साधना सिंह
गोरखपुर
बडे़ दिनो के बाद वो छत पर नजर आया था, दिल जोर से धड़का पर मैने मुंह घुमा लिया । तभी मम्मी ने आवाज दी- अंजलि !
आई माँ.. ! चोरी चोरी एक बार और उधर देखा तो वो जा चुका था । मै भी नीचे उतर आयी । मन बार बार अतीत की तरफ भाग रहा था । जल्दी -जल्दी काम निपटा अपने कमरे मे गयी, दरवाजा बंद करके एक गहरी सांस ले खिडकी की तरफ देखा ।
आई माँ.. ! चोरी चोरी एक बार और उधर देखा तो वो जा चुका था । मै भी नीचे उतर आयी । मन बार बार अतीत की तरफ भाग रहा था । जल्दी -जल्दी काम निपटा अपने कमरे मे गयी, दरवाजा बंद करके एक गहरी सांस ले खिडकी की तरफ देखा ।
जाने महिनों से कभी उधर देखा तक ना था । वही खिडकी जो उसकी बालकनी की तरफ खुलता था । हर सुबह वो वहाँ एक्सरसाइज़ करता था और मेै वही खडी अपने बाल सुलझाती रहती थी । दोनो को एहसास रहता था एक दुसरे की मौजूदगी का, पर दोनो तरफ एक ख़ामोशी छाई रहती थी ।
ज़ाम हो गयी है!.. मैे खिडकी खोलने की कोशिश करती हुई बडबडाई । लेकिन थोडी ही कोशिश मे खिडकी खुल गयी ।
‘ अँजलि! इतने लम्बे बाल मुझे बाँधने के लिये ही रखा है तुमने.. है ना! वह हर बार मेरी चोटी खोल देता.. – ‘बस, इसे खुले रखो ना.. मेरा दम घुट जायेगा!
‘ क्या करते हो! … मै हंस पडती थी।
अजीब सन्नाटा था, उसकी बालकनी मे भी और मेरे भीतर भी । मेरे मन की तरह उसकी बालकनी भी उजाड थी ।
जाने कब हमारी खामोशी एक दुसरे पर खुल गयी थी पता नहीं चला । कभी निहारते नही थकती थी तो अब उससे बात किये बिना मन नहीं लगता । जब कालेज से निकलती तो अकसर वो गेट पर अपनी बाईक पर खडे मिलता, चेहरे पर बडी सी मुस्कान सजाये ।
‘ नही रोहित! मम्मी वेट कर रही होंगी.. पापा को तो तुम जानते हो ना! ‘ .. मै कशमकश मे पड जाती , एक तरफ घर वालो की हिदायते, तो दुसरी तरफ मन बगावत पर आ जाता । आखिरकार मन ही जीतता । मै उसके बाइक पर बैठी सोचती.. काश! जिन्दगी बस इस सफर मे कट जाये । कहीं ना कही ये अंदेशा था कि पापा नहीं मानेंगे । पर रोहित कहता था कि वो सब ठीक कर देगा ।
दिन सोने के तो रातें चाँदी की ही थी । एक दुसरे के ख्यालों मे खोये ये गुमाँ ही ना था कि हमे अलग करने वाला तूफान तेजी से हमारी तरफ बढ रहा था । उस दिन आइसक्रीम पार्लर से निकलते वक्त रोहित के पापा अचानक सामने आ गये । मेरा चेहरा भक से पीला पड गया । कब कैसे घर तक आयी होश नही रहा ।
‘ एक कायस्थ लडकी कभी मेरे ब्राह्मण खानदान मे नहीं आ सकती ! ‘ रोहित के पापा ने शख्त लहजे मे कह दिया । आल रेड्डी उन्हे दो बार, एक माइनर और एक बडा हार्ट अटैक आ चुका था । माँ से रोहित ने बहुत बिनती की पर पति के बिमारी से भयभीत माँ चाह कर भी बेटे की मदद ना की । बस बेटे को ही अपनी सुहाग का वास्ता दिया ।
‘ अंजलि ! .. मै तुम्हारा गुनहगार हूँ, मै कोई वादा ना निभा सका । ‘ .. वो फफक पडा ।मै क्या कहती, बस भरी आखे और टूटे दिल के साथ वापस आ गयी । परन्तु उसे भुलना आसान था क्या? खुद से लडती लडती नर्वस ब्रेक डाउन का शिकार हो गयी, कितने दिनो तक बेसुध रही । मेरे आत्मसम्मानी पिता को मेरा मर जाना मंजूर था पर रोहित के रूढि़वादी पिता के सामने बेटी की जिन्दगी भीख मांगना नही ।
माँ की दिन रात की दुआओ ने मुझे नयी जिन्दगी दी । जब थोडी सम्भली तो पता चला रोहित का परिवार अपने गाँव चला गया है । दिल मे फिर भी एक आस थी कि वो लौटेगा । पर फिर एक दिन पडोसी से पता चला कि रोहित की शादी हो गयी । मुझे विश्वास नहीं हुआ । इतनी जल्दी भूल गया था रोहित सब कुछ । लाख मुश्किलें सही, थोडी तो कोशिश करता । मौत के कगार पर तो मै भी जा पहुंची थी, उसे पता तो होगा ही फिर भी सेहरा सजा़ लिया ।
और उस दिन मेरे आँख से एक आसूँ भी ना टपका । कुछ दिन तो रोहित इन्तजार करता। मेरा मन अजीब सा हुआ , और उसीदिन मैने सारा ध्यान करियर मे लगा दिया । अब एक कॉलेज मे लेक्चरर हूँ । एक जगह शादी की बात भी चल रही है । यान् जिन्दगी धीरे धीरे पटरी पर आ ही गयी थी कि अचानक उसका नजर आना .. मैने खिडकी पूरी खोल दी क्योकि अब एक अलग तरह की रौशनी भीतर आ रही थी, कमरे मे भी और मेरे भीतर भी । अब मुझे कोई फर्क नहीं पडेगा क्योकि जो बीत गया था एक कमजोर ख्वाहिश थी । जब रोहित आगे बढ गया तो मै क्यो नहीं ।
मै कमरे से निकली और माँ को कसके गले लगाया । माँ समझ गयी थी क्योकि लॉन से माँ ने सब देखा था । तभी उन्होंने अावाज दी थी। मेरे सारे ख्यालो और सोचो से वाकिफ रहती थी बिना जताये । पर उस दिन उन्होंने मेरा चेहरा उपर करके मेरी आँखों मे देखा और मेरा माथा चूम लिया । मै समझ गयी कि माँ मेरे मन के उथल-पुथल से बेखबर नहीं। मै खुल कर मुस्करायी क्योंकि एक नयी सुबह मेरा स्वागत कर रही थी ।
_________
यह भी पढ़ें ………