वंदना बाजपेयी
डेरा सच्चा सौदा के राम – रहीम की
गिरफ्तारी के बाद जिस तरह से भीड़ पगलाई और उसने हिंसा व् आगजनी का सहारा लिया |उससे तो
यही लगता है की बाबा के भक्त आध्यात्मिक तो बिलकुल नहीं थे | आध्यात्म
तो सामान्य स्वार्थ से ऊपर उठना सिखाता है | आत्म
तत्व को जानना सिखाता है | जो सब में मैं की तलाश करता है वो तो चींटी को भी नहीं मार सकता |फिर इतनी
हिंसा इतनी आगज़नी |
डेरा सच्चा सौदा के राम – रहीम की
गिरफ्तारी के बाद जिस तरह से भीड़ पगलाई और उसने हिंसा व् आगजनी का सहारा लिया |उससे तो
यही लगता है की बाबा के भक्त आध्यात्मिक तो बिलकुल नहीं थे | आध्यात्म
तो सामान्य स्वार्थ से ऊपर उठना सिखाता है | आत्म
तत्व को जानना सिखाता है | जो सब में मैं की तलाश करता है वो तो चींटी को भी नहीं मार सकता |फिर इतनी
हिंसा इतनी आगज़नी |
इस बात की परवाह नहीं की जिसे हिंसा की भेंट चढ़ाया जा रहा है उससे उनकी कोई निजी
दुश्मनी भी नहीं है | ये आध्यत्मिक होना नहीं आतंक फैलाना है | अपनी बात शांति
पूर्वक रखने के कई तरीके थे | पर भीड़ ने वो तरीका अपनाया जो अनुयायी होने के आवरण
के अंदर सहज रूप से उसके रक्त में प्रवाहित था | हिंसा क्रोध और उन्माद का | आज उन
तमाम बाबाओं पर अँगुली उठ गयी है जो आध्यात्म का नाम ले कर अपनी दुकाने चला रहे
हैं | वो दुकाने जो धीरे – धीरे उनकी सत्ता में परिवर्तित हो जाती हैं | जहाँ “
नेम , फेम और पावर का गेम चलता है |
दुश्मनी भी नहीं है | ये आध्यत्मिक होना नहीं आतंक फैलाना है | अपनी बात शांति
पूर्वक रखने के कई तरीके थे | पर भीड़ ने वो तरीका अपनाया जो अनुयायी होने के आवरण
के अंदर सहज रूप से उसके रक्त में प्रवाहित था | हिंसा क्रोध और उन्माद का | आज उन
तमाम बाबाओं पर अँगुली उठ गयी है जो आध्यात्म का नाम ले कर अपनी दुकाने चला रहे
हैं | वो दुकाने जो धीरे – धीरे उनकी सत्ता में परिवर्तित हो जाती हैं | जहाँ “
नेम , फेम और पावर का गेम चलता है |
प्रश्न ये उठता है की सब समझते हुए सब जानते हुए आखिर लोग
क्यों इन बाबाओं के अनुयायी बन जाते हैं | सच्चाई ये है की इन बाबाओं की दुकानों
पर जाने वाला आम आदमी एक डरा हुआ कमजोर आदमी है | जी हाँ , ये डरे हुए
आम आदमी जिनमें खुद अपनी समस्याओं के समाधान की हिम्मत नहीं हैं | तलाशते
हैं कोई बाबा कोई , संत कोई फ़कीर , जो कर दे चमत्कार , चुटकियों
में हो जाए हर समस्या का सामाधान …
क्यों इन बाबाओं के अनुयायी बन जाते हैं | सच्चाई ये है की इन बाबाओं की दुकानों
पर जाने वाला आम आदमी एक डरा हुआ कमजोर आदमी है | जी हाँ , ये डरे हुए
आम आदमी जिनमें खुद अपनी समस्याओं के समाधान की हिम्मत नहीं हैं | तलाशते
हैं कोई बाबा कोई , संत कोई फ़कीर , जो कर दे चमत्कार , चुटकियों
में हो जाए हर समस्या का सामाधान …
हो जाए बेटी की शादी , कहाँ से
लाये दहेज़ की रकम | बरसों हो गए जिसके लिए योग्य दूल्हा ढूंढते , ढूंढते | बड़का की
नौकरी लग जाए | क्या है की बाबूजी रिटायर होने वाले हैं | घर कैसे
चलेगा ? छुटकू का मन पढने में लग जाए | पास हो
जाए बस | ब्याही बिटिया को दामाद चाहने लगे | जोरू का गुलाम हो जाए |कोई जंतर
मंतर कोई तावीज कहीं कोई चमत्कार तो हो जाए | इन्हीं
चमत्कारों की तालाश में आम आदमी खुद ही उगाते हैं बाबाओं की फसल | आध्यात्म
के लिए नहीं चमत्कार के लिए |
लाये दहेज़ की रकम | बरसों हो गए जिसके लिए योग्य दूल्हा ढूंढते , ढूंढते | बड़का की
