– प्रदीप कुमार सिंह ‘पाल’,
शैक्षिक एवं वैश्विक
चिन्तक
चिन्तक
रोज के अख़बारों में न जाने कितनी खबरें ऐसी होती हैं जहाँ संवेदनहीनता स्पष्ट रूप से दिखाई देती है | क्या आज हम सब संवेदनहीन हो गए हैं ? हमारे पास दूसरों की मदद करने का समय ही नहीं है या हम करना ही नहीं चाहते ? क्या आज का जमाना ऐसा हो गया है जो ” मेरा घर मेरे बच्चो में सिमिट गया है |कहीं न कहीं हम सब पहले की तरह मिलजुल कर रहना चाहते हैं | एक संवेदनशील समाज चाहते हैं | पर हम सब चाहते हैं की इसकी शुरुआत कोई दूसरा करे | पर हर अच्छे काम की पहल स्वयं से करनी पड़ती है | एक बेहतर समाज निर्माण के लिए हर व्यक्ति के सहयोग की आवश्यकता होती है |
बढ़ रही है असंवेदनशीलता
यह सचमुच दुर्भाग्यपूर्ण है कि एक चलती-फिरती सड़क पर कोई
हादसा हो जाए, हादसे का शिकार
इंसान मदद के लिए चिल्लाता रहे और लोग उसकी ओर नजर डालकर आगे बढ़ जाएं या तमाशबीन
बनकर फोटो और वीडियो उतारने लगें। सब कुछ करें, बस उसकी मदद के लिए आगे न आएं। आखिर यह किस समाज में जी
रहें हम? शायद सेल्फी व फोटो की
दीवानगी और मदद करने के जज्बे की कमी ने यह सब आम कर दिया है। इस बार हादसा
कर्नाटक के हुबली में हुआ, जहां बस की टक्कर
से बुरी तरह जख्मी 18 वर्षीय साइकिल
सवार काफी देर तक सहायता के लिए चिल्लाता रहा, लेकिन कोई उसकी मदद को न आया। दुर्घटना के शिकार की मदद न
करना और उसकी तस्वीरें खींचते रहना, खुद हमारी और हमारी व्यवस्था, दोनों की
संवेदनहीनता का नतीजा है। ऐसे मामलों में लोगों को पुलिसिया प्रताड़ना से बचाने के
लिए सुप्रीम कोर्ट ने भी व्यवस्था दे रखी है।
हादसा हो जाए, हादसे का शिकार
इंसान मदद के लिए चिल्लाता रहे और लोग उसकी ओर नजर डालकर आगे बढ़ जाएं या तमाशबीन
बनकर फोटो और वीडियो उतारने लगें। सब कुछ करें, बस उसकी मदद के लिए आगे न आएं। आखिर यह किस समाज में जी
रहें हम? शायद सेल्फी व फोटो की
दीवानगी और मदद करने के जज्बे की कमी ने यह सब आम कर दिया है। इस बार हादसा
कर्नाटक के हुबली में हुआ, जहां बस की टक्कर
से बुरी तरह जख्मी 18 वर्षीय साइकिल
सवार काफी देर तक सहायता के लिए चिल्लाता रहा, लेकिन कोई उसकी मदद को न आया। दुर्घटना के शिकार की मदद न
करना और उसकी तस्वीरें खींचते रहना, खुद हमारी और हमारी व्यवस्था, दोनों की
संवेदनहीनता का नतीजा है। ऐसे मामलों में लोगों को पुलिसिया प्रताड़ना से बचाने के
लिए सुप्रीम कोर्ट ने भी व्यवस्था दे रखी है।
* अभी हाल ही की एक घटना में दो बच्चियों ने टीन पर चाॅक से
लिखकर अपने सौतेले पिता का पाप उकेरा। उन्होंने लिखा कि ‘मम्मी प्यारी मम्मी, हमारी इज्जत की सहायता करना, तुम हमको इस नर्क में छोड़कर क्यों चली गई। तुझे मालूम है
