही गायब हो
जाता था | अब फिर से वही बत्ती जलने की आवश्यकता है … दिमाग की बत्ती | ऐसे
लोगों से सावधान रहिये | अपने को बचा कर रखिये |जहाँ तक संभव हो दूर रहिये |
खोजिये
हो जाते हैं | या आप ऐसे लोगों से घिरे हैं जो जरा सी बात पर हर्ट हो जाते हैं |
तो आप उनसे प्रेरित हो कर खुद हर्ट होने के स्थान पर ऐसे लोगों पर ध्यान दीजिये जो
हर बात को पर्सनली नहीं लेते हैं | उनके भी अतीत के दुःख होंगे पर जब उससे
सम्बंधित बातें आती हैं तो वो हँस कर टाल देते हैं | क्योंकि उन्होंने जीवन में
आगे देखना सीख लिया है | आप उन लोगों के व्यवहार को अच्छी तरह से परख कर अपने में
परिवर्तन ला सकते हैं |
फोकस करिए न की दूसरों की प्रतिक्रियाओं
पर
हैं तो अपने व्यव्हार पर फोकस करिए |
दूसरा किस बात पर क्या प्रतिक्रिया करेगा ये आपके हाथ में नहीं है | एक मशहूर लेखिका के अनुसार लेखन के शुरू के दौर में
उन्हें एक महिला मिली जिसने उनके मुँह पर उनके लेखन की कमियाँ बताते हुए कहा उन्हें तो फिक्शन पूरी तरह से
घटिया लगता है | जाहिर सी बात है कि लेखिका
बहुत आहत हुई | उनका मन किया की वो भी उस महिला की पसंद की किसी चीज को जो उसके
जीवन में बहुत महत्व रखती है घटिया बता दें | इस प्रकार से कुछ न कह कर भी वो उसका
अपमान कर दें | परन्तु वो चुप रहीं | घर आ कर उन्होंने अपने ऊपर फोकस किया | तब
उन्हें यह अहसास हुआ की महिला ने अपनी निजी पसंद बताई थी | उसका इरादा लेखिका को
नीचा दिखाना नहीं था | साथ ही ये भी समझाया की हर किसी को फिक्शन पसंद हो ये जरूरी
तो नहीं | हां ! कुछ लोग मुँह फट होते हैं पर वो ऐसा नहीं कर सकती क्योंकि ये उनका
मूल स्वाभाव नहीं है | ऐसा वो सिर्फ क्रोध में कर सकती हैं | अपने पर फोकस करने से
समस्या ही खत्म हो गयी |
ही हो
ही नकारत्मक लोगों से घिरे हों जो आप को बात – बात पर हर्ट करते हों | या आपका
अनुभव ऐसा हो की आप बात – बात पर हर्ट हो जाते हों | जो भी हो इस प्रक्रिया पर
ब्रेक भी आप ही लगा सकते हैं | जब आप खुद से प्यार करेंगे व् अपने को अपने जीवन की
धुरी बना लेंगें तो यह संभव है की लोगों की बातों का आप पर असर न हो | और इतना तो
आप कर ही सकते हैं की आप खुद ऐसे बात न कहें जिससे दूसरे के अतीत के घाव छिलते हों |
न ही आप किसी को चुभने वाली बात कहेंगे |
वर्मा – दिल्ली
बाजपेयी
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#अगला_कदम के बारे में
जीवन की रातों से गुज़र कर ही जाना जा सकता है की एक दिया जलना ही काफी होता है , जो रास्ता दिखाता है | बाकी सबको स्वयं परिस्तिथियों से लड़ना पड़ता है | बहुत समय से इसी दिशा में कुछ करने की योजना बन रही थी | उसी का मूर्त रूप लेकर आ रहा है
” अगला कदम “
जिसके अंतर्गत हमने कैरियर , रिश्ते , स्वास्थ्य , प्रियजन की मृत्यु , पैशन , अतीत में जीने आदि विभिन्न मुद्दों को उठाने का प्रयास कर रहे हैं | हर मंगलवार और शुक्रवार को इसकी कड़ी आप अटूट बंधन ब्लॉग पर पढ़ सकते हैं | हमें ख़ुशी है की इस फोरम में हमारे साथ अपने क्षेत्र के विशेषज्ञ व् कॉपी राइटर जुड़े हैं |आशा है हमेशा की तरह आप का स्नेह व् आशीर्वाद हमें मिलेगा व् हम समस्याग्रस्त जीवन में दिया जला कर कुछ हद अँधेरा मिटाने के प्रयास में सफल होंगे
” बदलें विचार ,बदलें दुनिया “