एक घड़ा पानी से भरा हुआ रखा रहता
था। उसके ऊपर एक कटोरी ढकी रहती थी। घड़ा अपने स्वभाव से ही बड़ा दयालु था । बर्तन उस
घड़े के पास आते, उससे जल पाने को अपना मुख नवाते। घड़ा प्रसन्नता से झुक जाता और
उन्हें शीतल जल से भर देता। प्रसन्न होकर बर्तन शीतल जल लेकर चले जाते। अब जो कटोरी उसके ऊपर ढकी थी वो बहुत
दिन से यह सब देख रही थी। एक दिन उससे रहा न गया, तो उसने शिकायत
करते हुए कहा , घड़े भाई ‘बुरा न मानो तो एक बात पूछूं?’ ‘पूछो।‘ घड़े ने शांत
स्वर में उत्तर दिया।
था। उसके ऊपर एक कटोरी ढकी रहती थी। घड़ा अपने स्वभाव से ही बड़ा दयालु था । बर्तन उस
घड़े के पास आते, उससे जल पाने को अपना मुख नवाते। घड़ा प्रसन्नता से झुक जाता और
उन्हें शीतल जल से भर देता। प्रसन्न होकर बर्तन शीतल जल लेकर चले जाते। अब जो कटोरी उसके ऊपर ढकी थी वो बहुत
दिन से यह सब देख रही थी। एक दिन उससे रहा न गया, तो उसने शिकायत
करते हुए कहा , घड़े भाई ‘बुरा न मानो तो एक बात पूछूं?’ ‘पूछो।‘ घड़े ने शांत
स्वर में उत्तर दिया।
कटोरी
ने अपने मन की बात कही, ‘मैं देखती हूं कि जो भी बर्तन तुम्हारे पास आता है, तुम उसे अपने जल
से भर देते हो। मैं सदा तुम्हारे साथ रहती हूं, फिर भी तुम मुझे
कभी नहीं भरते। यह मेरे साथ अन्याय है।‘
कटोरी की शिकायत सुन कर घड़ा बोला , ‘कटोरी बहन, तुम गलत समझ रही हो।मेरे
काम में पक्षपात जैसा कुछ नहीं। तुम देखती हो कि जब बर्तन मेरे पास आते हैं, तो जल ग्रहण करने
के लिए विनीत भाव से झुकते हैं। तब मैं स्वयं उनके प्रति विनम्र होते हुए उन्हें
अपने शीतल जल से भर देता हूं। किंतु तुम तो गर्व से भरी हमेशा मेरे सिर पर सवार
रहती हो।इतनी अकड़ अच्छी नहीं | जरा तुम भी कभी विनीत भाव से कभी मेरे सामने झुको, तब फिर देखो कैसे तुम भी शीतल जल से भर जाती हो।
नम्रता से झुकना सीखोगी तो कभी खाली नहीं रहोगी।
काम में पक्षपात जैसा कुछ नहीं। तुम देखती हो कि जब बर्तन मेरे पास आते हैं, तो जल ग्रहण करने
के लिए विनीत भाव से झुकते हैं। तब मैं स्वयं उनके प्रति विनम्र होते हुए उन्हें
अपने शीतल जल से भर देता हूं। किंतु तुम तो गर्व से भरी हमेशा मेरे सिर पर सवार
रहती हो।इतनी अकड़ अच्छी नहीं | जरा तुम भी कभी विनीत भाव से कभी मेरे सामने झुको, तब फिर देखो कैसे तुम भी शीतल जल से भर जाती हो।
नम्रता से झुकना सीखोगी तो कभी खाली नहीं रहोगी।
# दोस्तों हम भी कई बार अपने झूठे अहंकार को लेकर अकड जाते है और अपने परिवार व् दोस्तों का भी प्यार खो देते हैं | स्नेह के प्यासे तो रहते ही हैं | जीवन में अकेला पन भी महसूस करते हैं | अब कटोरी को तो समझ में आ गया और उसने झुकना भी सीख लिया | तो आप भी झुक कर देखिये …. और आनंद लीजिये स्नेह के जल का |
स्मिता शुक्ला
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