घर के सभी लोग तरह तरह से समझा रहे थे पर सलोनी की रुलाई थमने का नाम ही नहीं ले रही थी। दादी अलग भगवान को कोसे जा रहीं थीं कि मेरी बच्ची ने तो कोई भी कसर नहीं रख छोड़ी थी। माघ पूस की कड़ाके की ठंड में भी बेचारी जल्दी जल्दी तैयार होकर सुबह 6 बजे की कोचिंग जाती फिर वापस आकर कालेज भागती थी। क्या जाता था मुरलीवाले का अगर अंगरेजी में भी उसके नंबर दूसरे विषयों की तरह अच्छे आ जाते तो। क्या कालेज के टीचर, कोचिंगवाले सर जी, घर तो घर पूरे मुहल्ले के लोग सलोनी की मेहनत, लगन देखकर दंग थे। सभी को उम्मीद थी कि अगर वह टाप नहीं कर सकी तो टाप टेन में जरूर आएगी। लेकिन अंगरेजी की बजह से 93 प्रतिशत पर अटक गई थी। सलोनी को यही डर खाये जा रहा था कि अब वह कैसे सब को फेस करेगी। पर सलोनी के पिता जी की चिंता अलग थी, उन्हें डर था कि कहीं उनकी बच्ची को सदमा न लग जाए। अचानक वे मोबाइल लिए सलोनी के पास आए और उसके कान से लगा दिया।
हैलो, सलोनी बधाई अच्छे नंबरों से पास होने की, पहचाना।
हैलो, सलोनी बधाई अच्छे नंबरों से पास होने की, पहचाना।
राघव भइया… कहकर फिर सुबकने लगी सलोनी।
सलोनी मैं तुम्हारा दर्द समझता हूं, तुमने बहुत मेहनत की है लेकिन यह अंतिम अवसर तो नहीं है। अभी और भी अवसर आएंगे अपने को प्रूव करने के, बस उनकी ओर देखो। मेरे साथ भी तो ऐसा ही हुआ था जब आशा के अनुरूप नंबर नहीं आए थे एम ए में पर नेट परीक्षा में पहले ही अटेंम्प्ट में जेआरएफ निकल गया। यहां दिल्ली आकर देखो कि 99 प्रतिशत लाने वाले भी मायूस हो जाते हैं जब देखते हैं कि कट आफ 100 प्रतिशत गया है। ऐसे में क्या मतलब रह गया प्रतिशत का तुम्ही सोचो। असल बात है तुमने मेहनत किया लगन से पढ़ाई की इसे जारी रक्खो।
अजय कुमार