मानव का सम्पूर्ण जीवन पुरुषार्थ के इर्दगिर्द ही रचा बसा हैगीता जैसे महान ग्रन्थ
में भी श्री कृष्ण ने मानव के कर्म और पुरुषार्थ पर बल दिया है रामायण में भी आता
है “कर्म प्रधान विश्व रची राखा “ अर्थात बिना पुरुषार्थ के मानव जीवन की कल्पना
तक नही की जा सकती इतिहास में ऐसे अनगिनत उदाहरण भरे पढ़े है जो पुरुषार्थ के महत्व
को प्रमाणित करते है हम इतिहास टटोलकर देखें तो ईसा मसीह,सुकरात, अब्राहम लिंकन,कालमार्क्स
,नूरजहाँ,सिकंदर आदि ऐसे कई उदाहरण इतिहास में
विद्यमान है जिन्होंने अपने निजी जीवन में बहुत से दुःख और तकलीफें झेली इनके जीवन
में जितने दुःख और परेशानियां आई इन्होने उतनी ही मजबूती के साथ उनका मुकाबला करते
हुए न केवल एक या दो बार बल्कि जीवन में अनेको बार उनका डटकर मुकाबले किया और अपने
प्रबल पुरुषार्थ से उन समस्याओं और दुखों को परास्त करते हुए इतिहास में अपना एक
सम्माननीय स्थान बना लिया |
सिकंदर फिलिप का पुत्र था कहा जाता है की सिकंदर की माँ अपने प्रेमी के प्रणय जाल
में इतनी अंधी थी की उसने अपने पति फिलिप को धोखे से मरवा दिया और सिकंदर का भी
तिरस्कार किया मगर सिकंदर का परिस्थितियों पर हावी होने का इतना प्रबल पुरुषार्थ
था की सिकंदर ने अपने दुर्भाग्य को पुरुषार्थ से सोभाग्य में परिणित कर दिया |
बड़ा कुरूप था उसने अपने जीवन की शुरुवात एक सैनिक के रूप में की और बहुत छोटी उम्र
में उसके पिता का साया उस पर से उठ गया अब उसकी माँ ही थी जो अपने पुत्र और अपने
जीवन का निर्वाह दाई का कम करके करती थी यही कुरूप बालक आगे चलकर सुकरात के
नाम से प्रसिद्द हुआ जिसने अपने पुरुषार्थ से दर्शनशात्र के जनक की उपाधि प्राप्त
की |
एक सम्पन्न परिवार में जन्म लेने
वाला लिओनार्दो विन्ची को भी अपने जीवन में माता पिता के बीच हुए मनमुटाव
के कारण अलग होने पर कई प्रकार की परेशानियों का सामना करना पढ़ा बहुत गरीब स्थिति
में उसने अपना जीवन बिताया थोडा बड़े होते ही घर की सारी जिम्मेदारी उसी के कंधों
पर आ गयी लेकिन उसने अपनी जिम्मेदारियों को पूरी निष्ठा से निभाया और इटली ही नही
अपितु पुरे विश्व में शिल्प और चित्रकला के नये आयाम स्थापितकरअपनी कलाकृतियों के
द्वारा अमर हो गया |
लेकिन ईश्वर में अपनी आस्था और विश्वास के द्वारा उन्होंने श्रेष्ठ मार्ग पर चलते
हुए सभी विघ्न बाधाओं को काटते हुए वे एक महामानव बने और लोगों के लिए सत्य का
मार्ग अवलोकित कर गये |
का जन्म भी एक दासी से हुआ था लेकिन उसे चाणक्य जैसे गुरु मिले और उनके बताये
रास्ते पर चलते हुए वह अपने पराकृम और पुरुषार्थ के द्वारा राष्ट्र को एक सूत्र
में बांधने में सफल रहा |
को तीन वर्ष की छोटी सी उम्र में ही पिता के स्नेह से वंचित होना पड़ा था अपने पिता
को वो अभी ठीक प्रकार से पहचान भी नही पाया था की वह अनाथ हो गया है और छोटी सी
उम्र में ही उसे जीविकोपार्जन के कार्य
