#NaturalSelfi,ये मात्र एक शब्द नहीं एक अभियान हैं | पिछले कुछ दिनों से इस हैशटैग से महिलाएं फेसबुक पर अपनी तसवीर पोस्ट कर रहीं हैं| यह मुहीम बाजारवाद के खिलाफ है | इस मुहिम की शुरुआत की है गीता यथार्थ यादव ने | बाजार जिस तरह सौंदर्यबोध को प्रचारित कर रहा है और मेकअप प्रोडक्ट बेचे जा रहे हैं, उसके खिलाफ यह महिलाओं को ऐलान है कि वे बिना मेकअप के भी सुंदर हैं |
सुन्दरता के इस चक्रव्यू में महिलाओं को फंसाने का काम सदियों से चला आ रहा है |आज भी ये शोध का विषय है की क्लियोपेट्रा किससे नहाती थी | आज भी सांवली लड़की पैदा हिते ही माता – पिता के चेहरे उतर जाते हैं की उसका ब्याह कैसे करेंगे | योग्य वर कैसे मिलेगा ? बचपन से ही उसका आत्मसम्मान बुरी तरह कुचल दिया जाता है | और शुरू होता है लड़की को स्त्री बनाने की साजिश | उसमें मुख्य भूमिका अदा करता है उसका सौन्दर्य | यह माना जाता रहा है की सुन्दरता स्त्री के अन्य गुणों के ऊपर है या कम से कम साथ तो है ही | दुर्भाग्य है की स्त्री शिक्षा व् जागरूकता के साथ – साथ एक नया कांसेप्ट आया ब्यूटी विद ब्रेन का | बाजारवाद ने इसको हवा दे दी | मतलब स्त्री ब्रेनी है तो भी उसके ऊपर ख़ूबसूरती बनाये रखने का दवाब भी है | ये दवाब है खुद को नकारने का , बाज़ार के मानकों में फिट होने का , ऐसी स्किन , ऐसे हेयर और ऐसी फिगर …. इन सब के बीच अपना करियर , अपनी प्रतिभा अपना हुनर बचाए रखने की जद्दोजहद |
एक तरफ हम सुखी जीवन जीने के लिए self love को प्रचारित करते हैं | वहीँ मेकअप कम्पनियां स्त्री को खुद को कमतर समझने और हीन भावना भरने की जुगत में लगी रहती हैं | ये आई ब्रो के बाल तोड़ने से पहले आत्मविश्वास तोड़ने का काम करती हैं | ये ख़ुशी की बात हैं की आज महिलाएं खुद आगे आई हैं | उन्होंने न सिर्फ इस जाल को समझा है बल्कि उसे नकारना भी शुरू किया है |
बहुत पहले इसी विषय पर कविता लिखी थी … ” सुन्दरता की दु कान या अवसाद का सामान ” | आज ये #NaturalSelfi अभियान उसी दर्द का मुंहतोड़ जवाब है |
की राजधानी में
छोटी -बड़ी गली नुक्कड़ में
की तरह उगी हुई हैं
की दुकाने
सुंदरता के पैकेट में
हैं अवसाद का सामान
तुलना और हीनभावना
आदमकद शीशों के सामने
मिल ही जाती है
से सत्तर साल की
की अम्माएं
-प्रतिपल पूँछती
मेरे शीशे “सबसे सुन्दर कौन “
के मुँह खोलने से पूर्व
जाती हैं परिचारिकाएं
हैं मुस्कुराते हुए
बनाती हूँ तुम्हें “सबसे सुन्दर “
को तराशती
नाक ठोढ़ी की मसाज करती
जाती हैं घुट्टी
-धीरे
के आकर्षण की
आवश्यक है सुन्दर दिखना
खूबसूरत चेहरा है एक चुम्बक
की पहली पायदान
-सबल शिक्षित -अशिक्षित महिलाओं के मन में
लगते हैं
के दैहिक मापदंड
लगते हैं
“सौंदर्य प्रसाधन “
मायाजाल में जकड़ी मासूम महिलाएं
बैठती हैं वरीयता
सुंदरता को
और बौद्धिक सुंदरता के ऊपर
रह जाता चर्चा का केंद्र
अभियान
का भाषण
की बाढ़
जाती हैं चर्चा सिमिट कर
कमर २८ तो मेरी ३२ कैसे ?
है सहज ईर्ष्या
ट्रेड मिल पर
एक -एक कैलोरी
का एक पिम्पल
नाक का आकर
कोई तिल
कर रख देता है सारा आत्मविश्वास
सिमट कर रह जाती है देह के मापदंडों में
हैं नया प्रसाधन
में आ जाता है नया अवसाद
पांच साल की गुड़ियाँ
है बार्बी डॉल से
मासूम बच्चों के मन में गढ़ती है
के सौंदर्य की परिभाषा
!खो गया है गुड़ियाँ का बचपन
तो बड़ी अदा से
में
है “टू पीस “में
दिखना चाहती है जवान उम्र से पहले
नन्ही उम्र जान गयी है
है बच्चा दिखना
ही हैं आकर्षण का केंद्र
आ इ ई
सीखने से पहले
दी है माँ ने दैहिक आकर्षण
की परिभाषा
से बीस साल की चंचला ,स्वीटी ,पिंकी
उम्र में कैरियर की जगह
है फ़िक्र “जीरो फिगर की “
इस कदर कि
मात्र देह
लगती है वज़नी
हैं “एनोरोक्ज़िआ नर्वोसा” की
लिया है गणित खाने व् वज़न के बीच
कहते ही करती हैं उलटी
पाप है अन्न खाना
देह में पड़ गयी है झुर्रियाँ
हो गया है मासिक चक्र
में बेवजह की उलझन
एक ही भय
वज़न न बढ़ जाये
लिए
होना ही सुंदरता है
बड़े मॉल में
में आंसूं भर एक महिला
से करती है बहस कि
रूम में
की फिटिंग देखने जाने दिया जाये
पति को
घरों की हंसती -मुस्कुराती दिखती यह महिलाएं
अवसाद ग्रस्त हैं
देह की सुंदरता को ही प्रेम का आधार मान लिया है
-रात डरती हैं
के ढलने से
होने से
के खोने के भय से
महिलाएं
से कम दिखने के असफल प्रयास में
हैं एफ बी पर
-शाम
मुद्राओं में फोटो
वाह -वाह और लाइक
पीछे हँसते लोग
पढ़ पाते हैं उनका अवसाद
बाज़ार के पढ़ाने पर
को ही माना था अब तक थाती
रिक्त हांथों में भर रहा है
और अवसाद
के बाज़ार वाद की शिकार
क्रीम में
हैं जीवन का उजलापन
लडकियाँ
के बाद एक खरीदती हैं अवसाद का सामान
से ज्यादा
दिखने की होड़ में
सुबह पालती हैं एक नयी उम्मीद
रात सौगात में मिलता है एक नया अवसाद
स्वयं ही अस्वीकार करती हैं स्वयं को
हैं खुद को कमतर
सौंदर्य प्रसाधन उध्योग
गढेंगी नारी को अपनी परिभाषा में
देंगी सिद्ध “देह ही है नारी “
उनका बाज़ार
गयी नारी
को ढालेगी सुंदरता के सांचों में
तृप्ति
के दैहिक रूप में
जाएगी
-बार हर बार
अवसाद
ग्रस्त और अतृप्त
वंदना बाजपेयी
#NaturalSelfi
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