संकलन – प्रदीप कुमार सिंह
मेरा जन्म इंग्लैंड में हुआ था। वर्ष 1963 में अपने भाई के साथ मैं
भारत आई और फिर यहीं की होकर रह गई। मुंबई में पढ़ाई की और फिर पत्रकार के तौर पर
एक पत्रिका में काम करने लगी। उस वक्त मेरी उम्र करीब 18 वर्ष रही होगी। वर्ष 1968 में एक इंटरव्यू के सिलसिले
में मेरी मुलाकात स्पेन से आए मिशनरी विन्सेंट फेरर से हुई। उन दिनों वह
महाराष्ट्र के मनमाड़ में रहकर गरीबों की मदद करने में जुटे थे। उनके विचारों और
गरीबों के प्रति उनकी सेवा-भावना ने मुझे काफी प्रभावित किया। मैंने नौकरी छोड़ दी
और में भी उनके साथ गरीबों की सेवा में जुट गई।
भारत आई और फिर यहीं की होकर रह गई। मुंबई में पढ़ाई की और फिर पत्रकार के तौर पर
एक पत्रिका में काम करने लगी। उस वक्त मेरी उम्र करीब 18 वर्ष रही होगी। वर्ष 1968 में एक इंटरव्यू के सिलसिले
में मेरी मुलाकात स्पेन से आए मिशनरी विन्सेंट फेरर से हुई। उन दिनों वह
महाराष्ट्र के मनमाड़ में रहकर गरीबों की मदद करने में जुटे थे। उनके विचारों और
गरीबों के प्रति उनकी सेवा-भावना ने मुझे काफी प्रभावित किया। मैंने नौकरी छोड़ दी
और में भी उनके साथ गरीबों की सेवा में जुट गई।
वर्ष 1969 में मैं विन्सेंट के साथ आंध्र प्रदेश के अनंतपुरम
में आ गई। उन दिनों अनंतपुरम भयंकर सूखे और गरीबी से जूझ रहा था। आंध्र प्रदेश और
तेलंगाना क्षेत्र के ज्यादातर इलाकों में यही हाल था। सूखा, बुनियादी सुविधाओं की कमी और
रूढ़िवादी परंपराओं ने उस पूरे इलाके को जकड़ा हुआ था। हमने वहां पर रूरल डेवलपमेंट
ट्रस्ट (आरडीटी) नामक एक सामाजिक संस्था शुरू की और 1970 में हमारी शादी हो गई। अब
मैं स्थानीय भाषा फर्राटे से बोलती हूं और 70 साल की उम्र में भी महिलाओं एवं बच्चों की भलाई के
लिए बिना थके काम करती हूं। हम सामुदायिक शक्ति को एकजुट करके सहभागिता आधारित
विकास कार्यों पर जोर देते हैं। इससे प्रेरित होकर दलित, आदिवासी, ग्रामीण गरीब और अन्य पिछड़े
वर्गों के लोग मिलकर अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ते हैं।
में आ गई। उन दिनों अनंतपुरम भयंकर सूखे और गरीबी से जूझ रहा था। आंध्र प्रदेश और
तेलंगाना क्षेत्र के ज्यादातर इलाकों में यही हाल था। सूखा, बुनियादी सुविधाओं की कमी और
रूढ़िवादी परंपराओं ने उस पूरे इलाके को जकड़ा हुआ था। हमने वहां पर रूरल डेवलपमेंट
ट्रस्ट (आरडीटी) नामक एक सामाजिक संस्था शुरू की और 1970 में हमारी शादी हो गई। अब
मैं स्थानीय भाषा फर्राटे से बोलती हूं और 70 साल की उम्र में भी महिलाओं एवं बच्चों की भलाई के
लिए बिना थके काम करती हूं। हम सामुदायिक शक्ति को एकजुट करके सहभागिता आधारित
विकास कार्यों पर जोर देते हैं। इससे प्रेरित होकर दलित, आदिवासी, ग्रामीण गरीब और अन्य पिछड़े
वर्गों के लोग मिलकर अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ते हैं।
आंध्र प्रदेश के अनंतपुरम, कुरनूल, गुंटूर एवं प्रकाशम और
तेलंगाना के महबूबनगर और नालगोंडा समेत छह जिलों के 3,291 गांवों में आरडीटी काम कर
रही है। मेरा मानना है कि गरीबी के दुश्चक्र में फंसे लोगों को भी सम्मानपूर्वक
