16 श्रृंगार -सिर्फ खूबसूरती ही नहीं, भाग्य भी बढ़ाता है सोलह श्रृंगार

 किरण सिंह

औरत और श्रृंगार एकदूसरे के पूरक हैं अब तक तो यही माना जाता आ रहा है और सत्य भी है क्यों कि सामान्यतः औरतों को श्रृंगार के प्रति कुछ ज्यादा ही झुकाव होता है ! हम महिलाएँ चाहे जितना भी पढ़ लिख जाये, कलम से कितनी भी प्रसिद्धि पा लें लेकिन सौन्दर्य प्रसाधन तथा वस्त्राभूषण अपनी तरफ़ ध्यान आकृष्ट कर ही लेते हैं !भारतीय संस्कृति में सुहागनों के लिए 16 श्रृंगार बहुत अहम माने जाते थे

बिंदी 
सिंदूर
चूड़ियाँ
बिछुए
पाजेब
नेलपेंट
बाजूबंद
लिपस्टिक 
आँखों में अंजन
कमर में तगड़ी
नाक में नथनी 
कानों में झुमके
बालों में चूड़ा मणि
गले में नौलखा हार
हाथों की अंगुलियों में अंगुठियाँ
मस्तक की शोभा बढ़ाता माँग टीका
बालों के गुच्छों में चंपा के फूलों की माला


सिर्फ खूबसूरती ही नहीं, भाग्य भी बढ़ाता है सोलह श्रृंगार –

ऋग्वेद में सौभाग्य के लिए किए जा रहे सोलह श्रृंगारों के बारे में विस्तार से बताया गया है।
जहाँ बिंदी भगवान शिव के तीसरे नेत्र की प्रतीक मानी जाती है तो सिंदूर सुहाग का प्रतीक !
काजल बुरी नज़र से बचाता है तो मेंहदी का रंग पति के प्रेम का मापदंड माना जाता है!
मांग के बीचों-बीच पहना जाने वाला यह स्वर्ण आभूषण सिंदूर के साथ मिलकर वधू की सुंदरता में चार चांद लगा देता है। ऐसी मान्यता है कि नववधू को मांग टीका सिर के ठीक बीचों-बीच इसलिए पहनाया जाता है कि वह शादी के बाद हमेशा अपने जीवन में सही और सीधे रास्ते पर चले और वह बिना किसी पक्षपात के सही निर्णय ले सके।

कर्ण फूल ( इयर रिंग्स) के पीछे ऐसी मान्यता है कि विवाह के बाद बहू को दूसरों की, खासतौर से पति और ससुराल वालों की बुराई करने और सुनने से दूर रहना चाहिए।गले में पहना जाने वाला सोने या मोतियों का हार पति के प्रति सुहागन स्त्री के वचनवद्धता का प्रतीक माना जाता है! 
पहले सुहागिन स्त्रियों को हमेशा बाजूबंद पहने रहना अनिवार्य माना जाता था और यह सांप की आकृति में होता था। ऐसी मान्यता है कि स्त्रियों को बाजूबंद पहनने से परिवार के धन की रक्षा होती और बुराई पर अच्छाई की जीत होती है।नवविवाहिता के हाथों में सजी लाल रंग की चूड़ियां इस बात का प्रतीक होती हैं कि विवाह के बाद वह पूरी तरह खुश और संतुष्ट है। हरा रंग शादी के बाद उसके परिवार के समृद्धि का प्रतीक है। 
 
सोने या चाँदी से बने कमर बंद में बारीक घुंघरुओं वाली आकर्षक की रिंग लगी होती है, जिसमें नववधू चाबियों का गुच्छा अपनी कमर में लटकाकर रखती हैं! कमरबंद इस बात का प्रतीक है कि सुहागन अब अपने घर की स्वामिनी है।और पायल की सुमधुर ध्वनि से घर आँगन तो गूंजता ही था साथ ही बहुओं पर कड़ी नज़र की रखी जाती थी कि वह कहाँ आ जा रही है ! 
इस प्रकार पुरानी परिस्थितियों, वातावरण तथा स्त्रियों के सौन्दर्य को ध्यान में रखते हुए सोलह श्रृंगार चिन्हित हुआ था! 

किन्तु आजकल सोलह श्रृंगार के मायने बदल से गये हैं क्योंकि आज के परिवेश में कामकाजी महिलाओं के लिए सोलह श्रृंगार करना सम्भव भी नहीं है फिर भी तीज त्योहार तथा विवाह आदि में पारम्परिक परिधानों के साथ महिलाएँ सोलह श्रृंगार करने से नहीं चूकतीं ! 

सोलह श्रृंगार भी हमारी संस्कृति और सभ्यता को बचाये रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है !

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