विधाता कि बनाई दुनियाँ के अन्दर एक और दुनियाँ ……… जीती जागती सजीव
…कहते है कभी भारतीय ऋषि परशुराम ने विधाता कि सृष्टि के के अन्दर एक और सृष्टि
बनाने कि कोशिश कि थी …. नारियल के रूप
में |उन्होंने आखें ,मुंह बना कर चेहरे का आकार दे दिया था ……. पर किसी कारण
वश उस काम को रोक दिया | पर युगों बाद मार्क जुकरबर्ग ने उसे पूरा कर दिखाया फेस
बुक या मुख पुस्तिका के रूप में | बस एक अँगुली का ईशारा और प्रोफाइल पिक के साथ पूरी जीती –जागती दुनियाँ आपके सामने हाज़िर हो
जाती है |भारत ,अमरीका ,इंगलैंड या पकिस्तान सब एक साथ एक ही जगह पर आ जाते हैं और
वो जगह होती है आप के घर में आपका कंप्यूटर ,लैपटॉप या मोबाइल | कितना आश्चर्य जनक
कितना सुखद | इंसान का अकेलापन दूर करने वाली ,लोगों को लोगों से जोड़ने वाली साइट
इतनी लोकप्रिय होगी इसकी कल्पना तो शायद मार्क जुकरबर्ग ने भी नहीं कि थी | आज फेस
बुक दुनियाँ कि सेकंड नम्बर कि विजिट की
जाने वाली साइट है |पहली गूगल है | इसकी लोकप्रियता का आलम यह है कि आज
इसके लगभग एक बिलियन रजिस्टर्ड यूजर्स हैं | यानी कि दुनियाँ का हर सातवाँ आदमी ऍफ़
बी पर है ……….. आप भी उन्हीं में से एक हैं ,हैं ना ? आज अगर आप किसी से मिलते
हैं तो औपचारिक बातों के बाद उसका पहला
प्रश्न यही होता है “क्या आप ऍफ़ बी पर हैं
और अगर आप नहीं कहते हैं तो अगला आप को ऊपर से नीचे तक ऐसे देखता है “ जैसे आप
सामान्य मनुष्य नहीं हैं बल्कि चिड़ियाघर से छूटे कोई जीव हों |
मनुष्य है ,चिड़ियाघर से छूटे जानवर नहीं
तो इतना तो तय है कि आप भी ऍफ़ बी यूज( इस्तेमाल ) कर रहे होंगे |पर सोचने वाली बात
यह है कि आप ऍफ़ बी इस्तेमाल कर रहे हैं या जरूरत से ज्यादा
इस्तेमाल कर रहे हैं|
नहीं कर रहे हैं ….. यहाँ केवल वही समय
नहीं देखना है जो आप ऑनलाइन रहते है बल्कि वो समय भी जोड़ना है जब आप ऍफ़ बी ,उसके
लाइक कमेंट ,स्टेटस के बारे में सोचने में बिताते हैं और मानसिक रूप से ऍफ़ बी पर
ही रहते हैं क्योंकि वस्तुतः हम वहीँ होते हैं जहाँ हमारा मन होता है | ऐसे समय
में हाथों से किया जाने वाला काम प्रभावित होता है |और अगर ऐसा है तो सतर्क हो
जाइए क्योंकि अकेलापन दूर करने वाली
,लोगों को लोगों से जोड़ने वाली इस साइट का एक खतरनाक असर भी है …….. कि ये
बहुत जल्दी ही आप को एडिक्ट बना लेती है |
पढ़ कर जरूर आप के मन में यह सवाल उठा होगा | आप जानना चाहते होंगे कि कहीं मैं ऍफ़
बी एडिक्ट तो नहीं हो गया | उत्तर आसान है ……… जैसे हर बीमारी के सिमटम्स
होते हैं वैसे ही ऍफ़ बी एडिकसन के कुछ
सिमटम्स हैं | जरा गौर करिए कहीं आप में इनमें से कोई चिन्ह तो नहीं है |
मैंने आज जो स्टेटस डाला था उस पर कितने लाइक कमेंट आये होंगे |
कमेंट कि तुलना करते रहते हैं…. अपने स्टेटस पर कम लाइक कमेंट देख कर आप का मूड
उखड जाता हैं और आप बच्चों और घरवालों पर बेवजह झल्लाने लगते हैं |
हैं कहीं कुछ नया स्टेटस तो नहीं आया है ?
