काश जाति परिवर्तन का मंत्र होता

काश जाति परिवर्तन का मंत्र होता
क्या मन्त्र से जाति बदल सकती है 



किरण सिंह

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बिना किसी
पूर्व सूचना दिए ही मैं नीलम से मिलने उसके घर गई…! सोंचा आज सरप्राइज दूं |
घंटी बजाते हुए मन ही मन सोंच रही थी कि इतने दिनों बाद नीलम मुझे देखकर उछल
पड़ेगी..! पर क्या दरवाजा आया खोलती है और घर में घुसते ही चारों तरफ़ सन्नाटा
पसरा हुआ | मेरा तो जी घबराने लगा और आया से पूछ बैठी कि घर में सब ठीक तो है
न….! तभी अपने बेडरूम से नीलम आई और अपने चेहरे की उदासी पर पर्दा डालने के लिए
मुस्कुराने का प्रयास करती हुई…! पर मैं अपने बचपन की सहेली के मनोभावों को कैसे
न पढ़ लेती|फिर भी प्रतिउत्तर में मैं भी मुस्कुराते हुए उसके समीप ही सोफे पर बैठ
गई….!



मैंने
हालचाल पूछने के क्रम में नीलम से उसकी बेटी स्नेहा का हाल भी पूछ लिया,
और स्नेहा के रिश्ते के लिए एक
बहुत ही योग्य स्वजातीय  अच्छा लड़का बताया
| क्योंकि नीलम अक्सर ही मुझसे कहा करती थी कि तुम्हारे नज़र में कोई अच्छा लड़का
हो तो बताना…… बल्कि कई बार फोन पर भी बोली थी स्नेहा तुम्हारी भी बेटी है …
लड़का ढूढने की जिम्मेदारी तुम्हारी……! पर क्या मैंने लड़के के बारे में बताना
शुरू किया तो वो मेरी बात बीच में ही रोकते हुए चाय लाती हूँ, कहकर किचेन में चली
गई….!


मुझे
अकेले बैठे देख नीलम की सास मेरे समीप आकर बैठ गई जैसे वे नीलम के अन्दर जाने की
प्रतीक्षा ही कर रही थी……….! और कहने लगीं…बहुते मन बढ़ गया है आजकल के
बचवन का….. एक से बढ़कर एक रिश्ता देखे रहे नंदकिशोर
  ( उनका बेटा नीलम के पति ) बाकीर
स्नेहा बियाह करे खातिर तैयारे नाहीं है…! मैंने कहा पूछ लीजिए नेहा से कहीं
किसी और को तो नहीं पसंद कर ली है…
? मेरे इतना कहने पर आंटी झल्ला उठीं कहने लगीं तुम भी कइसन बात करने लगी किरण…….
अरे हमन लोग ऊँची जाति के हैं कइसे अपने से नीच जाति में अपन घर की इज्जत ( बेटी )
दे दें.. अउर नीच जाति का स्वागत सत्कार हम ऊँची जाति वाले अपन दरवाजे पर नाहीं
करे सकत हैं…! अरे एतना इज्जत कमाया है हमर लड़का नन्दकिशोर… सब मिट्टी मा मिल
जाई…! एही खातिर पहिले लोग बेटी का जनम लेते ही मार देत रहा सब….अब ओकरे पसंद
के नीच जाति मैं बियाह करब तो खानदान पर कलंके न लगी…इ कइसन बेटी जनम ले ली हमर
नन्द किशोर का…..!
मैं आंटी
की बातें बिना किसी तर्क किए चुपचाप सत्यनारायण भगवान् की कथा की तरह सुन रही थी.|और
याद आने लगी आंटी की पिछली वो बातें जब मैं पिछली बार यहां आई थी…!
आंटी नेहा की प्रशंसा करते नहीं
थक रही थी |  कह रहीं थीं एकरा कहते हैं
परवरिश….. आज तक नेहा पढाई में टॉप करत रह गई…पहिले बार में नौकरियो बढिया
कम्पनी में हो गवा…..अउर एतना मोटा रकम पावे वाली बेटी को देखो तो तनियो घमंड ना
है
| उका……………..घर का भी सब काम कर लेत है…. अउर खाना के तो पूछ मत….
किसिम किसीम के
  (तरह तरह का) खाना बनावे जानत है…… आदि आदि…………….. भगवान् केकरो
( किसी को भी ) *बेटी दें तो नेहा जइसन…. और तब मैं आंटी के हां में हां मिलाते
जाती थी| तभी नीलम नास्ते का ट्रे लेकर आ गई और मैं स्मृतियों से वापस वर्तमान में
लौट आई…!


