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कान्हा तेरी प्रीत में
हुई बावरी मैं
तेरे रंग में रंग कर
हुई साँवरी में
भावे न अब कछु मोहे
तुझे देखती मैं
तुझे जपती मैं
तेरी प्रीत के गीत ही
गाती रहती मैं
कोई कहे चाहे कुछ भी
बनी मतवाली मैं
जब बजती बंसी तेरी
रुक न पाती मैं
आ कदम्ब के पेड़ तले
बैठी रहती मैं
तुम छलिया छलते सदा
मूरख बनती मैं
रास रचाते यमुना तीरे
तुम्हें देखती मैं
ना मैं मीरा ना मैं राधा
पर तेरी हूँ मैं
तेरी राह निहारूँ नित
किससे कहूँ मैं
तेरी प्रीत के रंग रंगी
भूल गई सब मैं।
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2–साँवरे
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साँवरे
अपने रंग
रंग दीन्हा।
मोर मुकुट
मन में बसाए
नैनों को अब
कुछ ना भाए
साँवरे
ये तूने
क्या कर दीन्हा।
बंसी तेरी
मधुर तान सुनाए
मन तेरी और
खींचा चला आए
साँवरे
ये कैसा
दुःख दीन्हा।
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3–मुरली
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कान्हा तेरी मुरली जब से बजी
सुन इसे सबने धीर धरी
कान्हा तेरी मुरली जब से बजी
सुन इसे सबकी पीर गई
कान्हा तेरी मुरली के रंग हज़ार
मिलें यहीं ढूंढों चाहे बाज़ार
कान्हा तेरी मुरली छलिया बड़ी
छल से मन में जाय बसी
कान्हा तेरी मुरली कहे पुकार
सुन इसे आओ मेरे द्वार
कान्हा तेरी मुरली ने छीना चैन
सब लीन्हा किया बेचैन
कैसा जादू किया तेरी मुरली ने
तेरे रंग में रंगा संसार
कान्हा तेरी मुरली अपरंपार
इसमें छिपा है जीवन सार।