हमारे साथ क्या-क्या हो रहा है। हमको लड़ने की शक्ति देना, ताकि हम पापा को मिटा सकें। मम्मी, हम तुम्हारे बिना अधूरे हैं। हमारे पास आ जाओ, हम तुमको बहुत याद करती हैं।’ एक राहगीर ने उसे पढ़कर पुलिस को खबर कर दी।
पुलिस ने तुरन्त कार्यवाही करके आरोपी पिता को जेल भेज दिया। दोनों बच्चियों को एक
स्वयं सेवी संस्था को सौप दिया गया है। बच्चियों की इस मार्मिक पुकार को सुनकर
किसी का भी हृदय तथा आंखें भर आयेंगी। इन बच्चियों की हर तरह से मदद की जानी
चाहिए। समाज में उन्हें भरपूर प्यार तथा सुरक्षा मिले। हमारी ऐसी सदैव प्रार्थना
है।
लिखकर अपने सौतेले पिता का पाप उकेरा। उन्होंने लिखा कि ‘मम्मी प्यारी मम्मी, हमारी इज्जत की सहायता करना, तुम हमको इस नर्क में छोड़कर क्यों चली गई। तुझे मालूम है
हमारे साथ क्या-क्या हो रहा है। हमको लड़ने की शक्ति देना, ताकि हम पापा को मिटा सकें। मम्मी, हम तुम्हारे बिना अधूरे हैं। हमारे पास आ जाओ, हम तुमको बहुत याद करती हैं।’ एक राहगीर ने उसे पढ़कर पुलिस को खबर कर दी।
पुलिस ने तुरन्त कार्यवाही करके आरोपी पिता को जेल भेज दिया। दोनों बच्चियों को एक
स्वयं सेवी संस्था को सौप दिया गया है। बच्चियों की इस मार्मिक पुकार को सुनकर
किसी का भी हृदय तथा आंखें भर आयेंगी। इन बच्चियों की हर तरह से मदद की जानी
चाहिए। समाज में उन्हें भरपूर प्यार तथा सुरक्षा मिले। हमारी ऐसी सदैव प्रार्थना
है।
* एक सात साल की रूसी बच्ची का दिल जन्म से ही उसके सीने के
बाहर है। सीने की त्वचा के ठीक पीछे यह साफ तौर पर नजर आता है। अमेरिका में उसका
आॅपरेशन होने वाला है जो कि उसके लिए जीवन मौत का सवाल है। वर्सेविया बोरन
गोंचारोवा नाम की यह बच्ची पेट की एक बीमारी से पीड़ित है। इस दुर्लभ बीमार के
दुनिया में एक लाख में से केवल पांच लोग ही होते हैं। बच्ची ने बताया कि ये देखिये
ये मेरा दिल है। इसे इस तरह देखने वाली मैं अकेली ऐसी इंसान हूं। मैं चलती हूं,
छलांग लगाती हूं, हालांकि मुझे दौड़ना नही चाहिए लेकिन मैं दौड़ती हूं।
बाहर है। सीने की त्वचा के ठीक पीछे यह साफ तौर पर नजर आता है। अमेरिका में उसका
आॅपरेशन होने वाला है जो कि उसके लिए जीवन मौत का सवाल है। वर्सेविया बोरन
गोंचारोवा नाम की यह बच्ची पेट की एक बीमारी से पीड़ित है। इस दुर्लभ बीमार के
दुनिया में एक लाख में से केवल पांच लोग ही होते हैं। बच्ची ने बताया कि ये देखिये
ये मेरा दिल है। इसे इस तरह देखने वाली मैं अकेली ऐसी इंसान हूं। मैं चलती हूं,
छलांग लगाती हूं, हालांकि मुझे दौड़ना नही चाहिए लेकिन मैं दौड़ती हूं।
* यूपी पुलिस का दावा है कि राज्य में लड़कियों के मोबाइल
नंबरों की खुलेआम बिक्री हो रही है। मोबाइल फोन रिचार्ज करने वाली दुकानों पर
