वक़्त की रफ़्तार




रचना व्यास
हालाँकि  वह  उच्चशिक्षिता  थी  पर  आशंकित  हो  उठी  जब  पति  के  साथ दिल्ली  में  शिफ्ट  हुई ।   आँखे  भर  आई  अपना  छोटा  क़स्बा  छोड़ते हुए जहाँ  उसे    उसकी  तीन  वर्षीया   बच्ची  को  भरपूर   दुलार व सुरक्षा  मिली ।   अख़बार  पढ़कर  वह  त्रस्त   हो  जाती ।  मन ही मन देवता  मनाती।  सोसाइटी  में  अब  उसे  सहेलियाँ   मिल  गई  थी ।  बातोंबातों   में  उसने  अपना  भय  बताया  तो  सभी  स्नेह  से  फटकारने  लगी कि   उसने  अब  तक  उसे  समझाया  नहीं ।   



शाम  को  बेटी  को  गोद  में लेकर  वह  कहने  लगी बेटा  अगर  कोई  अंकल  या  भैया  तुझे  दबोचे  तो
जोर  से  चीखना कोई  आपको  पकड़े  तो  चिल्लाना , बाहर  हमेशा मम्मापापा  का  हाथ  पकड़े  रहना और  किसी  से  टॉफी  भी  नहीं  लेना ।



नन्ही  ने  पाठ   रटने  की  तरह  सारी  बातें  दोहरा  दी ।  तभी  वह  बोलीमम्मा  आप  रो  क्यों  रही  हो ?”  उसे  आश्चर्य  था  वक़्त की  रफ़्तार पर  क्योंकि   उसे  ये  सीख  सोलहवें  साल  में  मिली  थी । 

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