संकलन – प्रदीप कुमार सिंह
वह अपने इलाके की सबसे लंबी लड़की थीं। सड़क पर चलतीं,
तो लोग पीछे मुड़कर
जरूर देखते। पश्चिम बंगाल के नदिया जिले के छोटे से कस्बे चकदा में पली-बढ़ीं झूलन
को बचपन में क्रिकेट का बुखार कुछ यंू चढ़ा कि बस वह जुनून बन गया। एयर इंडिया में
नौकरी करने वाले पिता को क्रिकेट में खास दिलचस्पी नहीं थी। हालांकि उन्होंने बेटी
को कभी खेलने से नहीं रोका। मगर मां को उनका गली में लड़कों के संग गेंदबाजी करना
बिल्कुल पसंद न था। बचपन में वह पड़ोस के लड़कों के साथ सड़क पर क्रिकेट खेला करती
थीं उन दिनों वह बेहद धीमी गेंदबाजी करती थीं लिहाजा लड़के उनकी गंेद पर आसानी से
चैके-छक्के जड़ देते थे। कई बार उनका मजाक भी बनाया जाता था। टीम के लड़के उन्हें
चिढ़ाते हुए कहते-झुलन, तुम तो रहने ही दो। तुम गेंद फेंकोगी, तो हमारी टीम हार जाएगी।
तो लोग पीछे मुड़कर
जरूर देखते। पश्चिम बंगाल के नदिया जिले के छोटे से कस्बे चकदा में पली-बढ़ीं झूलन
को बचपन में क्रिकेट का बुखार कुछ यंू चढ़ा कि बस वह जुनून बन गया। एयर इंडिया में
नौकरी करने वाले पिता को क्रिकेट में खास दिलचस्पी नहीं थी। हालांकि उन्होंने बेटी
को कभी खेलने से नहीं रोका। मगर मां को उनका गली में लड़कों के संग गेंदबाजी करना
बिल्कुल पसंद न था। बचपन में वह पड़ोस के लड़कों के साथ सड़क पर क्रिकेट खेला करती
थीं उन दिनों वह बेहद धीमी गेंदबाजी करती थीं लिहाजा लड़के उनकी गंेद पर आसानी से
चैके-छक्के जड़ देते थे। कई बार उनका मजाक भी बनाया जाता था। टीम के लड़के उन्हें
चिढ़ाते हुए कहते-झुलन, तुम तो रहने ही दो। तुम गेंद फेंकोगी, तो हमारी टीम हार जाएगी।
एक दिन यह बात उनके दिल को
लग गई। फैसला किया कि अब मैं तेज गेंदबाज बनकर दिखाऊंगी। तेज गेंदबाजी के गुरू
सीखे और लड़कों को पटखनी देने लगीं। जल्द ही झूलन की गंेदबाजी चर्चा का विषय बन गई।
यह बात पिता तक पहुंची। उन्होंने सवाल किया,
तो झूलन ने कहा- हां,
मैं क्रिकेटर बनना
चाहती हूं। प्लीज आप मुझे टेªनिंग दिलवाइए। यह सुनकर पिता को अच्छा नहीं लगा। तब झूलन 13 साल की थीं वह चाहते थे कि
बेटी पढ़-लिखकर अच्छी नौकरी करे। मगर बेटी क्रिकेट को करियर बनाने का इरादा बना
चुकी थी। आखिरकार उन्हें बेटी की जिद माननी पड़ी। उन दिनों नदिया में क्रिकेट टेªनिंग के खास इंतजाम नहीं थे।
लिहाजा झूलन ने कोलकाता की क्रिकेट अकादमी में टेªनिंग लेने का फैसला किया। माता-पिता के मन में बेटी
को क्रिकेटर बनाने को लेकर कई तरह की आशंकाएं थीं। क्रिकेट में आखिर क्या करेगी
बच्ची? कैसा होगा उसका भविष्य? मगर क्रिकेट अकादमी पहुंचकर उनकी सारी आशंकाएं दूर हो गईं। झूलन बताती हैं-
कोच सर ने मम्मी-पापा को समझाया कि अब लड़कियां भी क्रिकेट खेलती हैं। आप चिंता न
करें। आपकी बेटी बहुत बढ़िया गेंदबाज है। एक दिन वह आपका नाम रोशन करेगी। कोच की
बात सुनने के बाद मम्मी-पापा की फिक्र काफी हद तक कम हो गई।
तो झूलन ने कहा- हां,
मैं क्रिकेटर बनना
चाहती हूं। प्लीज आप मुझे टेªनिंग दिलवाइए। यह सुनकर पिता को अच्छा नहीं लगा। तब झूलन 13 साल की थीं वह चाहते थे कि
