@@@रचयिता—-रंगनाथ दुबे।
जज कालोनी,मियाँपुर
जौनपुर।
थाने पे——–
एक गरीब की बिटिया,
अपनी सलवार उतारे———
जगह-जगह हुये रेप के घाव दिखा रही है।
दरोगा———-
बार-बार थप थपाके देख रहा,
दाँत और नाखून चुभे———
उरोजो को बार-बार।
लड़की सिहर उठी—उसी रेप के छुअन कासा,
ऐहसास हुआ उसे!
वे समझ गई आँख भर-भरा आई उसकी,
कि अब एक रात और चीखेगी थाने पे,
फिर हरे हो जायेंगे—————
ना भरने के लिये उसकी उरोजो पे ताजिंदगी,
एै,रंग———–ये रेप के घाव।