लड़कियों के मोबाइल नंबर बिक रहे हैं। महिला हेल्पलाइन पर 15 नवम्बर 2012 से 31 दिसम्बर 2016 के बीच कुल 6,61,129 शिकायतें दर्ज कराई गई हैं। इनमें से 5,82,854 शिकायतें टेलीफोन पर परेशान करने को लेकर थी।
इस मामले से पुलिस को सख्ती से निपटना चाहिए। मोबाइल रिचार्ज एजेंट बनाना काफी
आसान है। मोबाइल सेवा प्रदाता कंपनी से जुड़ी एजेंसी से संपर्क करना होता है और फिर
एक फार्म व सिक्योरिटी जमाकर दुकान खोल सकते हैं। सरकार को इस मामले में सख्त कदम
उठाने चाहिए।
नंबरों की खुलेआम बिक्री हो रही है। मोबाइल फोन रिचार्ज करने वाली दुकानों पर
लड़कियों के मोबाइल नंबर बिक रहे हैं। महिला हेल्पलाइन पर 15 नवम्बर 2012 से 31 दिसम्बर 2016 के बीच कुल 6,61,129 शिकायतें दर्ज कराई गई हैं। इनमें से 5,82,854 शिकायतें टेलीफोन पर परेशान करने को लेकर थी।
इस मामले से पुलिस को सख्ती से निपटना चाहिए। मोबाइल रिचार्ज एजेंट बनाना काफी
आसान है। मोबाइल सेवा प्रदाता कंपनी से जुड़ी एजेंसी से संपर्क करना होता है और फिर
एक फार्म व सिक्योरिटी जमाकर दुकान खोल सकते हैं। सरकार को इस मामले में सख्त कदम
उठाने चाहिए।
दिल को तसल्ली देती हैं कुछ अच्छी खबरें
चीन के साथ वर्ष 1962 के युद्ध के बाद सीमा पार कर जाने पर 50 साल से अधिक समय तक भारत में फंसा रहा एक चीनी
सैनिक वांग क्वी अपने भारतीय परिवार के सदस्यों के साथ चीन पहुंचा जहां उसका भव्य
स्वागत किया गया। उसका अपने परिवार के लोगों से भावनात्मक मिलन हुआ। वर्ष 1969 में भारतीय जेल से छुटने के बाद वह मध्य
प्रदेश के बालाघाट जिला स्थित तिरोदी गांव में बस गए। इस सैनिक के दुःख की झलक
बीबीसी के हालिया टीवी फीचर को चीनी सोशल मीडिया पर प्रसारित किया गया। इसके बाद
चीन सरकार ने भारत के साथ मिलकर उनकी वापसी के लिए प्रयास शुरू किये।
सैनिक वांग क्वी अपने भारतीय परिवार के सदस्यों के साथ चीन पहुंचा जहां उसका भव्य
स्वागत किया गया। उसका अपने परिवार के लोगों से भावनात्मक मिलन हुआ। वर्ष 1969 में भारतीय जेल से छुटने के बाद वह मध्य
प्रदेश के बालाघाट जिला स्थित तिरोदी गांव में बस गए। इस सैनिक के दुःख की झलक
बीबीसी के हालिया टीवी फीचर को चीनी सोशल मीडिया पर प्रसारित किया गया। इसके बाद
चीन सरकार ने भारत के साथ मिलकर उनकी वापसी के लिए प्रयास शुरू किये।
फ्रांस की आइरिस मितेनेयर ने मिस यूनिवर्स प्रतियोगिता के 65वें सत्र में वर्ष 2017 का ताज अपने नाम कर लिया वहीं हैती की राक्वेल पेलिशियर
दूसरे स्थान पर रहीं। मूल रूप से पेरिस की रहने वाली 24 वर्षीय आइरिस दंत शल्य चिकित्सा में स्नातक की पढ़ाई की है,
उनका लक्ष्य दांतों और मुख की स्वच्छता संबंधी
जागरूकता फैलाने का है। प्रतियोगिता में भारत से रोशमिता अकेली नहीं थी। पूर्व मिस
यूनिवर्स एवं भारतीय अभिनेत्री सुष्मिता सेन प्रतियोगिता में जज की भूमिका में थी।