बेटी पढ़-लिखकर अच्छी नौकरी करे। मगर बेटी क्रिकेट को करियर बनाने का इरादा बना
चुकी थी। आखिरकार उन्हें बेटी की जिद माननी पड़ी। उन दिनों नदिया में क्रिकेट टेªनिंग के खास इंतजाम नहीं थे।
लिहाजा झूलन ने कोलकाता की क्रिकेट अकादमी में टेªनिंग लेने का फैसला किया। माता-पिता के मन में बेटी
को क्रिकेटर बनाने को लेकर कई तरह की आशंकाएं थीं। क्रिकेट में आखिर क्या करेगी
बच्ची? कैसा होगा उसका भविष्य? मगर क्रिकेट अकादमी पहुंचकर उनकी सारी आशंकाएं दूर हो गईं। झूलन बताती हैं-
कोच सर ने मम्मी-पापा को समझाया कि अब लड़कियां भी क्रिकेट खेलती हैं। आप चिंता न
करें। आपकी बेटी बहुत बढ़िया गेंदबाज है। एक दिन वह आपका नाम रोशन करेगी। कोच की
बात सुनने के बाद मम्मी-पापा की फिक्र काफी हद तक कम हो गई।
खेल के साथ पढ़ाई भी करनी थी। इसीलिए तय हुआ कि झूलन
हफ्ते में सिर्फ तीन दिन कोलकाता जाएंगी टेªनिंग के लिए। सुबह पांच बजे चकदा से लोकल टेªन पकड़कर कोलकाता स्टेशन
पहुंचतीं। इसके बाद सुबह साढ़े सात बजे तक बस से क्रिकेट अकादमी पहुंचना होता था।
दो घंटे के अभ्यास के बाद फिर बस और टेªन से वापस घर पहुंचतीं और किताबें लेकर स्कूल के
लिए चल पड़तीं। शुरूआत में पापा संग जाते थे। बाद में वह अकेले ही सफर करने लगीं
झूलन बताती हैं- घर से अकादमी तक आने-जाने में चार घंटे बरबाद होते थे। काफी थकावट
भी होती थी। मगर इसने मुझे शारीरिक और मानसिक रूप से बहुत मजबूत बना दिया। आज
जितना संघर्ष करते हैं, आपकी क्षमता उतनी ही बढ़ती जाती है। टेªनिंग के दौरान कोच ने उनकी तेज गेंदबाजी पर खास
फोकस किया। पांच फुट 11 इंच लंबा कद उनके लिए वरदान साबित हुआ। समय के साथ अभ्यास के घंटे बढ़ते गए।
स्कूल जाना कम हो गया। अब क्रिकेट जुनून बन चुका था। झूलन बताती हैं- मुझे जमे हुए
बल्लेबाज को आउट करने में बड़ा मजा आता था। सच कहूं, तो लंबे कद के कारण गेंद को उछाल देने में काफी
आसानी होती है। इसलिए मेरी राह आसान हो गई।
हफ्ते में सिर्फ तीन दिन कोलकाता जाएंगी टेªनिंग के लिए। सुबह पांच बजे चकदा से लोकल टेªन पकड़कर कोलकाता स्टेशन
पहुंचतीं। इसके बाद सुबह साढ़े सात बजे तक बस से क्रिकेट अकादमी पहुंचना होता था।
दो घंटे के अभ्यास के बाद फिर बस और टेªन से वापस घर पहुंचतीं और किताबें लेकर स्कूल के
लिए चल पड़तीं। शुरूआत में पापा संग जाते थे। बाद में वह अकेले ही सफर करने लगीं
झूलन बताती हैं- घर से अकादमी तक आने-जाने में चार घंटे बरबाद होते थे। काफी थकावट
भी होती थी। मगर इसने मुझे शारीरिक और मानसिक रूप से बहुत मजबूत बना दिया। आज
जितना संघर्ष करते हैं, आपकी क्षमता उतनी ही बढ़ती जाती है। टेªनिंग के दौरान कोच ने उनकी तेज गेंदबाजी पर खास
फोकस किया। पांच फुट 11 इंच लंबा कद उनके लिए वरदान साबित हुआ। समय के साथ अभ्यास के घंटे बढ़ते गए।
स्कूल जाना कम हो गया। अब क्रिकेट जुनून बन चुका था। झूलन बताती हैं- मुझे जमे हुए
बल्लेबाज को आउट करने में बड़ा मजा आता था। सच कहूं, तो लंबे कद के कारण गेंद को उछाल देने में काफी
आसानी होती है। इसलिए मेरी राह आसान हो गई।
