उत्पल शर्मा “पार्थ”
राँची -झारखण्ड
वक़्त हो
चला था परिवार वालों से विदा लेने का, छुट्टी ख़त्म
हो गयी थी। घर से निकलने ही वाला था सहसा सिसकियों की आवाज से कदम रुक गए, मुड़ कर देखा तो बूढी माँ आँचल से अपने आंसुओं को पोछ रही थी।
चला था परिवार वालों से विदा लेने का, छुट्टी ख़त्म
हो गयी थी। घर से निकलने ही वाला था सहसा सिसकियों की आवाज से कदम रुक गए, मुड़ कर देखा तो बूढी माँ आँचल से अपने आंसुओं को पोछ रही थी।
शायद अब
वो सोच रही हो की उम्र हो चली है ना जाने फिर देख भी पाऊँगी या नहीं, अपने आंसुओं को दिल में दफ़न कर मैं निकल आया, दिल भारी सा हो गया था मुझमे इतनी भी हिम्मत नहीं थी को पीछे
मुड़ कर अपने परिवार वालो को अलविदा कह सकूँ, बस एक
उम्मीद थी मैं वापिस आऊंगा और मेरी बूढ़ी माँ उस चौखट पर मेरा स्वागत करेगी…
वो सोच रही हो की उम्र हो चली है ना जाने फिर देख भी पाऊँगी या नहीं, अपने आंसुओं को दिल में दफ़न कर मैं निकल आया, दिल भारी सा हो गया था मुझमे इतनी भी हिम्मत नहीं थी को पीछे
मुड़ कर अपने परिवार वालो को अलविदा कह सकूँ, बस एक
उम्मीद थी मैं वापिस आऊंगा और मेरी बूढ़ी माँ उस चौखट पर मेरा स्वागत करेगी…
जी हाँ
मैं एक फौजी हूँ और मुझसे कहीं ज्यादा देश के लिये समर्पित “मेरी माँ”
है ।।
मैं एक फौजी हूँ और मुझसे कहीं ज्यादा देश के लिये समर्पित “मेरी माँ”
है ।।
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