जिंदगी जीने का हक है। नलामला के जंगलों में रहने वाले दस हजार से अधिक चेंचू
आदिवासी परिवारों के जीवन-स्तर में सुधार के लिए हम एकीकृत विकास कार्यक्रम चला
रहे हैं। बच्चों की शिक्षा से लेकर विकलांगों के अधिकार, सामुदायिक स्वास्थ्य,
महिला सशक्तिकरण,
सामुदायिक आवास,
ग्रामीण अस्पताल और
पारिस्थितिक पुनरूत्थान और पर्यावरण संरक्षण हमारे उद्देश्यों में शामिल रहे हंै।
तेलंगाना के महबूबनगर और नालगोंडा समेत छह जिलों के 3,291 गांवों में आरडीटी काम कर
रही है। मेरा मानना है कि गरीबी के दुश्चक्र में फंसे लोगों को भी सम्मानपूर्वक
जिंदगी जीने का हक है। नलामला के जंगलों में रहने वाले दस हजार से अधिक चेंचू
आदिवासी परिवारों के जीवन-स्तर में सुधार के लिए हम एकीकृत विकास कार्यक्रम चला
रहे हैं। बच्चों की शिक्षा से लेकर विकलांगों के अधिकार, सामुदायिक स्वास्थ्य,
महिला सशक्तिकरण,
सामुदायिक आवास,
ग्रामीण अस्पताल और
पारिस्थितिक पुनरूत्थान और पर्यावरण संरक्षण हमारे उद्देश्यों में शामिल रहे हंै।
आरडीटी तीन सामान्य अस्पताल और संक्रामक रोगों के
लिए एक अस्पताल का संचालन कर रहा है। जबकि 17 ग्रामीण हेल्थ क्लिनिक चलाए जा रहे हैं। इसके
अलावा कम्युनिटी हेल्थ वर्कर के तौर पर काम करने के लिए महिलाओं को प्रशिक्षित
किया गया है। आरडीटी के इन अस्पतालों में हर साल 13 हजार से अधिक शिशु जन्म लेते हैं। 2,801 गांवों में चल रहे तीन हजार
से अधिक पूरक स्कूलों को माॅनिटर करने के लिए कम्युनिटी डेवलपमेंट कमेटियों को हम
प्रशिक्षित करते हैं। इन स्कूलों में दलितों, आदिवासियों एवं पिछड़े वर्ग के बच्चों को कोचिंग दी
जाती है। लड़कियों की शिक्षा पर खास ध्यान दिया जाता है। इनमें से कई बच्चे तो
टेनिस और हाॅकी जैसे खेलों का प्रशिक्षण भी ले रहे हैं। यही नहीं, वे कंप्यूटर चलाते हैं और
अंग्रेजी भी सीखते हैं।
लिए एक अस्पताल का संचालन कर रहा है। जबकि 17 ग्रामीण हेल्थ क्लिनिक चलाए जा रहे हैं। इसके
अलावा कम्युनिटी हेल्थ वर्कर के तौर पर काम करने के लिए महिलाओं को प्रशिक्षित
किया गया है। आरडीटी के इन अस्पतालों में हर साल 13 हजार से अधिक शिशु जन्म लेते हैं। 2,801 गांवों में चल रहे तीन हजार
से अधिक पूरक स्कूलों को माॅनिटर करने के लिए कम्युनिटी डेवलपमेंट कमेटियों को हम
प्रशिक्षित करते हैं। इन स्कूलों में दलितों, आदिवासियों एवं पिछड़े वर्ग के बच्चों को कोचिंग दी
जाती है। लड़कियों की शिक्षा पर खास ध्यान दिया जाता है। इनमें से कई बच्चे तो
टेनिस और हाॅकी जैसे खेलों का प्रशिक्षण भी ले रहे हैं। यही नहीं, वे कंप्यूटर चलाते हैं और
अंग्रेजी भी सीखते हैं।
इन बच्चों को अंग्रेजी के अलावा फ्रेंच, जर्मन और स्पेनिश भाषाएं भी
सिखाई जाती है, ताकि रोजगार के ज्यादा अवसर उन्हें मिल सकें। इन टेªनिंग कार्यक्रमों को
सफलतापूर्वक पूरा करने वाले 98 प्रतिशत से अधिक छात्रांे को नौकरी आसानी से मिल जाती है
और बेहतर आमदनी होने से वे परिवार को गरीबी के दलदल से उबार लेते हैं।
– विभिन्न साक्षात्कारों पर आधारित
साभार – अमर उजाला
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