सुष्मिता ने वर्ष 1994 में यह खिताब
जीता था। समारोह में उन्हें ‘‘बाॅलीवुड
सुपरस्टार पूर्व मिस यूनिवर्स और महिला अधिकारों की हिमायती’’ कहकर संबोधित किया गया था। वहीं अभिनेत्री
प्रियंका चोपड़ा ने दुनिया में बाल अधिकारों की निराशाजनक स्थिति को देखते हुए एक
भावनात्मक अपील की है। उन्होंने कहा है कि दुनियाभर के चार करोड़ 80 लाख बच्चे संघर्ष, आपदाओं का सामना कर रहे हैं। उन्हें आपकी जरूरत है।
प्रियंका को हाल में यूनिसेफ की ग्लोबल गुडविल एंबेसडर घोषित किया गया है।
दूसरे स्थान पर रहीं। मूल रूप से पेरिस की रहने वाली 24 वर्षीय आइरिस दंत शल्य चिकित्सा में स्नातक की पढ़ाई की है,
उनका लक्ष्य दांतों और मुख की स्वच्छता संबंधी
जागरूकता फैलाने का है। प्रतियोगिता में भारत से रोशमिता अकेली नहीं थी। पूर्व मिस
यूनिवर्स एवं भारतीय अभिनेत्री सुष्मिता सेन प्रतियोगिता में जज की भूमिका में थी।
सुष्मिता ने वर्ष 1994 में यह खिताब
जीता था। समारोह में उन्हें ‘‘बाॅलीवुड
सुपरस्टार पूर्व मिस यूनिवर्स और महिला अधिकारों की हिमायती’’ कहकर संबोधित किया गया था। वहीं अभिनेत्री
प्रियंका चोपड़ा ने दुनिया में बाल अधिकारों की निराशाजनक स्थिति को देखते हुए एक
भावनात्मक अपील की है। उन्होंने कहा है कि दुनियाभर के चार करोड़ 80 लाख बच्चे संघर्ष, आपदाओं का सामना कर रहे हैं। उन्हें आपकी जरूरत है।
प्रियंका को हाल में यूनिसेफ की ग्लोबल गुडविल एंबेसडर घोषित किया गया है।
पाकिस्तान की एक सुखद खबर यह है कि हाल के वर्षों में सोच बदली
है और लोग, खासकर महिलाएं सिनेमाघरों
में जाने लगी हैं। सिनेमा मालिकों ने मल्टीप्लेक्सों में पैसा लगाकार जो जोखिम
लिया था, वह भी मुनाफा देने लगा
है। आज ज्यादातर बड़े शहरों में एक से ज्यादा मल्टीप्लेक्स हैं और निवेशक अब दूसरे
दर्जे के छोटे शहरों-कस्बों की ओर देख रहे हैं। ये मल्टीप्लेक्स इसलिए फायदे में
नहीं हैं कि ये पश्चिम का सिनेमा दिखाते हैं, बल्कि इसलिए मुनाफे में हैं कि ये वह दिखा रहे हैं, जो पब्लिक देखना चाह रही है। पाकिस्तान में
मनोरंजन से भरी पारिवारिक भारतीय फिल्मों की जबर्दस्त मांग है और बड़े मुनाफे का
जरिया भी। पाकिस्तान में भारतीय फिल्मों को फिर से दिखाने के फैसले का हार्दिक
स्वागत किया गया है।
है और लोग, खासकर महिलाएं सिनेमाघरों
में जाने लगी हैं। सिनेमा मालिकों ने मल्टीप्लेक्सों में पैसा लगाकार जो जोखिम
लिया था, वह भी मुनाफा देने लगा
है। आज ज्यादातर बड़े शहरों में एक से ज्यादा मल्टीप्लेक्स हैं और निवेशक अब दूसरे
दर्जे के छोटे शहरों-कस्बों की ओर देख रहे हैं। ये मल्टीप्लेक्स इसलिए फायदे में
नहीं हैं कि ये पश्चिम का सिनेमा दिखाते हैं, बल्कि इसलिए मुनाफे में हैं कि ये वह दिखा रहे हैं, जो पब्लिक देखना चाह रही है। पाकिस्तान में