कड़ी मेहनत रंग लाई। लोकल टीमों के साथ कुछ मैच
खेलने के बाद बंगाल की महिला क्रिकेट टीम में उनका चयन हो गया। बेटी मशहूर हो रही
थी, पर मां के लिए अब भी
वह छोटी बच्ची थी। जब तक वह घर लौटकर नहीं आ जातीं, मां को चैन नहीं पड़ता था। एक दिन वह मैच खेलकर देर
से घर पहुंचीं, तो हंगामा हो गया। झूलन बताती हैं- मैं देर से पहुंची, तो मां बहुत नाराज हुईं।
उन्होंने दरवाजा नहीं खोला। मुझे कई घंटे घर के बाहर खड़े रहना पड़ा। तब से मैंने तय
किया कि मैं कभी मां को बिना बताए घर देर से नहीं लौटूंगी। उन्हें मेरी फ्रिक्र थी,
इसलिए उनका गुस्सा
जायज था।
खेलने के बाद बंगाल की महिला क्रिकेट टीम में उनका चयन हो गया। बेटी मशहूर हो रही
थी, पर मां के लिए अब भी
वह छोटी बच्ची थी। जब तक वह घर लौटकर नहीं आ जातीं, मां को चैन नहीं पड़ता था। एक दिन वह मैच खेलकर देर
से घर पहुंचीं, तो हंगामा हो गया। झूलन बताती हैं- मैं देर से पहुंची, तो मां बहुत नाराज हुईं।
उन्होंने दरवाजा नहीं खोला। मुझे कई घंटे घर के बाहर खड़े रहना पड़ा। तब से मैंने तय
किया कि मैं कभी मां को बिना बताए घर देर से नहीं लौटूंगी। उन्हें मेरी फ्रिक्र थी,
इसलिए उनका गुस्सा
जायज था।
झूलन ने 18 साल की उम्र में अपना पहला टेस्ट मैच लखनऊ में
इंग्लैंड के खिलाफ खेला। इसके बाद अगले साल चेन्नई में इंग्लैंड के खिलाफ पहला
वन-डे अंतरराष्ट्रीय मैच खेलने का मौका मिला। सबसे बड़ी कामयाबी मिली 2006 में, जब उनकी बेहतरीन गेंदबाजी के
बल पर इंडियन टीम ने एक टेस्ट मैच में इंग्लैंड को हराकर बड़ी जीत हासिल की। इस मैच
में उनहोंने 78 रन देकर 10 विकेट हासिल किए। इसके बाद तेज गंेदबाजी की वजह से लोग उन्हें ‘नदिया एक्सप्रेस’ कहने लगे। 2007 में उन्हें आईसीसी की तरह
से महिला क्रिकेटर आॅफ द ईयर अवाॅर्ड दिया गया। वर्ष 2010 में अर्जुन अवाॅर्ड और 2012 में पद्मश्री से सम्मानित
की गईं। उनकी गेंदबाजी की गति 120 किलोमीटर प्रति घंटा है। इसलिए उन्हें दुनिया की सबसे तेज
महिला गेंदबाज होने का रूतबा हासिल है।
इंग्लैंड के खिलाफ खेला। इसके बाद अगले साल चेन्नई में इंग्लैंड के खिलाफ पहला
वन-डे अंतरराष्ट्रीय मैच खेलने का मौका मिला। सबसे बड़ी कामयाबी मिली 2006 में, जब उनकी बेहतरीन गेंदबाजी के
बल पर इंडियन टीम ने एक टेस्ट मैच में इंग्लैंड को हराकर बड़ी जीत हासिल की। इस मैच
में उनहोंने 78 रन देकर 10 विकेट हासिल किए। इसके बाद तेज गंेदबाजी की वजह से लोग उन्हें ‘नदिया एक्सप्रेस’ कहने लगे। 2007 में उन्हें आईसीसी की तरह
से महिला क्रिकेटर आॅफ द ईयर अवाॅर्ड दिया गया। वर्ष 2010 में अर्जुन अवाॅर्ड और 2012 में पद्मश्री से सम्मानित
की गईं। उनकी गेंदबाजी की गति 120 किलोमीटर प्रति घंटा है। इसलिए उन्हें दुनिया की सबसे तेज
महिला गेंदबाज होने का रूतबा हासिल है।
हाल में उन्होंने एक नया रिकार्ड अपने नाम
किया है। अब वह दुनिया की सबसे ज्यादा विकेट लेने वाली महिला क्रिकेटर बन गई
हैं।
किया है। अब वह दुनिया की सबसे ज्यादा विकेट लेने वाली महिला क्रिकेटर बन गई
हैं।
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