एक बच्चा था | वह किसी गाँव में अपने माता – पिता व् दादी के साथ रहता था | उनका परिवार सामान्य था | परन्तु तभी एक दुर्घटना घटी और उस बच्चे के माता – पिता की मृत्यु हो गयी |माता – पिता की मृत्यु होते ही उस परिवार की आर्थिक स्तिथि बिगड़ने लगी | दादी को मजबूरी में दुसरे घरों में काम पर जाना पड़ता | पर वो पैसे इतने ज्यादा नहीं थे की उनका घर अच्छे से चल पाता | ऐसी ही तंगहाली में वो बच्चा बड़ा होने लगा | अब वो स्कूल जाने लगा था | उसके दोस्त बन गए थे | बच्चा अक्सर देखता की उसके दोस्तों के घर उसके रिश्तेदार आते | उसके मन में प्रश्न उठता की आखिर उसके घर में रिश्तेदार क्यों नहीं आते हैं |आखिर वो हैं कहाँ ? उसने रात में यही प्रश्न अपनी दादी से किया | दादी ने प्यार से उसका सर सहलाते हुए जवाब दिया की उसके तो बहुत से रिश्तेदार हैं | पर क्या करे वो जमीन में गड़े हैं |
बच्चे को दादी का जवाब अटपटा लगता पर उसने सच मान लिया | स्कूल आते – जाते अक्सर वो उस जमीन के टुकड़े ( खेत ) को देखता और सोंचता की इसमें उसके रिश्तेदार गड़े हैं | वह दिल ही दिल में खुश होता की उसके भी बहुत से रिश्तेदार हैं | जो दिखते भले ही न हों पर उसे उनके होने का अहसास तो है |
यही सब सुनते – सोंचते बच्चा बड़ा होने लगा | अब वो 14 वर्ष का किशोर था | एक दिन बच्चों की लड़ाई में किसी बच्चे ने कह दिया ,” तेरा है ही कौन , बस एक बूढ़ी दादी , फिर इतनी हिम्मत मत कर की हमसे जुबान लड़ा | बच्चे को ये बात बहुत चुभ गयी | वो सीधा घर आकर दादी के पास गया और बोला ,” दादी अब मैं बच्चा नहीं हूँ , सच – सच बता दो मेरे रिश्तेदार कहाँ हैं ? दादी उस समय माला फेर रही थी | एक सेकंड रुक कर बोली ,” बार बार वही प्रश्न करते हो | देखते नहीं मैं माला जप रही हूँ | कितनी बार बताया की तेरे रिश्तेदार जमीन में गड़े हैं पर समझता ही नहीं |
अब बच्चे को गुस्सा आ गया | वह फावड़ा ले कर उस जमीन के टुकड़े के पास आ गया | वो गुस्से में चिल्लाता जा रहा था ,” देखे कहाँ हैं मेरे रिश्तेदार , यहाँ , यहाँ या वहां ” और जमीन खोदता जा रहा था | खोदते – खोदते उसने पूरा खेत ही खोद डाला पर कोई निकला नहीं | तभी दादी वहां आ गयीं और बोली अब तुमने खेत खोद ही डाला है तो इसमें बीज भी बो दो | बच्चे ने बीज बो दिए | कुछ दिन बाद नन्हे – नन्हे पौधे निकल आये | बच्चे को उन्हें देख कर ख़ुशी हुई | वह रोज उन्हें खाद पानी देने लगा | जमीन उपजाऊ थी | अच्छी पैदावार हुई | फसल बेंच कर उनके यहाँ धन आ गया | अब वो गरीब नहीं थे | अब उसने नए बीज बो दिए | नयी फसल और …और पैसा | पूरे गाँव में उनकी अमीरी के चर्चे होने लगे |
एक दिन घर का दरवाजा खटका | दूर के चाचा आये थे | बेटी की शादी का न्यौता ले कर | फिर तो रोज दरवाजे खटकने लगे | कभी कोई रिश्तेदार तो कभी कोई रिश्तेदार | कभी तो इतने रिश्तेदार आ जाते की समस्या हो जाती की उन्हें बिठाए कहाँ | अब बच्चा खुश था | वो जान गया था की दादी का ” सब रिश्तेदार जमीन में गड़े हैं” कहने का क्या मतलब था |
दोस्तों आज हम self love और self development की बात करते हैं | पर हमारी लोक कथाओं में पहले ही इसे कितनी ख़ूबसूरती से बता दिया गया है की अगर हम चाहते हैं की हमारे रिश्तेनातेदार हमें पूंछे | तो हमें अपने विकास पर ध्यान देना होगा | धन केवल धन नहीं है | यह एक शक्ति भी है | जिसके कारण हमारे सामाजिक रिश्ते अच्छे से चलते हैं |मेहनत व् परिश्रम से धन कमा कर प्रतिष्ठा अर्जित करना कोई अपराध नहीं है |
ओमकार मणि त्रिपाठी
( पूर्व लेख से लिया गया )
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बहुत सुंदर प्रेरक कहानी ।