एक बार एक व्यक्ति किसी आध्यात्मिक गुरु से अपने कुछ प्रश्नों के उत्तर चाहता था | पर वो चाहता था की गुरु योग्य हो | वह अपने गाँव में पीपल के पेड़ के नीचे बैठे बाबा से मिला | उसने कहा मुझे ऐसा गुरु चाहिए जो मेरे सब प्रश्नों का उत्तर दे सके | क्या ऐसा कोई गुरु है , काया कभी मुझे वो मिलेगा , क्या आप उस तक मुझे पहुंचा सकते हैं ? बाबा बोले ,” बेटा वो गुरु तुम्हें जरूर मिलेगा | पर इसके लिए जरूरी है सच्ची अलख जगना | पर फिलहाल मैं उसकी पहचान तुम्हें बता देता हूँ | बाबा ने उस गुरु के कद , काठी , आँखों के रंग आदि की पहचान बता दी | वो जहाँ मिलेगा यह भी बता दिया | उसके पास के दृश्य भी बता दिए | वो व्यक्ति बहुत खुश हो गया | उसने तुरंत बाबा के पैर छुए और कहा ,” आपका बहुत उपकार है बाबा , आपने मेरे गुरु का इतना विस्तृत वर्णन दे दिया | मैं उन गुरु महाराज को चुटकियों में ढूंढ लूँगा | अब मुझे जाने की आज्ञा दें | मैं यूँ गया और यूँ आया | फिर आपको भी उन्प्रश्नों के उत्तर बताऊंगा |
व्यक्ति चला गया | गाँव , गाँव ढूंढता रहा | ढूंढते – ढूंढते २० वर्ष बीत गए | पर वैसा गुरु न मिला | वो निराश हो गया | लगता है उसके प्रश्नों का उत्तर कभी नहीं मिलेगा | उसने सोंचा चलो अपने गाँव वापस चलूँ , लगता है गुरु का मिलना मेरे भाग्य में नहीं है | उत्तर न मिलने पर उसे बहुत बेचैनी थी | जब वो गाँव पहुंचा तो वही बाबा उसे पीपल के पेड़ के नीचे बैठे दिखाई दिए | उसने सोंचा उन्हें बताता चलूँ की मुझे उनके द्वारा बताया गया गुरु कहीं नहीं मिला | जब ऐसा गुरु था ही नहीं तो उन्होंने मुझे भटकाया ही क्यों | वो बाबा भी अब वृद्ध हो चुके थे | व्यक्ति जब बाबा के सामने पहुंचा तो देख कर दांग रह गया की ये तो वही गुरु हैं जिन्हें वो पिछले २० साल से ढूंढ रहा था | वो तुरंत बाबा के चरणों में गिर गया और बोला ,” बाबा आप तो वही हैं फिर आपने मुझे उस समय क्यों नहीं बताया |
बाबा बोले बेटा मैंने पहले ही कहा था की जब अलख जागेगी , सच्ची प्यास लगेगी | तभी वो गुरु तुम्हें मिलेगा और तभी ज्ञान | अब देखो मैं तुम्हारे सामने बैठा था | अपने लक्षण बता रहा था | पर तुम्हें मैं दिखाई ही नहीं दिया तुम जवानी के जोश में थे | तुम्हें लगा खूब यात्राएं , करूँगा ढूँढूंगा , गुरु तो मिल ही जाएगा |आद्यात्म पाने की चीज नहीं है , मिटने की चीज है | जब अहंकार मिट जाता है तब यात्रा शुरू होती है | तब तुम्हें प्यास नहीं थी जोश था | इतनी यात्राएं करते – करते तुम्हारी प्यास बढ़ गयी |अहंकार मिट गया | तब तुम्हें मैं नज़र आ गया | मैं भी २० साल से तुम्हारा इंतज़ार ही कर रहा था |
कहने का तात्पर्य ये है की सच्चा गुरु तब मिलता है जब प्यास लगी हो , अलख जगी हो | वर्ना पडोसी जारहा है और हम भी चल दिए तो सामाजिक समूह का विकास होता है आध्यात्मिकता का नहीं |
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