रंगनाथ द्विवेदी
या खुदा————–
उसके रोने से धुल जाये मेरी लाश इतनी,
कि बदलियो को घिर-घिर के बरसने की जरुरत न पड़े।
वे तड़पे इतना जितना ना तड़पी थी मेरे जीते,
ताकि मेरी लाश पे किसी गैर के तड़पने की जरुरत न पड़े।
या खुदा———-
वे मेहंदी और चुड़ियो से इतनी रुठ जाये,
कि शहर मे उसको बन-सँवर के निकलने की जरुरत न पड़े।
एै हवा उड़ा ला उसके सीने से दुपट्टे को,
और ढक दे मेरी लाश को————
ताकि मेरी लाश पे किसी गैर के कफ़न की जरुरत न पड़े।
या खुदा————
वे जला के रखे एक चराग हर रात उस पत्थर पे,
जहाँ बैठते थे हम संग उसके,
ताकि एै”रंग”——–
मेरी रुह को भटकने की जरुरत न पड़े।
या खुदा———
उसके रोने से धुल जाये मेरी लाश इतनी,
कि बदलियो को घिर-घिर के बरसने की जरुरत न पड़े।
रचयिता——रंगनाथ द्विवेदी।
जज कालोनी,मियाँपुर
जौनपुर(उत्तर-प्रदेश)।