आप के सामने आज
का अखबार पड़ा है | हत्या मार –पीट डकैती की खबरों पर उडती –उडती नज़र डालने
के बाद आप की नज़र टिक जाती है विज्ञापन पर जिसमें लिखा है दस दिन में वजन १० किलो
कैसे घटाए या आप अपने चेहरे के मुताबिक़
इयरिंग्स कैसे चुने | क्या आप ने कभी सोचा है ऐसा क्यों ? हम देश के संभ्रांत
नागरिक की जगह जीवन शैली के जूनून की हद
तक बाई प्रोडक्ट हो गए हैं | हममें से ज्यादातर का ध्यान देश की समस्याएं नहीं
बल्कि टी वी के १००चैनल, फैशन मैगजीन्स व् कपड़ों पर लिखे कुछ खास ब्रांडेड नेम्स खींचते
हैं |
और इस क्यों का केवल एक ही जवाब हैं हम अपने को या अपने किसी हिस्से को
बदलना चाहते हैं | क्योंकि हम उसको या शायद खुद को नापसंद करते हैं | यह एक बीमार सामाजिक मानसिकता का प्रतीक है
| हम ऐसे समाज का हिस्सा हो गए हैं जो
अवास्तविक मापदंडों पर दूसरों की और खुद की सुन्दरता को तौलता है | इसलिए हम सब
पसंद किये जाने या नापसंद किये जाने के भय से ग्रस्त रहते हैं |
महिलाओ की बात की जाए तो उनकी स्तिथि ओर भी ज्यादा गंभीर है | स्वेता और स्नेहा
उम्र २० वर्ष , टी वी पर किसी हेरोइन का ऐड देख कर आह क्या फिगर है कह कर अपनी
शारीरिक संरचना से असंतुष्ट हो जाती है | | वही दोनों किसी और पार्टी की फोटो में
उसी हेरोइन को उसी ड्रेस में देखती हैं | अब रूप रंग फिगर सब सामान्य नज़र आता है |
वो जानती हैं की वो फोटो शॉप की गयी
तस्वीर थी जानते समझते हुए भी उन पर से उस
फोटो शॉप की गयी तस्वीर का नशा और उसके जैसा बनने का जूनून नहीं उतरता है | यह असंतुष्टि उन्हें पढाई का कीमती समय बर्बाद
कर जिम जाने के लिए महंगे ब्यूटी प्रोडक्ट खरीदने के लिए विवश करती है | ये मेकअप की परतें उन्हें थोड़ी देर के लिए कुछ और होने का
अहसास कराती हैं पर अन्दर से वो अपनी असलियत जानती हैं | इसलिए आत्मविश्वास कम
होता जाता है | इतना कम की वो सुबह उठ कर शीशे में अपना मेक अप विहीन चेहरा देखना नहीं पसंद करती हैं | वो समझ ही नहीं
पाती की वो मेक उप के बिना भी सुन्दर हैं | ये खुद को पसंद करना नहीं खुद को
अस्वीकार करना हैं |
ये हकीकत है की मॉडल जैसा फिगर
पाने की चाहत में लडकियाँ बेजरूरत डाइटिंग करती हैं | कमजोरी के कारण चक्कर खा कर
गिरती हैं | कुछ तो अनिरोक्सिया नेर्वोसा नामक मानसिक बीमारी से ग्रस्त हो कर खाना
इस कदर छोड़ देती हैं की मात्र कंकाल रह जाती हैं | खुद को नापसंद करना इस हद तक की
जीवन ही खत्म हो जाए | ऐसे होंठ , ऐसी नाक ऐसे आँखे ऐसे पलके और ब्रांडेड कपडे
क्या इसी में ख़ुशी छिपी है | याद होगी बचपन की एक कहानी जब एक राजा ने “ हैप्पी मैन “ खोजने के लिए भेजा तो
सिपाहियों को पूरे राज्य में केवल एक ही आदमी मिला | पर अफ़सोस उसके पास शर्ट ही
नहीं थी |
अपूर्णता में भी एक सुन्दरता है जो हमें भीड़ से अलग करती है | जरा सोचिये अगर सब फोटो
शॉप की गयी तस्वीर की तरह एक जैसे हो जाए तब
क्या हमें कोई सुन्दर दिखेगा | भिन्नता में ही सुन्दरता है | दूसरा हमें यह
समझना होगा की ब्यूटी इंडस्ट्री आप के दोषों को छिपा कर आप को सुन्दर या परफेक्ट
नहीं बना रही है अपितु आप का धयान आपकी अपूर्णताओ पर दिला कर आप के अन्दर हीन
भावना या खुद को अस्वीकार करने की भावना पैदा कर रही हैं | इसी पर सारा सौन्दर्य
उद्योग टिका है | वो आपके आत्मविश्वास को तोड़ता है | और आप नए –नए उत्पाद इस्तेमाल
करके शीशे से पूंछतें हैं “ बता मेरे शीशे सबसे सुन्दर कौन ,और स्नो वाइट की माँ
की तरह निराश होते हैं |
क्लिनिकल साइकोलोजी और पोजिटिव साइकोलोजी में सकारात्मक रहने के लिए खुद को स्वीकार करना जरूरी है | पर
आज की मीडिया एरा ने परफेक्ट दिखने का जिन्न बोतल से निकाल दिया है | आत्म विश्वास के लिए आप का परफेक्ट दिखना जरूरी है |
अगर आप परफेक्ट नहीं दिखते हैं तो कम से कम अपनी अपूर्णताओ को छिपाइए व् परफेक्ट
महसूस करिए | कभी –कभी मेक अप कर लेना
बुरा नहीं है पर जूनून की हद तक खुद को
बदलने की इच्छा रखना वो परजीवी है जो सुख चैन को भी खा जाता है | अंत में मैं इतना
ही कहना चाहूँगी …
अपने को पसंद करिए , स्वीकार करिए | अपनी हिम्मत बढ़ाइए , क्योंकि अपने को स्वीकार करके
आप ज्यादा बहादुर सिद्ध होते हैं | याद रखिये खुद को पसंद करना सबसे बेहतरीन
सौन्दर्य प्रसाधन है जो आप इस्तेमाल कर सकते हैं |
वंदना बाजपेयी
सोंच समझ कर खर्च करें
तन की सुन्दरता में आकर्षण , मन की सुन्दरता में विश्वास
आखिर क्यों फ़ैल रहा है बाजारवाद
चलो चलें जड़ों की ओर
steek vishleshan.
धन्यवाद रचना जी