बुजुर्गों को दें पर्याप्त स्नेह व् सम्मान

सीताराम गुप्ता,
दिल्ली
     आज दुनिया के कई देशों में विशेष रूप से हमारे देश भारत में बुज़ुर्गों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है। ऐसे में उनकी समस्याओं पर विशेष रूप से ध्यान देना और उनकी देखभाल के लिए हर स्तर पर योजना बनाना अनिवार्य है। न केवल सरकार व समाजसेवी संस्थाओं को इस ओर पर्याप्त धन देने की आवश्यकता है अपितु हमें व्यक्तिगत स्तर भी बहुत कुछ करने की आवश्यकता है। कई घरों में बुज़्ाुर्गों के लिए पैसों अथवा सुविधाओं की कमी नहीं होती लेकिन वृद्ध व्यक्तियों की सबसे बड़ी समस्या होती है शारीरिक अक्षमता अथवा उपेक्षा और अकेलेपन की पीड़ा। कई बार घर के लोगों के पास समय का अभाव रहता है अतः वे बुज़्ाुर्गों के लिए समय बिल्कुल नहीं निकाल पाते। एक वृद्ध व्यक्ति सबसे बात करना चाहता है। वह अपनी बात कहना चाहता है, अपने अनुभव बताना चाहता है। वह आसपास की घटनाओं के बारे में जानना भी चाहता है। बुज़्ाुर्गों की ठीक से देख-भाल हो, उनका आदर-मान बना रहे व घर में उनकी वजह से किसी भी प्रकार की अवांछित स्थितियाँ उत्पन्न न हों इसके लिए बुजुर्गों  के मनोविज्ञान को समझना व उनकी समस्याओं को जानना ज़रूरी है।

     बड़ी उम्र में आकर अधिकांश व्यक्ति किसी न किसी शारीरिक अथवा मानसिक व्याधि से ग्रस्त हो जाते हैं। उम्र बढ़ने के साथ-साथ श्रवण-शक्ति व दृष्टि प्रभावित होने लगती है। कुछ लोगों में असुरक्षा की भावना बढ़ने लगती है व उनकी स्मरण शक्ति भी कमज़ोर हो जाती है जो वास्तव में बीमारी नहीं एक स्वाभाविक अवस्था है। बढ़ती उम्र में बुज़ुर्गों की आँखों की दृष्टि कमज़ोर हो जाना अत्यंत स्वाभाविक है। इस उम्र में यदि घर में अथवा उनके कमरे में पर्याप्त रोशनी नहीं होगी तो भी वे दुर्घटना का शिकार हो सकते हैं। बुज़ुर्गों को किसी भी प्रकार की अप्रिय घटना से बचाने के लिए उनके कमरे, बाथरूम व शौचालय तथा घर में अन्य स्थानों पर पर्याप्त रोशनी होनी चाहिये और यदि उनकी दृष्टि कमज़ोर हो गई है या पहले से ही कमज़ोर है तो समय-समय पर उनकी आँखों की जाँच करवा कर सही चश्मा बनवाना ज़रूरी है। कई लोग कहते हैं कि अब इन्हें कौन से बही-खाते करने हैं जो इनकी आँखों पर इतना ख़र्च किया जाए। यह अत्यंत विकृत सोच है। आँखें इंसान के लिए बहुत बड़ी नेमत होती हैं।