नौकरी लग जाए | क्या है की बाबूजी रिटायर होने वाले हैं | घर कैसे
चलेगा ? छुटकू का मन पढने में लग जाए | पास हो
जाए बस | ब्याही बिटिया को दामाद चाहने लगे | जोरू का गुलाम हो जाए |कोई जंतर
मंतर कोई तावीज कहीं कोई चमत्कार तो हो जाए | इन्हीं
चमत्कारों की तालाश में आम आदमी खुद ही उगाते हैं बाबाओं की फसल | आध्यात्म
के लिए नहीं चमत्कार के लिए |
ये बाबा भी जानते हैं की समस्याएं चमत्कार से नहीं पावर से खत्म होती
हैं |इसलिए ये अपनी पावर बढाने में लग जाते हैं | राजनैतिक
कनेक्शन बनाते हैं | ताकि उनके व् उनके तथाकथित भक्तों के हितों का समर्थन होता रहे | बाबा के पास जैसे ही अनुयायी बढ़ने लगते हैं | उन्हें
सरकारी मदद से आश्रम के नाम पर जमीने मिलने लगती हैं | हर चीज पर सब्सिडी मिलने
लगती है | फिर क्यों न उनका साम्राज्य फले फूले | दरसल इन बाबाओं का आध्यत्म से
कुछ लेना देना नहीं होता है | ये स्वयं अपनी समस्याओं से हार कर अध्यात्म की और
पलायन करे हुए लोग होते हैं जो मौका मिलते ही अपना मुखौटा उतार कर अपनी पूरी
महत्वाकांक्षाओ के साथ शुद्ध व्यापारी रूप में आ जाते हैं | जो निज हित में आध्यात्म
का सौदा करते हैं , धर्म का सौदा करते हैं | धर्म की आड़ में सारे अधार्मिक काम
करते हैं | ये सिर्फ नाम के आध्यात्मिक बाबा हैं | अपनी
वेशभूषा को छोड़कर ये पूरा आलिशान जीवन जीते हैं |महंगी गाड़ियों में घूमना ,
फाइव स्टार होटलों में रुकना इनका शगल है |
ये बाबा जानते हैं की
कभी न कभी इनको पकड़ा जा सकता है | इसलिए ये एक ऐसी शुरूआती भीड़ की व्यवस्था भी कर
के रखते हैं की पकडे जाने पर उत्पात मचा सके | उन्हें
पता है की भीड़ भीड़ को फॉलो करती हैं | उन्हें
देख कर और अनुयायी जुड़ ही जायेंगे | और भीड़ भी बुद्धि को ताक पर रख कर चल देती है इन बाबाओं के पीछे – पीछे |
न जाने कितने बाबा पकडे जा चुके हैं | फिर भी बाबाओं की नयी फ़ौज रोज आ रही है |
रोज नए अनुयायी बन रहे हैं | जय बाबा – जय बाबा का उद्घोष चल रहा है | और क्यों न
हो …
कभी न कभी इनको पकड़ा जा सकता है | इसलिए ये एक ऐसी शुरूआती भीड़ की व्यवस्था भी कर
के रखते हैं की पकडे जाने पर उत्पात मचा सके | उन्हें
पता है की भीड़ भीड़ को फॉलो करती हैं | उन्हें
देख कर और अनुयायी जुड़ ही जायेंगे | और भीड़ भी बुद्धि को ताक पर रख कर चल देती है इन बाबाओं के पीछे – पीछे |
न जाने कितने बाबा पकडे जा चुके हैं | फिर भी बाबाओं की नयी फ़ौज रोज आ रही है |
रोज नए अनुयायी बन रहे हैं | जय बाबा – जय बाबा का उद्घोष चल रहा है | और क्यों न
हो …
हम डरे हुए आम आदमी चमत्कार की तलाश में न जाने कितने लोगों को
बाबाओं की गद्दी पर सुशोभित करेंगे | जो नेम फेम और पावर गेम से हमारा ही शोषण
करेंगे | कुछ पकडे जायेंगे , कुछ छिपे रहेंगे | और हम नाच – नाच कर गाते रहेंगे |
बाबाओं की गद्दी पर सुशोभित करेंगे | जो नेम फेम और पावर गेम से हमारा ही शोषण
करेंगे | कुछ पकडे जायेंगे , कुछ छिपे रहेंगे | और हम नाच – नाच कर गाते रहेंगे |
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आखिर हम इतने अकेले क्यों होते जा रहे हैं ?
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क्या आप भी ब्लॉग बना रहे हैं ?
आत्महत्या किसी समस्या का समाधान नहीं
न जाने कब हमारा समाज अपने आप को इन बाबाओ के चंगुल से मुक्त करने में सफल होगा।
बहुत सार्थक पोस्ट।
धन्यवाद ज्योति जी