दूध – भात






जब दुआरी के कटहल पर कौए ने नीर बनाया तो धनेसरी खूब खुश हुई थी । अब तो बडका समदिया घर के पास ही आ गया । पीरितिया के बापू उहां आने का सोचेगा और कौआ इहां फटाक से उसको खबर कर देगा । केतना दिन हो गया मुंह देखे , पिरितया के जनम में भी नहीं आए थे खाली पैसा भेजवा दिए अब तो पिरितिया घुटन्ना भरने लगी है ।
रोज बरतन बासन के बहाने अंगना में मोरी के पास घंटों बैठी रहती । लेकिन निर्मोहिया एक्को बार भी कांव कांव नहीं करता उसकी तरफ देखकर ।

पंद्रहिया बाद उसकी मनोकामना पूरी हुई कौआ आकर उसके मुंडेर पर बैठा और फुदक फुदक कर उसके आंगन में झांक रहा था । वो सबकाम छोडकर कटोरी में दुध भात ले आई ओर खंभे की ओट में छुपकर कौए को देखने लगी । वैसे ही जैसे लैला अपने महल की अटारी पर खडी होकर मजनू के रास्ता देखा करती थी । निर्मोहिया अब बोलेगा अब बोलेगा उसकी धडकने बढकर रमेसर की पुकपुकिया की आबाज दबाए जा रही थी ।
तभी पेड पर कौए के नीर में चैं चैं की हलचल हुई । कौए ने पलटकर नीर की तरफ देखा और जल्दी से चोंच में कुछ चावल दबाकर उड गई ।
घनेसरी के आंसू पलकों तक भी न पहुंचे थे की पिरितिया की आवाज कानों में पडी , सोकर उठ गई थी शायद । वो भी जल्दी से घर के अंदर की तरफ भागी ।
कुमार गौरव

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