हैं या अपने दोस्तों से फोन कर –कर के पूंछते हैं कि आपके स्टेटस पर कितने लाइक
कमेंट हैं |
का स्टेटस डाल दे
घटनाओं से
पास अब अपने जिगरी दोस्त से बात करने के लिए १० मिनट भी नहीं हैं जिसके साथ कभी
आपकी घंटों बातें ही ख़त्म नहीं होती थी |
इनमें से कोई लक्षण है तो सावधान आप ऍफ़ बी
एडिक्ट हो गए हैं | वैसे भी अगर मोटे तौर पर देखा जाए जो लोग एक घंटे से ज्यादा ऍफ़
बी प्रयोग करते हैं उन सब में एडिक्ट होने कि प्रबल संभावना रहती है |इस नियम में
केवल उन लोगों को छूट है जो व्यावसायिक तौर पर ऍफ़ बी का प्रयोग करते हैं …. जैसे
अपने सामान के प्रचार के लिए , किसी
सामाजिक कारण के लिए या किसी मुद्दे पर जन जागरण के लिए …
……
सकते हैं | इनमें से ज्यादातर वो किशोर व् युवा आते हैं जो लक्ष्य विहीन सिर्फ पास होने के लिए पढ़ रहे है
….. जाहिर है वो इम्तिहान के आस –पास ही पढेंगे बाकी समय कुछ मौज –मस्ती करने कि
इरादे से ऍफ़ बी पर आते हैं और फिर यही के हो कर रह जाते हैं |
भावना ग्रस्त या कुछ हद तक अवसाद में भी कह सकते हैं | इसमें भारी संख्या में
घरेलू औरतें होती हैं …. जो बच्चों के बड़े हो जाने व् पति के ऑफिस में ज्यादा
व्यस्त हो जाने कि वजह से एकाकी व्
उपेक्षित महसूस करती हैं और ख़ुशी व् दोस्तों की
तलाश में ऍफ़ बी पर आती हैं और बुरी
तरह इसके चुगल में फंस जाती है | इनमें से ज्यादातर का ऍफ़ बी अकाउंट उनके बच्चों
ने ही बनाया होता है जो बाद में पछताते हैं क्यों मम्मी का अकाउंट बना दिया
………. अब वो घर के कामों पर ध्यान नहीं देती बस दिन भर अपनी पिक्स व् स्टेटस
शेयर करती रहती हैं |
इनको अपने से ज्यादा दूसरों कि जिंदगी में दिलचस्पी रहती है |मुहल्ले में कहाँ
क्या पक रहा है ,किसकी किस से निभ रही है ,किसकी किससे टूट रही है ,हर एक बात पर इनकी नजर रहती है | ऍफ़ बी अकाउंट बनाते
ही इनका कैनवास विकसित हो जाता है |इनको लगता है इनके हाथ कारू का खजाना लग गया है
| ये पूरी तल्लीनता से दूसरों कि निजी
जिंदगी कि जानकारी ईकठ्ठा करने में जुट जाते हैं और अपनी निजी जिंदगी से दूर होते
जाते हैं |
हो गलत ही होता है ऍफ़ बी भी उनमें से ही
एक है |आप पूँछ सकते है “ अरे ऍफ़ बी एडिक्ट हूँ तो हूँ इसमें गलत क्या है .क्या
फर्क पड़ता है ? चलिए आज मैं आप को बताता हूँ कि ऍफ़ बी एडिक्सन कैसे आपके चेहरे कि हंसी
और परिवार कि खुशियाँ चुरा लेता है | अभी कुछ दिनों पहले ऍफ़ बी पर ही मैंने पढ़ा था
……………
अपने जीवन कि कमियाँ नजर आने लगती हैं
के ऍफ़ बी मित्र हैं न वो आप के शहर के हैं न आप उन्हें ठीक से जानते हैं तो आप
उनके बारे में वही सोचेंगे जो वो दिखने कि कोशिश कर रहे हैं | जाहिर सी बात है हर
इंसान दूसरे के सामने अच्छा दिखना चाहता है और अगर पकडे जाने का खतरा न हो तो वो
झूठ कि एक पूरी दुनियाँ ही परोस देता है |
आप वही देखते हैं जो दूसरा दिखाता है | एक हंसती मुस्कुराती पारिवारिक पिक देख कर
आप को लगने लगता है इनका जीवन कितना सुखी है |ये तो चौबीसों घंटे हँसते रहते हैं |
पर क्या वास्तविकता में किसी घर में ये संभव है ?मैं और मेरी नयी कार का स्टेटस
देखते ही आप को अपनी खटारा स्कूटर कि तो याद आ जाती है पर उसकी कार के साथ आने
वाली इ ऍम आई का आप को ख़याल भी नहीं आता | आप को दूसरों कि बड़ी पोस्ट तो दिखाई देती है पर
