हम अपने जीवन में अनेक सपने
सजाते हैं | निरंतर अनेक इच्छाएँ पैदा करते हैं और उन्हें पूरा करने के लिए बड़े-बड़े
लक्ष्य बनाते हैं | अपने इन्हीं लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए अनेकानेक योजनाएँ
बनाते हैं और जी जान से जुट जाते हैं किन्तु विडंबना ये है कि अक्सर हम किसी भी
काम के पूरा होने में अधिक समय लगता देखकर निराश हो उठते हैं और अपनी उन योजनाओं
को बीच में ही छोड़ देते हैं | कहीं न कहीं हम नकारात्मकता से भर उठते हैं और अपने समस्त
प्रयास बंद कर देते हैं | यह निराशा और नकारात्मक सोच ही हमारी सफलता की राह की
सबसे बड़ी बाधा है | काफी साल पहले मैंने एक किस्सा सुना था जो कुछ यूँ था –
सजाते हैं | निरंतर अनेक इच्छाएँ पैदा करते हैं और उन्हें पूरा करने के लिए बड़े-बड़े
लक्ष्य बनाते हैं | अपने इन्हीं लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए अनेकानेक योजनाएँ
बनाते हैं और जी जान से जुट जाते हैं किन्तु विडंबना ये है कि अक्सर हम किसी भी
काम के पूरा होने में अधिक समय लगता देखकर निराश हो उठते हैं और अपनी उन योजनाओं
को बीच में ही छोड़ देते हैं | कहीं न कहीं हम नकारात्मकता से भर उठते हैं और अपने समस्त
प्रयास बंद कर देते हैं | यह निराशा और नकारात्मक सोच ही हमारी सफलता की राह की
सबसे बड़ी बाधा है | काफी साल पहले मैंने एक किस्सा सुना था जो कुछ यूँ था –
एक
व्यक्ति था जो कि बहुत ही परिश्रमी था | उसने अपने पूरे जीवन के लिए अनेक योजनाएँ
बना रखीं थीं और उन्हें पाने के लिए भरसक प्रयास भी करता था लेकिन उसकी एक बड़ी
कमजोरी थी कि वह बहुत जल्द ही निराश हो जाता था | इसी निराशा के चलते वह अनेकों
कार्यों को आजमाता रहा | किन्तु धैर्य और सकारात्मकता का आभाव होने के कारण वह
जल्द ही पुराने काम को बीच में ही छोड़ नए कामों पर हाथ आजमाने लगता और इसी प्रकार
दिन गुज़रते गए |
व्यक्ति था जो कि बहुत ही परिश्रमी था | उसने अपने पूरे जीवन के लिए अनेक योजनाएँ
बना रखीं थीं और उन्हें पाने के लिए भरसक प्रयास भी करता था लेकिन उसकी एक बड़ी
कमजोरी थी कि वह बहुत जल्द ही निराश हो जाता था | इसी निराशा के चलते वह अनेकों
कार्यों को आजमाता रहा | किन्तु धैर्य और सकारात्मकता का आभाव होने के कारण वह
जल्द ही पुराने काम को बीच में ही छोड़ नए कामों पर हाथ आजमाने लगता और इसी प्रकार
दिन गुज़रते गए |
एक रोज़ उसकी मृत्यु हो गई और वह अपनी अनेक अधूरी इच्छाओं के साथ
दुनिया से विदा हो गया | जब वह स्वर्ग पहुँचा तो देवदूत उसे एक कमरे में ले गए
जहाँ वे सभी चीज़ें बड़े ही करीने से सजी रखीं थीं, जिन्हें पाने की इच्छा वह धरती
पर किया करता था |
दुनिया से विदा हो गया | जब वह स्वर्ग पहुँचा तो देवदूत उसे एक कमरे में ले गए
जहाँ वे सभी चीज़ें बड़े ही करीने से सजी रखीं थीं, जिन्हें पाने की इच्छा वह धरती
पर किया करता था |
उसने देवदूत से पूछा – “क्या ये सब मेरे लिए हैं
!”
!”
