-रंगनाथ द्विवेदी।
जज कालोनी,मियाँपुर
जौनपुर(उत्तर–प्रदेश)।
औरतो की खूशनुमा जिंदगी मे जह़र की तरह है तलाक——-
औरत आखिर बगावत न करती तो क्या करती,
जिसने अपना सबकुछ दे दिया तुम्हें,
उसके हिस्से केवल सादे कागज़ पे लिखा——
तीन मर्तबा तुम्हारा तलाक था।
इस्लाम और सरिया की इज़्ज़त कब इसने नही की,
फिर क्यू आखिर—————-
केवल मर्दो के चाहे तलाक था।
मै हलाला से गुजरु और सोऊ किसी गैर के पहलु,
फिर वे मुझे छोड़े,
उफ! मेरे हिस्से एै खुदा———-
कितना घिनौना तलाक था।
महज़ मेहर की रकम से कैसे गुजरती जिंदगी,
दो बच्चे मेरे हिस्से देना,
आखिर मेरे शौहर का ये कैसा इंसाफ था,
मै पुछती बताओ मस्जिदो और खुदा के आलिम-फा़जिल,
कि आखिर मुझ बेगुनाह को छोड़ देना———
कुरआन की लिखी किस आयत का तलाक था।
पढ़िए ………..रंगनाथ द्विवेदी का रचना संसार
Nice poem… Divya shukla
बहुत बढ़िया।