उस पोस्ट के साथ आई हज़ारों जिम्मेदारियां व् तनाव नहीं | परिणाम स्वरुप आप दुखी
रहने लगते हैं | फिर आप भी अपना कद ऊँचा करने के लिए नए –नए झूठ गढ़ने लगते हैं ,जबकि
आप हर पल अन्दर से यह महसूस कर रहे होते हैं कि आप झूठ बोल रहे हैं और अगला सच बोल
रहा है | ढाक के तीन पात आप दिन प्रति दिन निराशा में डूबने
लगते हैं | हाल के शोधों में पाया गया है
कि ऍफ़ बी प्रयोग करने वाले लोगों में अवसाद
की बिमारी बहुत बढ़ रही है |
आप से दूर होने लगते हैं
को राइम बहुत रटाई जाती हैं | एक प्रचलन है |अभी कुछ दिन पहले कि बात है मैं अपने एक डॉ मित्र के साथ उसके क्लिनिक पर बैठा हुआ था
| वही एक माँ अपने छोटे बच्चे के साथ आई
और बोलने लगी “ डॉ साहब ,मेरा बेटा गणित में बिलकुल भी रूचि नहीं लेता बस हर समय
टी वी | डॉ मुस्कुराई “ अरे टी वी का रिमोट अपने पास रखो ,मत देखने दो ,समय तो
उतना ही है टीवी में उलझा रहेगा तो गणित को समय कब देगा और कैसे सीखेगा |हां ! हर
दिन समय तो उतना ही है पर अफ़सोस हम अपने जीवन का वो अनमोल समय ऍफ़ बी के फेक
रिश्तों को दे देते हैं | जो समय माँ का हाल –चाल पूंछने में लगाना चाहिए था , जो समय बच्चों के साथ
खेलने में लगाना चाहिए था जो समय पत्नी के साथ हंसी – ख़ुशी में बिताना चाहिए था वो
समय आप फ़ालतू की चैटिंग व् लाइक कमेंट गिनने में लगा देते हैं | आप के
अपने रिश्ते आपके समय के लिए तरसते –तरसते कोई न कोई आल्टरनेटिव ढूढ़ लेते हैं| फेक
रिश्तों में खुशियाँ ढूँढने वाले ५००० दोस्तों और १५००० फोलोवेर्स के होते हुए भी
धीरे -=धीरे बहुत एकाकी हो जाते है |
के हाथ में चला जाता है –
खूबसूरत कोटेशन याद आ रहा है “ आप को केवल एक ही व्यक्ति कर सकता है वो है आप खुद
“ | आज व्यक्तित्व विकास की हर पाठशाला में पढ़ाया जाता है अगर आप अपने जीवन के
लक्ष्य हांसिल करना चाहते हैं तो खुश रहने के लिए दूसरों की निर्भरता छोडनी पड़ेगी
| परतु ऍफ़ बी एडिक्ट होते ही जाने –अनजाने आप अपनी खुशियों का स्विच दूसरों के हाथ
में चला जाता है | आप पूछेंगे कैसे ?दरअसल आप कि ख़ुशी दूसरों पर निर्भर करने लगती
है | ऍफ़ बी एडिक्ट होते ही आप लाइक कमेंट क्रेजी होने लगते हैं | अगर आप ने कोई
नयी चीज आप खरीद कर लाते हैं और उसका फोटो ऍफ़ बी पर डालते हैं पर उस पर लाइक कम
होते हैं या कोई उस चीज का उपहास उड़ाते हुए खराब कमेंट कर देता है | या आप का कोई
प्रिय मित्र उस पोस्ट पर आता ही नहीं है तो आप का मूड एकदम से खराब हो जाता है |
आप दुखी हो जाते हैं | दूसरी तरफ जब अचानक से किसी बात पर बहुत तारीफ़ मिल जाती है
तो बहुत खुश हो जाते हैं यानी कहीं न कहीं आपने अपनी खुशियों का स्विच अपने ऍफ़ बी
के मित्रों के हाथ में दे दिया है |
इस्तेमाल करने के लिए बैठे रहते हैं तो आप को कमर कि मांस पेशियाँ अकड सकती हैं | बढती उम्र के साथ लम्बर या सर्वाइकल
स्पोंडलाईटिस होने का खतरा बना रहता है | आँखें कमजोर हो जाती हैं |सर दर्द ,बदन
दर्द कि समस्या तो आम है | साथ ही लगातार बैठे रहने से कोई शारीरिक व्यायाम नहीं होता जिससे
पहले मोटापा फिर उससे जुड़े रोग चले आते हैं |
व्यस्त होने का भ्रम हो जाता है
बात है १००० -१५०० अपरिचित लोगों से बात शुरू होते ही आपको यह अहसास होने लगता है
कि कि आप सामाजिक रूप से बहुत व्यस्त व्यक्ति हैं | आप को बहुत लोग जानते हैं | आप
