वंदना बाजपेयी
सुनो तुम , रात को घर से बाहर मत जाना , दुपट्टा से सर पूरा ढक लेना , पूरे दांत दिखा के मत हँसना … जब परिवार वाले अपने ही घर की बेटी बहुओं पर यह कह कर मना करते हैं तो उनके अन्दर एक भय रहता है | वो भय उनके मन में बैठा है अखबार की उन सुर्ख़ियों से जो न सिर्फ सफ़ेद पन्नों पर काले अक्षरों से लिखी जाती हैं बल्कि किसी स्त्री के जीवन के आगे के सारे पन्नों को स्याह कर देती हैं | स्त्री के साथ होने वाले सबसे खौफनाक अपराधों में से एक है बालात्कार | क्या पुरुष का यह पाशविक रूप स्त्री के सामने इसलिए आता है क्योंकि वो शारीरिक रूप से कमजोर है ? रेप या बालात्कार उसे तन से नहीं तोड़ता मन से भी तोड़ देता है |मन के घाव जीवन भर नहीं भरते | स्त्री अपना पूरा आत्म विश्वास खो बैठती है | परन्तु आज मेरा इस लेख को लिखने का उद्देश्य उस महिला को सलाम करने का है जिन्होंने इस हादसे के बाद न केवल खुद को शारीरिक व् मानसिक रूप से संभाला बल्कि हर महिला को रास्ता दिखाया की ” हम कमजोर नहीं हैं ”
आज हम एक ऐसी ही महिला के बारे में बता रहे हैं |उस महिला का नाम है मुख्तार माई | शायद आपके लिए ये नाम अनजाना हो | है भी क्या ख़ास इस नाम में | पर इस नाम में क्या ख़ास है यह उनकी जीवनी ” इज्ज़त ‘पढने के बाद पता चल जाएगा | उनकी आत्मकथा का अनुवाद कई भाषाओँ में हो चुका हैं | कई देशों में यह बेस्ट सेलर भी रही है |इस पर एक लघु फिल्म भी बन चुकी है व् उस पर उन्हें कई अवार्ड भी मिल चुके हैं | न्यूयार्क के मशहूर ओपेरा थंबप्रिंट में मुख्तार माई की दर्द भरी दास्ताँ को सामाजिक अत्याचार के नाम पर शिकार मासूम लोगों के दर्द के रूप में दिखाया गया है |
मुख्तार माई पाकिस्तान के मुज्जफ्फरगढ़ की रहने वाली हैं | उनकी की दर्द भरी दास्ताँ आज से १५ साल पहले शुरू हुई थी | उस समय उनके भाई पर आरोप लगा था की उसने मस्तोई बलोच परिवार की एक महिला को छेड़ने की कोशिश की थी | गाँव की पंचायत में मुकदमा बैठा | उसने आँख के बदले आँख के कानून पर चलते हुए फैसला सुनाया ,” इसकी कीमत लड़के के परिवार को चुकानी पड़ेगी | ” और वो कीमत चुकाई मुख्तार माई ने | जब पुरुष का रूप धरे ६ भूखे भेडिये उन पर टूट पड़े | गांव की परिषद की ओर से दी गई सजा के तौर पर मुख्तार माई से न सिर्फ सामूहिक बलात्कार किया गया था बल्कि उनकी बिना कपड़ों के परेड कराई गई थी।
निरपराध व् निर्दोष माई तन से और मन से पूरी तरह टूट गयी | पर उन्होंने ख़ुदकुशी का रास्ता न अपना कर दोषियों को सजा दिलाने की ठानी | उन्होंने अदालत में शिकायत दर्ज की | बार – बार अदालत जाते समय उन्हें जान से मार देने की धमकी मिलती रही पर वो अपने निर्णय पर चट्टान की तरह अडिग रहीं | उनका कहना था की पंचायत के पूर्व नियोजित फैसले में उन्हें बलि का बकरा बनाया गया | उनका दर्द कम नहीं हो सकता | पर वो ऐसे अपराध झेती लड़कियों के लिए मिसाल देना चाहती है की चुप बैठ कर रोने से बेहतर है सामने आओ व् दोषियों को सजा दिलवाओ |सामूहिक बलात्कार का शिकार हुई मुख्तार