     श्रवण शक्ति का भी कम महत्त्व नहीं है। यदि किसी बुज़्ाुग की श्रवण शक्ति कमज़ोर है तो उसका भी उचित उपचार करवाना चाहिए। इनके अभाव में बुज़्ाुर्गों के साथ बहुत सी दुर्घटनाएँ होने की संभावना बनी रहती है। वृद्धावस्था में प्रायः शरीर में लोच कम हो जाती है और हड्डियाँ भी अपेक्षाकृत कमज़ोर और भंगुर हो जाती हैं अतः थोड़ा-सा भी पैर फिसल जाने पर गिर पड़ना और हड्डियों का टूट जाना स्वाभाविक है। गिरने पर बुज़ुर्गाें में कूल्हे की हड्डी टूूटना अथवा हिप बोन फ्रेक्चर सामान्य-सी बात है जो अत्यंत पीड़ादायक होता है। यदि हम कुछ सावधानियाँ रखें तो इस प्रकार की दुर्घटनाओं से बचा जा सकता है। यदि हम अपने आस-पास का अवलोकन करें तो पाएँगे कि ज़्यादातर बुज़्ाुर्ग बाथरूम में या चलते समय ही दुर्घटनाओं का शिकार होते हैं। प्रायः बाथरूमों में जो टाइलें लगी होती हैं उनकी सतह चिकनी होती हैं। पैर फिसलने का कारण प्रायः चिकनी सतह या उस पर लगी चिकनाई होती है। बाथरूम अथवा किचन का फ़र्श  प्रायः गीला हो जाता है और यदि उस पर चिकनाई की कुछ बूँदें भी होंगी तो वहाँ बहुत फिसलन हो जाएगी। जहाँ तक संभव हो सके बाथरूम व किचन में फिसलन विरोधी टाइलें ही लगवाएँ।

     तेल की बूँदों की चिकनाई के अतिरिक्त साबुन के छोटे-छोटे टुकड़े भी कई बार फिसलने का कारण बनते हैं। साबुन का एक अत्यंत छोटा-सा टुकड़ा भी बड़ी दुर्घटना का कारण बन सकता है अतः साबुन के छोटे-छोटे टुकड़ों को भी फ़र्श से बिल्कुल साफ़ कर देना चाहिए। शारीरिक कमज़ोरी के कारण बुज़ुर्गों को बाथरूम अथवा शौचालय में भी उठने-बैठने में दिक्कत होती है। पाश्चात्य शैली के शौचालय बुज़ुर्गों के लिए अपेक्षाकृत अधिक सुविधाजनक होते हैं। पाश्चात्य शैली के शौचालय के निर्माण के साथ-साथ यदि इन स्थानों पर कुछ हैंडल भी लगवा दिये जाएँ तो बुज़ुर्गों को बाथरूम अथवा शौचालय में उठने-बैठने में सुविधा होगी और वे गिरने के कारण फ्रेक्चर जैसी दुर्घटनाओं से बचे रह सकेंगे। इसके अतिरिक्त घर में अन्य स्थानों पर भी ज़रूरत के अनुसार हैंडल तथा सीढ़ियाँ और ज़ीनों के दोनों ओर रेलिंग लगवाना अनिवार्य प्रतीत होता है। जहाँ आवागमन ज़्यादा होता है वहाँ बिल्डिंगों की सीढ़ियाँ और ज़ीनों की सीढ़ियाँ भी घिस-घिस कर चिकनी हो जाती हैं। ऐसे ज़ीनों में साइडों में दोनों ओर पकड़ने के लिए रेलिंग लगानी चाहिएँ तथा अत्यंत सावधानीपूर्वक चलना चाहिए। घरों या बिल्डिंगों के मुख्य दरवाज़ों पर बने रैम्प्स की सतह भी अधिक चिकनी नहीं होनी चाहिए।

     उन्हें हर तरह से शारीरिक व मानसिक रूप से चुस्त-दुरुस्त बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए। वे पूर्णतः सक्रिय व सचेत बने रहें इसके लिए उनकी अवस्था व शारीरिक सामथ्र्य के अनुसार उनके लिए कुछ उपयोगी कार्य अथवा गतिविधियों को खोजने में भी उनकी मदद करनी चाहिए। बुज़ुर्गों का एक सबसे बड़ा सहारा होता है उनकी छड़ी। छड़ी के इस्तेमाल में शर्म नहीं करनी चाहिये। साथ ही छड़ी ऐसी होनी चाहिये जो हलकी और मजबूत होने के साथ-साथ चलते समय फर्श पर सही तरह से रखी जा सके। छड़ी का फ़र्श पर टिकाया जाने वाला निचला हिस्सा हमवार होना ज़रूरी है अन्यथा गिरने का डर बना रहता है। सही छड़ी का सही प्रयोग करने वाले बुज़ुर्गों में दुर्घटना की संभावना अत्यंत कम हो जाती है। वैसे अच्छी लकड़ी की बनी एक कलात्मक छड़ी सुरक्षा के साथ-साथ इस्तेमाल करने वाले के बाहरी व्यक्तित्व को सँवारने का काम भी करती है।