गर्म जोशी से हाय ,हेलो करते है और बदले में आप को भी वही व्यवहार मिलता है | आप किसी के स्टेटस पर
लाइक कमेंट करते हैं आप को भी लाइक कमेंट मिलते हैं | पर धीरे –धीरे आप को महसूस
होता है यहाँ भावनाओ का मशीनीकरण हो गया है …. शब्द भावनाओं के बिना बेजान हो गए
हैं | जब आप अपने किसी मित्र से जो आप के साथ ऑफिस में भी काम करता है या स्कूल
में पढता है तो आप हाय करने से भी बचने लगते हैं क्योंकि आप को लगता है सुबह ऍफ़ बी
पर हाय –हेलो कि खाना पूरी तो हो ही गयी है अब क्या करना | वो गर्मजोशी वो प्यार
घटने लगता है | जहाँ एक तरफ आपको भ्रम होने लगता है कि आप ज्यादा सामाजिक हो रहे
हैं वहीं वास्तव में आपका दायरा सिमटता जा रहा होता है |
बातें करते है जो एडिक्ट हैं
है सच| अगर आप ऍफ़ बी एडिक्ट हैं तो जयादातर ऍफ़ बी पर रहते होंगे | इसमें जो लोग आप
को ज्यादातर दिखाई पड़ते होगे वो लोग भी ऍफ़ बी एडिक्ट ही होंगे | आप कि ज्यादा
दोस्ती ज्यादा वार्तालाप उन्हीं से होता है ……….. कहावत है एक तो करेला ऊपर से नीम चढ़ा | अपने जैसे एडिक्ट लोगों के बीच
रहते –रहते आप को कभी अहसास ही नहीं होता कि आप कुछ गलत कर रहे हैं | उलटे अगर घर
में आप को कोई रोके –टोंके तो आप उदाहरण देते हुए कहते हैं “ सब तो यही कर रहे हैं
,इसमें गलत क्या है? जो खुद डूबा हुआ है वो किसी को क्या बचाएगा? और रोग घटने के स्थान पर बढ़ने लगता है |
बाद मानव जन्म मिला है कितना कुछ करा जा सकता है ,कितना कुछ सोचा जा सकता है ,न
सिर्फ अपने लिए बल्कि अपनों के लिए भी |
पर अफ़सोस ऍफ़ बी ज्यादा प्रयोग करने वालों में ज्यादातर किशोर व् युवा है जिन्हें
जीवन में कुछ बनना है वो अपने जीवन के स्वर्णिम वर्ष आलस भरे मनोरंजन में लगा कर
स्वास्थ्य व् भविष्य दोनों चौपट कर रहे है | बच्चो के बड़े हो जाने के बाद औरतें
अपने जीवन कि दूसरी पारी में रंग भर सकती हैं ,अपने अधूरे सपनों को पूरा कर सकती
है |कोई सामाजिक संगठन ज्वाइन कर सकती है | बच्चों को टयुशन पढ़ा सकती है वो पूरा –पूरा
दिन बर्बाद कर देती हैं | कहते हैं गया वक्त फिर आता नहीं | और बाद में अफ़सोस ही
रह जाता है | आपको अपनी समय और ऊर्जा का निवेश सही जगह करना चाहिए न कि गलत जगह |
और चलते चलते मैं
इतना ही कहना चाहूंगा अगर चाहे –अनचाहे आप
ऍफ़ बी एडिक्ट हो भी गए हैं तो कोई बात नहीं कौन सी ऐसी आदत है जो छोड़ी न जा सके |
अगर आप चाहे तो इस आदत पर भी लगाम लगा सकते हैं बस आप में समस्या को समझने और
संकल्प शक्ति पर विश्वास का माद्दा होना चाहिए | यहाँ मैं यह नहीं कह रहा हूँ कि आप ऍफ़ बी पूरी तरह से छोड़ दे | पर कहावत है न “ अति का भला न बोलना अति कि भली
न चूप “ अति हर चीज कि बुरी होती है अति से बचे | बाकी ऍफ़ बी के कुछ फायदे भी हैं | दिन में एक बार आधा- एक
घंटे के लिए आना बुरा भी नहीं है पर याद रहे ऍफ़ बी एक झील है जिसमें थोड़ी देर
तैरा तो जा सकता है …. पर वहाँ रहा नहीं जा सकता हैं | नहीं तो डूबना निश्चित
है |
तो शुभ काम में देर कैसी ,थोड़ी देर को ऍफ़ बी पर आइये बाकी समय अपने काम परिवार
और रियल मित्रों को दीजिये | फिर देखिये आपके अपने आप को कितना लाइक करेंगे और
कमेंट में लिखेंगे …….. वाह ! क्या बात है और साथ में बनायेंगे स्माइली |देखिएगा आप कि असली जिंदगी खिल उठेगी |
सुरसा की तरह ये बिमारी फ़ैल रही है … अभी तो कितना और फैलेगा फेसबुक पता नहीं ….
dhanyvad