देवदूत ने उत्तर दिया – “जी हाँ ! ये सारी चीज़ें
आपकी ही हैं | ये वे ही चीज़ें हैं जिन्हें आप पाना चाहते हैं |”
आपकी ही हैं | ये वे ही चीज़ें हैं जिन्हें आप पाना चाहते हैं |”
“…..तो ये सब आपने मुझे जीते-जी ही धरती पर ही
क्यों नहीं दीं !”
क्यों नहीं दीं !”
“हम तो देना ही चाहते थे | आप जैसे ही इच्छा
करते थे, हम तुरंत बनाना शुरू कर देते थे और फिर हम जैसे ही आपको देने वाले होते
थे कि आप उसे पाने का ख्याल छोड़ कुछ और चाहने लगते थे ….फिर हम आपके लिए उस
दूसरी चीज़ को बनाने में जुट जाते थे | इस प्रकार कुछ चीज़ें तो हम आपको दे पाए और
कुछ नहीं दे पाए, लेकिन समय के साथ-साथ सब यहीं इकट्ठी होतीं गईं | ये सब आपकी ही
हैं, आप इनका इस्तेमाल कीजिए |”
करते थे, हम तुरंत बनाना शुरू कर देते थे और फिर हम जैसे ही आपको देने वाले होते
थे कि आप उसे पाने का ख्याल छोड़ कुछ और चाहने लगते थे ….फिर हम आपके लिए उस
दूसरी चीज़ को बनाने में जुट जाते थे | इस प्रकार कुछ चीज़ें तो हम आपको दे पाए और
कुछ नहीं दे पाए, लेकिन समय के साथ-साथ सब यहीं इकट्ठी होतीं गईं | ये सब आपकी ही
हैं, आप इनका इस्तेमाल कीजिए |”
मित्रों
! ये एक काल्पनिक कथा है | दूसरी दुनिया का सच हम नहीं जानते | लेकिन इस दुनिया के
सच से हम सब बखूबी परिचित हैं | और यह सच है कि जब हम अपने भीतर किसी भी तरह की
इच्छा पैदा करते हैं तो हमारी सारी शक्ति, सोच, प्रकृति, गतिविधियाँ उसे प्राप्त
करने के लिए उद्यत हो उठतीं हैं | आवश्यकता है तो बस ‘मनोबल’ की | यदि हम पूरे जोश
और लगन के साथ किसी काम को करने में जुट जाएँ तो वह काम अवश्य ही पूरा होता है
जबकि थककर या निराश होकर उस काम को बीच में ही छोड़ दें तो असफलता ही हाथ लगती है |
यदि हम कोई खवाहिश पैदा करें तो उसे पाने के लिए अपनी पूरी निष्ठा और शक्ति लगा
दें | हम कभी भी न तो निराश हों और न ही हताश | हमारी लगन और आत्मबल ही हमारे भीतर
वो उत्साह और शक्ति पैदा करता है जो कठिन से कठिन काम को भी आसन और सहज प्राप्य
बनाते हैं |
! ये एक काल्पनिक कथा है | दूसरी दुनिया का सच हम नहीं जानते | लेकिन इस दुनिया के
सच से हम सब बखूबी परिचित हैं | और यह सच है कि जब हम अपने भीतर किसी भी तरह की
इच्छा पैदा करते हैं तो हमारी सारी शक्ति, सोच, प्रकृति, गतिविधियाँ उसे प्राप्त
करने के लिए उद्यत हो उठतीं हैं | आवश्यकता है तो बस ‘मनोबल’ की | यदि हम पूरे जोश
और लगन के साथ किसी काम को करने में जुट जाएँ तो वह काम अवश्य ही पूरा होता है
जबकि थककर या निराश होकर उस काम को बीच में ही छोड़ दें तो असफलता ही हाथ लगती है |
यदि हम कोई खवाहिश पैदा करें तो उसे पाने के लिए अपनी पूरी निष्ठा और शक्ति लगा
दें | हम कभी भी न तो निराश हों और न ही हताश | हमारी लगन और आत्मबल ही हमारे भीतर
वो उत्साह और शक्ति पैदा करता है जो कठिन से कठिन काम को भी आसन और सहज प्राप्य
बनाते हैं |
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