रंगनाथ द्विवेदी
औरतो की कट रही चोटी पे एक लेखकीय सहानुभूति
कुछ औरतो के चोटी कटने की खबर सुन——
मेरी लुगाई भी सदमे मे है।
वे सोये मे भी उठ जा रही बार-बार,
फिर चोटी टटोल सो जा रही,
अभी कल ही तो उसने——-
एक तांत्रिक के बताये कुछ सामान मंगवा के,
अपनी पुरी चोटी का तीन चक्कर लगा,
घर मे सुलगाई अंगीठी मे,
काला तील,लोबान,कपुर सब डाल कर,
आँख मुद अपनी चोटी के रक्षार्थ,
उस काले-कलुटे तांत्रिक के बताये,
उट-पटांग सा श्लोक पढ़,
फिर अपनी चोटी मे——-
15 से 20 मिनट तक नींबू और हरी मिर्च टांग,
अनमने मन से एक कप चाय लाती है।
उसके इस हाल पे हँसी और तरस दोनो आ रहा,
क्या करु पति हूँ————–
इसलिये मै उस चोटी काटने वाले से दुःखी हूँ।
@@@रचयिता——रंगनाथ द्विवेदी।
जज कालोनी,मियाँपुर
जौनपुर(उत्तर-प्रदेश)।