आंटी की
बातों से नेहा की उदासी का पूरा माजरा समझ चुकी थी मैं, फिर भी मैं नीलम के मुह से
सुनना चाहती थी इसलिए नीलम से पूछा आखिर बात क्या है नीलम……………… और
स्नेहा किसे पसंद की है….. लड़का क्या करता है आदि आदि……….
नीलम की
आँखें छलछला आईं… और आँसू पोंछते हुए मुझसे कहने लगी लड़का आईआईएम से मैनेजमेंट
करके जाॅब कर रहा है पचास लाख का पैकेज है……. देखने में भी हैंडसम है……बाप
की बहुत बड़ी फैक्ट्री है….!

मैंने कहा
तो अब क्या चाहिए… इतना अच्छा लड़का तो दिया लेकर ढूढने से भी नहीं मिलेगा….
फिर ये आंसू क्यों……
? मैं सबकुछ समझते हुए भी नीलम से
पूछ रही थी…!
 नीलम कहने लगी लड़का बहुत छोटी जाति का है…. किसी और शहर में रहता तो कुछ
सोंचा भी जा सकता था…अपने ही शहर का है….. लोग तरह-तरह की बातें करेंगे…. हम
लोगों का शहर में रहना मुश्किल हो जाएगा…!

मैंने कहा
लोगों की छोड़ो पहले तुम क्या सोंचती हो ये बताओ…
?
नीलम कहने
लगी मेरे चाहने न चाहने से क्या होगा…. मेरे पति इस रिश्ते के लिए कतई तैयार
नहीं हैं… और मैं अपने पति के खिलाफ नहीं जाऊँगी….! और फिर उसके आँखों से आँसू
छलक पड़े………….
  नेहा कहने लगी…. सुबह चार बजे से उठकर…… दिन रात एक करके मेरे पति कितना
मेहनत करके बच्चों को पढ़ाए…. कितना दिल में अरमान था स्नेहा के विवाह
का……….मेरे बच्चे इतने स्वार्थी हो जाएंगे मैंने सपने में भी नहीं सोंचा
था…. काश कि उसे इतना नहीं पढ़ाए होते…!

मैंने बीच
में रोकते हुए नीलम से पूछा…. इस विषय में तुम स्नेहा से खुद बात की..
? नीलम ने कहा हां एक दिन मेरे पति ने बहुत परेशान होकर कहा कि पूछो स्नेहा से
कि वो सोसाइट करेगी या मैं कर लूँ….! मेरी तो जान ही निकल गई थी मैंने स्नेहा को
समझाने की भरपूर कोशिश की… पर उसका एक ही उत्तर था कि मैं यदि अंकित से शादी नहीं
करूंगी तो किसी और से भी नहीं कर सकती.. अंकित को मैं बचपन से जानती हूँ उसके
अलावा मैं किसी और के बारे में सोच भी नहीं सकती…… फिर मैंने धमकाया भी कि तब
तुम्हें हमलोगों से रिश्ता तोड़ना पड़ेगा…… फिर वो खूब रोने लगी… बोली प्लीज
माँ मैं किसी को भी छोड़ना नहीं चाहती….. अंकित यदि छोटी जाति में पैदा हुआ है
तो इसमें उसकी क्या गलती है….. उससे कम औकात वाले करोड़ों रुपये दहेज में मांगते
हैं और उसको भी उसके स्वजातिय देंगे ही…… आखिर उसमें कमी क्या है……. और
झल्ला कर कहने लगी रोज धर्म परिवर्तन हो रहा है क्या छोटी जाति को ऊँची जाति में
परिवर्तन करने का कोई उपाय नहीं है…… प्लीज मम्मी कुछ करो….!