     अत्यधिक व्यस्तता के कारण कई बार हमारे पास समय नहीं होता या कम होता है तो भी कोई बात नहीं। हम अपने दृष्टिकोण में परिवर्तन करके उन्हें प्रसन्न रख सकते हैं व अपने कार्य करने के तरीके में थोड़ा-सा बदलाव करके उनके लिए कुछ समय भी निकाल सकते हैं। घर के बड़े-बुज़्ाुर्ग जब भी कोई बात कहें उनकी बात की उपेक्षा करने की बजाय उसे ध्यानपूवक सुनकर उत्तर देना चाहिए। कई बुज़्ाुर्गों को सिर्फ़ अपनी बात कहनी होती है। वे उसी में संतुष्ट हो जाते हैं। उन्हें चुप करवाने की बजाय उनकी बात सुन लेना ही इसका उपचार या समाधान है। यदि आप अत्यधिक व्यस्त हैं और आपके पास सचमुच उनकी बात सुनने का समय नहीं है तो कम से कम ऐसा अभिनय अवश्य करें जिससे उन्हें लगे कि उनकी उपेक्षा न करके उनकी बात सुनी जा रही है। उन्हें विश्वास दिलाएँ कि घर में उनका सबसे अधिक महत्त्व है। वे इसी से प्रसन्न हो जाएँगे। उनके स्वास्थ्य और ज़रूरतों के बारे में पूछते रहें।

     कई बार याद्दाश्त कमज़ोर होने के कारण प्रायः उन्हें सभी बातें याद नहीं रहतीं। उन्हें दवा वग़ैरा लेनी हो तो भी भूल जाते हैं। ऐसी अवस्था में उन्हें दोष देने या उन पर चिल्लाने की बजाय उन्हें दोबारा बात बताने या याद दिलाने की ज़रूरत है। जब हम अपने छोटे बच्चों की किसी बात का जवाब बार-बार दे सकते हैं तो बड़े-बुज़्ाुर्गों की बात का जवाब देते समय क्यों झुंझला जाते हैं? याद कीजिए वो दिन जब आप बच्चे थे और आपकी हर सही-ग़लत इच्छा को पूरा करने का प्रयास किया जाता था। बच्चों के लिए अपने माता-पिता के त्याग को याद रखना अनिवार्य है क्योंकि अंततोगत्वा सभी को इस अवस्था से गुज़रना होता है। यदि हम अपने बच्चों के सामने अपने वृद्ध माता-पिता की उपेक्षा करेंगे तो वो दिन दूर नहीं जब हमारे साथ भी यही दोहराया जाएगा क्योंकि बच्चे हमारे आचरण से ही तो सीखते हैं। यदि ऐसा नहीं होता है तो भी हमारा दायित्व है बुज़्ाुर्गों की अच्छी प्रकार से देखभाल करना व उनका सम्मान करना।