मनोरंजन से भरी पारिवारिक भारतीय फिल्मों की जबर्दस्त मांग है और बड़े मुनाफे का
जरिया भी। पाकिस्तान में भारतीय फिल्मों को फिर से दिखाने के फैसले का हार्दिक
स्वागत किया गया है।
देश के गुमनाम नायकों का पद्मश्री जैसा सम्मान सुखद अहसास
कराता है। पहली बार सरकार ने पद्मश्री जैसे प्रतिष्ठित पुरस्कारों के लिए आवेदन की
प्रक्रिया को आॅनलाइन और पारदर्शी बनाया, और कई योग्य लोग सामने आए। किसी खास राजनीतिक विचारधारा की तरफ झुकाव को
किनारे करके योग्य और मेधावी लोगों को राष्ट्रीय सम्मान या पुरस्कार देना किसी भी
सरकार के कामकाज का हिस्सा होना चाहिए। मगर अतीत में हमने गणतंत्र दिवस से जुड़े
सम्मानों व पुरस्कारों के राजनीतिकरण पर तमाम तरह के सवाल उठते देखे हैं। भला हो
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का, जिन्होंने इस
सम्मानों के लिए योग्यता को एकमात्र कसौटी बना दिया।
कराता है। पहली बार सरकार ने पद्मश्री जैसे प्रतिष्ठित पुरस्कारों के लिए आवेदन की
प्रक्रिया को आॅनलाइन और पारदर्शी बनाया, और कई योग्य लोग सामने आए। किसी खास राजनीतिक विचारधारा की तरफ झुकाव को
किनारे करके योग्य और मेधावी लोगों को राष्ट्रीय सम्मान या पुरस्कार देना किसी भी
सरकार के कामकाज का हिस्सा होना चाहिए। मगर अतीत में हमने गणतंत्र दिवस से जुड़े
सम्मानों व पुरस्कारों के राजनीतिकरण पर तमाम तरह के सवाल उठते देखे हैं। भला हो
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का, जिन्होंने इस
सम्मानों के लिए योग्यता को एकमात्र कसौटी बना दिया।
क्या है असंवेदनशीलता का कारण
लोग पढ़े-लिखे हों या अनपढ़, जब वे यह मान बैठते हैं कि आसानी से बड़ी कमाई की जा सकती है, तो वे धोखे का शिकार बनने के लिए तैयार हो जाते हैं। उत्तर प्रदेश के नोएडा से आॅनलाइन धोखाधड़ी करने वाली कंपनी का पकड़ा जाना बहुत कुछ कहता है। हमारी मानसिकता के बारे में, हमारे प्रशासन के बारे में और यह भी कि इन दोनों के मेल से जो स्थितियां बनती हैं, वे गलत तरीके अपनाने वालों को कितना बड़ा आधार देती हैं।
डाॅ0 एल्फ्रेड एडलर मानते हैं, ‘असुरक्षित व्यक्ति सबसे पहले हमारे भरोसे को हिलाता है।’ डाॅ. एडलर महान साइकोथिरेपिष्ट थे उनका नाम फ्रायड और जुंग के साथ लिया जाता है। ‘इनफीरियोरिटी काॅम्प्लेक्स’ उन्हीं का दिया शब्द है। उनकी मशहूर किताब है, अडरस्टैंडिंग ह्नयूमन नेचर। हमारी जिंदगी में किसी का असर इतना नहीं होना चाहिए कि कोई आए और हमें परेशान कर चला जाए। हमें उसके असर को एक किनारे कर अपने में लौटना चाहिए। अपनी खूबी और खामी को तभी हम ठीक से समझ पाएंगे। हम पर किसी का कुछ भी असर हो, लेकिन खुद में हमारा भरोसा नहीं टूटना चाहिए।