माई महिला अधिकारों के लिए चलने वाले अभियान का प्रतीक बन गई थी। मुख़्तार के संघर्ष की कहानी मीडिया में फैलते ही कई देशों से उन्हें मदद आने लगी | उन्हें कई पुरूस्कार मिले | एक स्थानीय अदालत ने इस मामले में छह लोगों को सजा सुनाई लेकिन ऊपरी अदालत ने मार्च 2005 में इनमें से पांच को बरी कर दिया था और मुख्य अभियुक्त अब्दुल खालिक की सजा को उम्र कैद में बदल दिया था। पाकिस्तान सरकार की तरफ से हर्जाने के रूप में ९४०० डॉलर मिले |इस पैसे से उन्होंने दो स्कूल खोले | वो बहुत से लोगों की मदद कर रही हैं | उनका कहना है की लड़कियों को केवल मूक पशु बन कर नहीं रहना चाहिए | बल्कि अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करना चाहिए | क्यों पुरुष महिलाओं की सहमति के बिना उनके लिए निर्णय लें |
संघर्ष की मिसाल बनी मुख्तार माई ने अपनी जिंदगी को नए सिरे से शुरू किया | अभी हाल में रोजीना मुनीब ने उन्हें पाकिस्तान फैशन वीक में रैंप पर उतारा | दरसल रोजीना मुनीब ने मुख्तार माई को मनाया कि वह यहां आए ताकि महिलाओं में संदेश जाए कि एक बार गलत होने का मतलब ये नहीं होता कि जिंदगी खत्म हो गई है।हालांकि इस तरह से आम जनता का सामना करने से पहले वो थोडा हिचकिचा जरूर रही थी पर फिर से उन्होंने साहस का दामन थामा और पूरे आत्मविश्वास के साथ रैम्प पर चलीं | सभी ने उनका तालियों की गडगडाहट के साथ स्वागत किया | पाकिस्तान के कराची शहर में आयोजित कार्यक्रम में रैंप पर उतरी मुख्तार माई पाकिस्तान की ही नहीं समस्त नारी जाती के लिए साहस और आशा का रोल मॉडल बनकर उभरी। ।
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बाद में श्रोताओं को संबोधित करते हुए माई ने कहा, उन्होंने कहा कि अगर मेरे एक कदम से एक महिला की मदद होती है, तो मैं मुझे बहुत खुशी होगी| ‘मैं उन महिलाओं की आवाज बनना चाहती हूं जो उन परिस्थितियों से होकर गुजरी हैं, जिनका सामना मैंने किया। मेरी बहनों के लिए मेरा संदेश है कि” हम कमजोर नहीं है।” हमारे पास भी दिल और दिमाग है, हम सोच सकते हैं।’ मैं अपनी बहनों से कहना चाहती हूं कि अन्याय होने पर हिम्मत नहीं हारनी चाहिए क्योंकि एक एक दिन हमें न्याय जरूर मिलेगा।
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अंत में टाइम पत्रिका में निकोलस क्रिस्टाफ के लेख का जिक्र जरूर करना चाहूंगी | जिसमें उन्होंने लिखा है की , ‘मैं नहीं जानता कि गांधी या मार्टिन लूथर किंग को देखने वाले पत्रकारों को क्या एहसास हुआ होगा, लेकिन मुख्तार माई के वजूद में मुझे महानता सर से पैर तक दिखती है |
मुख्तार माई ने आधी आबादी से सिर्फ कहा नहीं है बल्कि करके दिखाया है की …
” हम कमजोर नहीं है ”
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मुख्तार माई के साहस को सलाम।
धन्यवाद ज्योति जी
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हमे लगता है कि अब समाज को भी सोचना चाहिए की लड़की या उसकी खुद की बेटी वह पैकेट नही है जिसको कही पे डिलीवर करना है।।