कोई तो हो जो सुन ले



कभी – कभी हमें एक तर्क पूर्ण दिमाग के जगह एक खूबसूरत दिल की जरूरत होती है जो हमारी बात सुन ले – अज्ञात 
                                 उफ़ !कितना बोलते हैं सब लोग , बक – बक , बक -बक | चरों तरफ शोर ही शोर | ये सच है की हम सब बहुत बोलते हैं | पर सुनते कितना हैं ?हम सुबह से शाम तक कितने लोगों से कितनी साड़ी बातें करते हैं | पर  कभी आपने गौर किया है की जब मन का दर्द किसी से बांटना चाहो तो केवल एक दो नाम ही होते हैं | उसमें से भी जरूरी नहीं की वो पूरी बात सुन ही लें | 



                                                बात तब की है जब मैं एक बैंक में किसी काम से गयी थी |बैंक में पेपर तैयार होने में कुछ समय था | मैं इंतज़ार के समय में कुछ सार्थक करने के उद्देश्य से बैंक के सामने बने सामने पार्क में एक बेंच पर बैठ कर किताब पढने लगी | समय का इससे अच्छा सदुपयोग मुझे कुछ लगता नहीं | तभी एक अजनबी महिला मेरे पास आई और बोली ,” क्या आप भी टेंश हैं , वैसे भी आजकल के ज़माने में कौन टेंशन में नहीं है |” मैं उनको देख कर मुस्कुराई | वो मेरे बगल में बैठ गयीं फिर खुद ही  बोलीं मैं बहुत टेन्स हूँ | मैंने प्रश्न वाचक नज़रों से उनकी ओर देखा | जैसे कोई बीज नर्म मिटटी पा कर अंकुरित होने लगता हैं , वैसे ही  वो अपने दिल की एक – एक पर्त खोलने लगीं | अपने तनाव की , अपने दर्द की , अपनी तकलीफों की | मैं बिना कोई राय व्यक्त किये बस सुनती जा रही थी |

अंत में मैं उनके हाथ पर हाथ रख कर बोली ,” आप परेशान न हों , हर समस्या अपने साथ समाधान ले कर आती है | आपकी भी समस्याओं का हल होगा | वो बस अभी आपके दिमाग में कहीं अंदर  छिपा हुआ है , सतह पर नहीं आया | पर आएगा जरूर |बस आप अपनी सेहत का ध्यान रखें व् कूल माइंड से फैसले लें | उन्होंने मुझे थैंक्स कहा और मैं अपना बैग उठा कर चल दी , शायद उनसे फिर कभी न मिलने के लिए | पर रास्ते में ये सोंचते हुए की आखिर क्या कारण है की संयुक्त परिवार में रहने वाली इस महिला को ( रिश्तों की भीड़ से घिरी होने के बावजूद ) अपना दर्द किसी अजनबी से शेयर करने की जरूरत पड़ीं | 


क्या हम रिश्तों की भीड़ में अकेले हैं ?

क्या आप ने महसूस किया है की जब हम किसी अपने को अपना दर्द सुनाते हैं तो 
कई बार वो  इस तरह से सुनते हैं की उनके हाव – भाव बता देते हैं की वो बहुत बोर हो रहे हैं | कई बार  बात बीच में ही काट कर अपनी राय दे देते हैं और कुछ जल्दी से हाँ में हाँ मिला कर किस्सा ही खत्म करना कहते हैं | या हम जब किसी अपने को अपना दर्द सुनाते हैं तो वो बहुत जजमेंटल हो जाता है | जिससे सुनाने वाले को लगता है की उसकी तकलीफ का मजाक उड़ाया जा रहा है |और अपनों के होते हुए भी अपनापन कम होता जा रहा है |शायद इसी लिए हम सब कितना दर्द सीने में दबाये हुए एक हमदर्द ढूंढते रहते हैं | और बंद होंठों के अंदर ही अंदर चीख – चीख कर कहते हैं ” कोई तो हो जो सुन ले ” 

वंदना बाजपेयी 
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