किरण सिंह
निजता एक तरह की स्वतंत्रता है | एक ऐसा दायरा जिसमें व्यक्ति खुद रहना चाहता है | इस स्वतंत्रता पर हर व्यक्ति का हक़ है – रौन पॉल
जिस प्रकार महिलाएँ किसी की बेटी बहन पत्नी तथा माँ हैं उसी प्रकार पुरुष भी किसी के बेटे भाई पति तथा पिता हैं इसलिए यह कहना न्यायसंगत नहीं होगा कि महिलायें सही हैं और पुरुष गलत ! पूरी सृष्टि ही पुरुष तथा प्रकृति के समान योग से चलती है इसलिए दोनों की सहभागिता को देखते हुए दोनों ही अपने आप में विशेष हैं तथा सम्मान के हकदार हैं!
महिलाएँ आधुनिक हों या रुढ़िवादी हरेक की कुछ अपनी पसंद नापसंद, रुचि अभिरुचि बंदिशें, दायरे तथा स्वयं से किये गये कुछ वादे होते हैं इसलिए वे अपने खुद के बनाये गये दायरे में ही खुद को सुरक्षित महसूस करती हैं ! उन्हें हमेशा ही यह भय सताते रहता है कि लक्ष्मण रेखा लांघने पर कोई रावण उन्हें हर न ले जाये ! वैसे तो ये रेखाएँ समाज तथा परिवार के द्वारा ही खींची गईं होती हैं किन्तु अधिकांश महिलाएँ इन रेखाओं के अन्दर रहने की आदी हो जातीं हैं इसलिए आजादी मिलने के बावजूद भी वे अपने लिये स्वयं रेखाएं खींच लेतीं हैं… ऐसे में इन रेखाओं को जो भी उनकी इच्छा के विरुद्ध लांघने की कोशिश करता है तो शक के घेरे में तो आ ही जाता है भले ही कितना भी संस्कारी तथा सुसंस्कृत क्यों न हो!
यह बात आभासी जगत में भी लागू होता है जहाँ महिलाओं को अभिव्यक्ति की आजादी मिली है ! यहाँ किसी का हस्तक्षेप नहीं है फिर भी अधिकांश महिलाओं ने अपना दायरा स्वयं तय कर लिया है.! जहाँ तक अपने बारे में जानकारी देना सही समझती हैं वे अपने प्रोफाइल, पोस्ट तथा तस्वीरों के माध्यम से दे ही देतीं हैं! और दायरों के अन्दर कमेंट के रिप्लाई में कुछ जवाब दे ही देतीं हैं |
इसीलिये बिना विशेष घनिष्टता या बिना किसी विशेष जरूरी बातों के मैसेज नहीं करना चाहिए और यदि कर भी दिये तो रिप्लाई नहीं मिलने पर यह समझ जाना चाहिए कि अमुक व्यक्ति को व्यक्तिगत तौर पर बातें करने में रुचि नहीं है या फिर उसके पास समय नहीं है और दुबारा मैसेज नहीं भेजना चाहिए !
इसके अलावा कमेंट तथा रिप्लाई भी दायरों में रह कर ही करना चाहिए ! जिससे पुरुषों के भी स्वाभिमान की रक्षा हो सके तथा वे अपने हिस्से का सम्मान प्राप्त कर सकें!
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परिचय …
साहित्य , संगीत और कला की तरफ बचपन से ही रुझान रहा है !
याद है वो क्षण जब मेरे पिता ने मुझे डायरी दिया.था ! तब मैं कलम से कितनी ही बार लिख लिख कर काटती.. फिर लिखती फिर……… ! जब पहली बार मेरे स्कूल के पत्रिका में मेरी कविता छपी उस समय मुझे जो खुशी मिली थी उसका वर्णन मैं शब्दों में नहीं कर सकती ….!
घर परिवार बच्चों की परवरिश और पढाई लिखाई मेरी पहली प्रार्थमिकता रही ! किन्तु मेरी आत्मा जब जब सामाजिक कुरीतियाँ , भ्रष्टाचार , दबे और कुचले लोगों के साथ अत्याचार देखती तो मुझे बार बार पुकारती रहती थी कि सिर्फ घर परिवार तक ही तुम्हारा दायित्व सीमित नहीं है …….समाज के लिए भी कुछ करो …..निकलो घर की चौकठ से….! तभी मैं फेसबुक से जुड़ गई.. फेसबुक मित्रों द्वारा मेरी अभिव्यक्तियों को सराहना मिली और मेरा सोया हुआ कवि मन फिर से जाग उठा …..फिर करने लगी मैं भावों की अभिव्यक्ति..! और मैं चल पड़ी इस डगर पर … छपने लगीं कई पत्र पत्रिकाओं में मेरी अभिव्यक्तियाँ ..!
पुस्तक- संयुक्त काव्य संग्रह काव्य सुगंध भाग २ , संयुक्त काव्य संग्रह सहोदरी सोपान भाग 2
मेरा एकल काव्य संग्रह है .. मुखरित संवेदनाएं