ख़ुशी देती है संवेदनशीलता ~अपने लिए जिए तो क्या जिए
दूसरों की खुशी के लिए खर्च करना हमें बेहतर करता है। यह
हमें मानवीय ही नहीं, धनी भी बनाता है।
अर्थशास्त्री जाॅन सी ब्रुक्स ने जब अमेरिका के सबसे बड़े उद्योगपतियों में एक जाॅन
राॅकफेलर की यह बात सुनी कि ‘मैंने इतना पैसा
इसलिए कमाया, क्योंकि मुझमें
लोगों की मदद करने का जज्बा था। मैंने लोगों को दिया, इसलिए मुझे मिला। साथी अर्थशास्त्रियों से उन्होंने कहा कि
तुम सिर्फ पैसे देखते हो, जबकि पैसा जो
खुशी देता है, हम उसे देखते
हैं। खुश व्यक्ति ज्यादा उत्पादक होता है।
हमें मानवीय ही नहीं, धनी भी बनाता है।
अर्थशास्त्री जाॅन सी ब्रुक्स ने जब अमेरिका के सबसे बड़े उद्योगपतियों में एक जाॅन
राॅकफेलर की यह बात सुनी कि ‘मैंने इतना पैसा
इसलिए कमाया, क्योंकि मुझमें
लोगों की मदद करने का जज्बा था। मैंने लोगों को दिया, इसलिए मुझे मिला। साथी अर्थशास्त्रियों से उन्होंने कहा कि
तुम सिर्फ पैसे देखते हो, जबकि पैसा जो
खुशी देता है, हम उसे देखते
हैं। खुश व्यक्ति ज्यादा उत्पादक होता है।
प्रसिद्ध मार्निया
राॅबिन्स ने इस बात को वैज्ञानिक तरीके से समझाया है। वह कहती हैं कि जब हम अपनी
खुशी के लिए कुछ करते हैं, तो डोपामाइन
हार्मोन निकलता है, जो एक तीव्र
इच्छा तो पैदा करता है, मगर संतुष्टि
नहीं देता। लेकिन दूसरों का भला सोचने पर आॅक्सीटोसिन हार्मोन निकलता है। यह
निःस्वार्थी, दयालु और
प्रेमपूर्ण बनाता है। यह हार्मोन सही मात्रा में नहीं निकले, तो इंसान आत्मकेंद्रित और अवसाद की ओर चला जाता
है।
राॅबिन्स ने इस बात को वैज्ञानिक तरीके से समझाया है। वह कहती हैं कि जब हम अपनी
खुशी के लिए कुछ करते हैं, तो डोपामाइन
हार्मोन निकलता है, जो एक तीव्र
इच्छा तो पैदा करता है, मगर संतुष्टि
नहीं देता। लेकिन दूसरों का भला सोचने पर आॅक्सीटोसिन हार्मोन निकलता है। यह
निःस्वार्थी, दयालु और
प्रेमपूर्ण बनाता है। यह हार्मोन सही मात्रा में नहीं निकले, तो इंसान आत्मकेंद्रित और अवसाद की ओर चला जाता
है।
अगर हमें सचमुच आगे बढ़ना है, तो देना सीखना
होगा।एक संवेदनशील समाज वही होता है जहाँ हम सिर्फ अपने लिए नहीं बल्कि दूसरों के लिए भी जीते हैं |
होगा।एक संवेदनशील समाज वही होता है जहाँ हम सिर्फ अपने लिए नहीं बल्कि दूसरों के लिए भी जीते हैं |
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आखिर हम इतने अकेले क्यों होते जा रहे हैं ?
क्यों लुभाते हैं फेसबुक पर बने रिश्ते
क्या आप भी ब्लॉग बना रहे हैं ?
आत्महत्या किसी समस्या का समाधान नहीं
आखिर हम इतने अकेले क्यों होते जा रहे हैं ?
क्यों लुभाते हैं फेसबुक पर बने रिश्ते
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आत्महत्या किसी समस्या का समाधान नहीं