     घर में कोई भी कार्य करने से पहले उनकी सलाह ले ली जाए अथवा कार्य उनके हाथ से प्रारंभ करवा लिया जाए तो उन्हें लगेगा कि घर में आज भी उनका महत्त्व और सम्मान है। संभव है कोई अच्छी सलाह भी मिल जाए। प्रशंसा किसे अच्छी नहीं लगती? हर व्यक्ति अपने जीवन में कुछ ऐसे कार्य ज़रूर करता है जो प्रशंसा के योग्य होते हैं। अपने घर के बुज़्ाुर्गों के ऐसे कार्यों की चर्चा करते हुए उनकी प्रशंसा करेंगे तो उनको बहुत अच्छा लगेगा। यह असंभव है कि उन्होंने अपने बच्चों के लिए कुछ न कुछ त्याग न किया हो। कई बार हमें लग सकता है कि घर के बुज़्ाुर्गों की आवश्यकताएँ निरर्थक हैं क्योंकि हम उस अवस्था में नहीं होते हैं अतः उनकी आवश्यकताओं को ठीक से समझने का प्रयास करें। उनकी आवश्यकताओं को नज़रअंदाज़ करना किसी भी तरह से उचित नहीं। वो लोग भाग्यशाली होते हैं जिन्हें स्वयं अपने घर के बुज़्ाुर्गों की सेवा करने का अवसर मिलता है।

     घर के बुज़्ाुर्गों की आवश्यकताओं को महत्त्व व प्राथमिकता देना अनिवार्य है। जब भी बाज़ार वग़ैरा जाएँ उनसे अवश्य पूछ कर जाएँ कि उन्हें कुछ मँगवाना तो नहीं है। उनकी ज़रूरत से कुछ ज़्यादा ही उनके लिए लेकर आएँ। कम से कम ऐसी चीज़ें तो पर्याप्त मात्रा में लाई ही जा सकती हैं जो उनके द्वारा प्रयोग न किए जाने पर घर के दूसरे सदस्य प्रयोग में ला सकें। कपड़े, खाद्य पदार्थ, स्वास्थ्यवर्धक चीज़ें अथवा सामान्य दवाएँ जो उनके लिए उपयोगी हो सकती हैं विशेष रूप से उनको लाकर दें। ये हमारा कत्र्तव्य भी है और बड़े बुज़्ाुर्गों की प्रसन्नता के लिए अनिवार्य भी है। जिन घरों में किसी चीज़ की कमी नहीं होती लेकिन बुज़्ाुर्गों की ज़रूरतों को नज़रअंदाज़ कर उनकी उपेक्षा की जाती है उन घरों में रहने वाले लोगों को इंसान ही नहीं कहा जा सकता। कहा जाता है कि घर के बड़े-बुज़्ाुर्ग बिना तनख़्वाह के चैकीदार होते हैं। ये वाक्य उनके महत्त्व को प्रदर्शित करता है।

     जब भी किसी रिश्तेदारी वग़ैरा में किसी पारिवारिक समारोह अथवा आयोजन आदि में जाना हो तो घर के बुज़्ाुर्गों को भी साथ ले जाएँ। वो न भी जाना चाहें तो भी हर बार उनसे जाने के बारे में पूछें ज़रूर। वहाँ से लौटने पर प्राप्त उपहार अथवा मिष्ठान्न आदि उन्हें दिखलाएँगे व कार्यक्रम के विषय में उन्हें बताएँगे तो उन्हें बहुत प्रसन्नता होगी। यदि वो यात्रा आदि करने में सक्षम हैं तो कुछ ऐसे कार्यक्रम ज़रूर बनाएँ जहाँ बुज़्ाुर्गों को साथ ले जाना संभव हो। घर में कोई भी मेहमान आए उसको घर के बुज़्ाुर्गों से ज़रूर मिलवाएँ। उन्हें उनके कमरे तक लेकर जाएँ। कोई नया मेहमान है तो उसका परिचय दें। कई बार किसी काम के सिलसिले में कुछ ऐसे लोग भी घर आते हैं जिनका बुज़्ाुर्गों से परिचय करवाने का कोई औचित्य नहीं होता लेकिन कई बुज़्ाुर्गों की आदत होती है कि वो हर आने-जाने वाले के बारे में पूछते हैं। यदि वे किसी ऐसे व्यक्ति के बारे में भी जानना चाहते हैं तो उन पर ग़ुस्सा करने की बजाय उनका संक्षिप्त सा परिचय अवश्य दे दें। यदि हम कहीं जाते हैं तो हमारे लिए भी अनिवार्य है कि उस घर के बुज़्ाुर्गों से मिलकर उनका अभिवादन करें और उनके स्वाथ्य व उनकी कुशल के विषय में बातचीत करें। उनके लिए कुछ उपहार या फल आदि लेकर जाएँ।

