महबूब के मेंहदी की रस्म है


रोऊँगा नही मै——————-
आज मेरी महबूब के मेंहदी की रस्म है।
भीच लुंगा होंठ को दाँतो से कुचलकर,
एै खुदा चढ़े-

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उसकी हथेली पे इतनी सुर्ख मेंहदी,
कि सारा शहर कहे—————–
किसी भी हथेली पे आज तलक इतनी
मेंहदी नही चढ़ी।
रोऊँगा नही मै—————-
आज मेरी महबूब के मेंहदी की रस्म है।
वे शरमा के हथेली से जब ढ़के चेहरा,
एै आह!मेरी उसको न देना बददुआ,
वे महबूब थी मेरी और महबूब रहेगी,
मै मरके भी दुआ दुंगा——–
महबूब को अपने।
एै,रंग——-रोऊँगा नही मै
आज मेरी महबूब के मेंहदी की रस्म है।

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