में लगना पढ़ा लेकिन बढ़ा बनने की इच्छा उसमे प्रारम्भ से ही थी यद्यपि 19 वर्ष की
आयु में ही उसका विवाह हो गया और तीन संतानों के साथ बड़ी ही तंगहाली में उसने जीवन
जिया लेकिन अपने पुरुषार्थ और दृण इच्छा शक्ति के कारण उसने चमत्कार कर दिखया और
महान दार्शनिक कहलाया |
कालमार्क्स यद्यपि गरीब था और मरते तक उसने तंगहाली में ही जीवन जिया लेकिन अपनी संकल्प
शक्ति और दृण विचारों द्वारा दुनिया के करोड़ो लोगों को अपने भाग्य का विधाता आप
बना गया उसने अपनी पुस्तक “दास केपिटल” को सत्रह बार लिखा अठारवीं बार में वो अपने
उद्दत रूप में निकलकर बाहर आई और साम्यवाद की आधारशिला बन गयी|
सीमित साधनों के बल पर औरंगजेब के नाकों चने चबवाने वाले शिवाजी के पिता शाहजी एक
रियासत के दरबारी थे शिवाजी को अपने पिता का किसी प्रकार का सहयोग या आश्रय
नही मिला उनका साहस केवल माता की शिक्षा और गुरु के ज्ञान पर टीका हुआ था वे साहस
और पराकृम के बल पर स्वराज्य के लक्ष्य की ओर सफलतापूर्वक बढ़ते गये एवं यवनों से
जूझकर छत्रपति राष्ट्राध्यक्ष बने |
शेक्सपियर जिनकी तुलना संस्कृत के महान कवि कालिदास से की जाती है एक कसाई के बेटे थे परिवार
के निर्वाह हेतु उन्हें भी लम्बे समय तक वही काम करना पड़ा लेकिन बाद में अपनी
अभिनय प्रतिभा तथा साहित्यिक अभिरुचि के विकास द्वारा अंग्रेजी के सर्वश्रेष्ठ कवि
तथा नाटककार बन गये |
का बलिदान देने वाले अब्राहम लिंकन
को कौन नही जानता उन्होंने अपने जीवन में असफलताओं का मुँह इतनी बार देखा की यदि
पूरे जीवन के कार्यों का हिसाब लगाया जाए तो उनमे सौ में से निन्यानवे तो असफल रहे
है जिस काम में भी उन्होंने हाथ डाला असफल हुए |रोजमर्रा के निर्वाह हेतु एक दूकान
में नौकरी की तो दुकान का दिवाला निकल गया किसी मित्र से साझेदारी की तो धंधा ही
डूब गया जैसे तैसे वकालत पास की लेकिन वकालत नही चली चार बार चुनाव लढ़े और हर बार हारे जिस स्त्री से शादी की उसके साथ
भी सम्बन्ध बिगड़ गये और वो इन्हें छोड़कर चली गयी जीवन में एक बार उनकी महत्वाकांक्षा पूरी हुई जब वे राष्ट्रपति बने और इस सफलता के
साथ ही वो विश्व इतिहास में सफल हो गये |
विख्यात वैज्ञानिक आइन्स्टाइनजिसने
परमाणु शक्ति की खोज की वो खोजी बचपन में मुर्ख और सुस्त था | उनके माता-पिता को
चिंता होने लगी थी की ये अपना जीवन कैसे चला पायेगा लेकिन जब उन्होंने प्रगति पथ
पर बढ़ना शुरू किया तो सारा संसार चमत्कृत होकर देखता रह गया |
बात नही देखी जाती बल्कि संकल्प शक्ति को जगाया उभारा एवं विकसित किया जाता है
आशातीत सफलता हर क्षेत्र में प्राप्त करने का एक ही राजमार्ग है प्रतिकूलताओं से
टकराना और अंदर छिपी सामर्थ्य को उभारना |
अच्छा सोंचो , अच्छा ही होगा
जो मिला नहीं उसे भूल जा
आदमी सोंच तो ले उसका इरादा क्या है
जरूरी है मन का अँधेरा दूर होना