मैं  सोंचने लगी सही ही तो कह रही है
स्नेहा…! बालिग है… आत्मनिर्भर है….तो क्या अपना जीवन साथी स्वयं चुनना
गुनाह है क्या….. क्या ये लोग स्नेहा से रिश्ता खत्म कर लेंगे तो इज्जत बढ़
जाएगी क्या…
?..
क्यों
नहीं ये लोग समाज को एक दिशा दे देते हैं…… इतना ज्यादा पढ़ा लिखा कर….. फिर
पुरानी सोंच की जंजीरों में क्यों जकड़े हुए हैं…………… अरे लोगों का क्या
कुछ दिन मनोरंजन कर खुद ही चुप हो जाएंगे………. वैसी इज्जत किस काम की जो
बच्चों की खुशियों के कब्र पर बनी हो….!


और मुझसे
रहा नहीं गया और मैं बोल ही दी……देखो नीलम गलती स्नेहा की नहीं तुम लोगों की
सोंच में है……. एक तरफ तुम लोग चाहती हो बच्चे जमाने के साथ कदम मिलाकर चलें
और दूसरी तरफ़ पुरानी घिसी-पिटी परम्पराओं को भी चाहती हो बच्चे ढोएं……यदि हम
वर्ण विभाजन की बात करें तो विभाजन कर्म के आधार पर हुआ था…….. इस हिसाब से तो
स्नेहा और अंकित स्वजातिय हुए क्योंकि वे दोनों एक ही कम्पनी में कार्यरत
हैं…… अपनी जाति में विवाह का प्रावधान इसलिए था कि किसी अन्य जाति धर्म वाले
घरों में लड़कियों को सामंजस्य स्थापित करने में काफी कठिनाइयों का सामना करना
पड़ता….!

तबतक आंटी  ( नीलम की सास ) आ गई और मेरी बात
को बीच में रोककर बोलने लगीं………. किरण तुम भी कइसन बात करने लगी……
तुम्हारा बेटा है न इसीलिए तुम लड़की वालों की समस्या नाहीं समझोगी……हमलोगन आज
तक अपने जीवन में बहुते इज्जत कमाए हैं……… जब इज्जते नाहीं बची त जिनगी काहे
की……
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जी में तो
आ रहा था आंटी को बोल ही दूं कि क्या दुर्गति सहना पड़ा था उनकी बेटी को ससुराल
में………….. स्वजातिय विवाह ही तो हुआ था……….किसी और से अवैध सम्बन्ध
रखने वाले पति से मार खाकर तंग आ गई थी अनिता और अंत में तंग आकर आत्महत्या कर ली
थी बेचारी ……………. पर बोली नहीं………सिर्फ मन ही मन ईश्वर से
प्रार्थना कर रही थी कि हे ईश्वर इन्हें सद्बुद्धि दो……….

और विचार
करने लगी काश कोई जाति परिवर्तन का भी मंत्र होता…….
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5 thoughts on “काश जाति परिवर्तन का मंत्र होता”

  1. जाति प्रथा सभी समाज के मुँह पर धब्बा है | काश की ऐसा कोई मंत्र होता की हम इस व्यवस्था को खत्म कर पाते | एक अच्छा सन्देश देती हुई सुलझी कहानी के लिए हार्दिक आभार किरण जी

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  2. नीलम की तरह धर्म संकट मैंने भी झेला है लेकिन दोनों की जिद थी कि शादी अरेंज होगी और दोनों परिवारों की सहमति.से । पति , घर वाले , मेरे भाई सब ने मेरी परवरिश को कोसा । लेकिन मेरे बड़े दामाद ने कह दिया कि करूँगा शादी और कन्यादान । अब आप लोग सोच लें । सब शामिल हुए और मेरे दोनों दामाद बेटों से ज्यादा ख्याल रखते हैं ।

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