     घर के बुज़्ाुर्गों को अंत तक ये लगना चाहिए कि ये मेरा परिवार है और मैं इसका प्रमुख हूँ। यदि बुज़्ाुर्गों में परिवार के प्रति आत्मीयता की भावना बनी रहेगी तो वो अपने अंत समय तक परिवार के लिए कुछ भी त्याग करने को तत्पर रहेंगे। वास्तव में बुज़्ाुर्गों का सम्मान करना भी हमारे ही हित में तो है। घर के बुज़्ाुर्गों का अकेलापन दूर करने के लिए कुछ घरेलू काम ऐसे होते हैं जो उनके पास बैठ कर, उनसे बतियाते हुए किए जा सकते हैं। आपको लगता है कि घर में ऐसे कोई काम नहीं हैं जो उनके पास बैठ कर किए जा सकते हैं तो कुछ ऐसे काम खोज डालिए। मसलन आप सब्ज़ियाँ काट रहे हैं अथवा सिलाई-कढ़ाई कर रहे हैं तो अपना सामान लेकर या तो उनके पास चले जाइए या उनको अपने पास बुलाकर बिठा लीजिए। काम भी हो जाएगा और बातचीत से घर के बड़े-बुज़्ाुर्गों का अकेलापन भी कुछ हद तक अवश्य दूर हो जाएगा।

     अख़बार या कोई पुस्तक पढ़ रहे हैं तो घर के बुज़्ाुर्गों के पास बैठकर पढ़ने में क्या हर्ज़ हो सकता है? अख़बार पढ़ें ही नहीं उन्हें भी प्रमुख समाचार पढ़कर सुनाएँ व समाचारों पर उनसे चर्चा करें। ये उनकी मानसिक सतर्कता के लिए भी उपयोगी रहेगा। कपड़े तह करके रख रहे हैं अथवा कपड़ों पर प्रेस कर रहे हैं तो भी घर के बड़े-बूढ़ों के पास जाकर या उन्हें पास लाकर ये काम किया जा सकता है। घर में बहुत छोटे बच्चे हैं तो उन्हें घर के बुज़्ाुर्गों के पास ले जाकर उनका काम करें। छोटे बच्चों को घर के बुज़्ाुर्गों के पास खेलने के लिए प्रेरित करें। इससे बुज़्ाुर्गों का भी मन लगा रहेगा और वो छोटे बच्चों को ज़रूरी जानकारी देने के साथ-साथ उन्हें नैतिकता का पाठ भी पढ़ाते रहेंगे। जिन घरों में बुज़्ाुर्गों का उचित सम्मान नहीं होता अथवा बुज़्ाुर्गों व छोटे बच्चों के बीच दूरी बनाकर रखी जाती है उन घरों में अगली पीढ़ियाँ कभी भी पूर्णतः उन्मुक्तहृदय, सामाजिक व सुसंस्कृत नहीं हो सकतीं अतः हर हाल में बुज़्ाुर्गों का सम्मान व उनकी उचित देखभाल अनिवार्य है।

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2 thoughts on “बुजुर्गों को दें पर्याप्त स्नेह व् सम्मान”

  1. Aaj Ke Jamane Me Single Family hona hi sbse bada karan bnata ja raha hai. jisme sirf log apne paise kamane ke aage apne mata pita aur yaha tak ki baccho ko bhi time nhi de pate hai..
    Nice Post .. logo ko Ish Post prerna leni chahiye.
    Thanks For Share a nice post

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