motivational story in Hindi
संदीप माहेश्वरी की स्पीच में उनके द्वारा सुनाई गयी प्रेरक कथा
मित्रों , संदीप माहेश्वरी एक लोकप्रिय मोटिवेशनल स्पीकर हैं | उन्होंने बहुत छोटे स्तर से शुरू कर के न केवल स्वयं सफलता पायी बल्कि अब वो दूसरों को भी सफल होने के लिए प्रेरित करते हैं | स्पीच के दौरान वो छोटी – छोटी प्रेरक कथाएँ सुनाते हैं | ऐसी ही एक प्रेरक कथा उन्होंने एक स्पीच के दौरान सुनाई थी | वही आज मैं आप के साथ शेयर कर रहा हूँ |
एक गाँव में दो बच्चे आपस में बहुत गहरे मित्र थे | उनकी दोस्ती इतनी पक्किथि की वो हर काम साथ – साथ करते | साथ – साथ खाते , साथ साथ खेलते व् साथ – साथ पढ़ते भी थे |लोगों को उनकी इतनी गहरी दोस्ती देख कर आश्चर्य होता | क्योंकि उनमें से एक बच्चा १० साल का था और एक ५ साल का | पर जैसा की आप जानते हैं की दोस्ती तो दोस्ती होती है उसमें उम्र बाधा कहाँ होती है |
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तो किस्सा है एक शाम का जब दोनों दोस्त खेलते – खेलते गाँव के पास के जंगल में पहुँच गए | थोड़ी शाम और गहराई तो उन्हें दर लगने लगा | उन्होंने सोंचा अब खेल यहीं रोक कर जल्दी घर चलते हैं | | वो तेजी तेजी से घर की ओर लौटने लगे | तभी बड़ा बच्चा जो १० साल का था एक सूखे कुए में गिर गया | उसके बचाओ , बचाओ चिल्लाने पर ५ साल के बच्चे ने पीछे मुद कर देखा | उसे कुए में गिरा देख कर वह रोने लगा | फिर खुद ही आँसूं पोंछ कर मदद के लिए आवाज़ दी |पहले एक तरफ दौड़ा फिर दूसरी तरफ दौड़ा | पर जैसा की मैंने पहले बताया की वहां कोई था ही नहीं | अब कोई होता तब आता | ५ साल साल के बच्चे ने सोंचा की अगर वो गाँव की तरफ अकेले मदद मांगने जाएगा तो हो सकता है की वो रास्ता भूल जाए | वो बहुत ही पशोपेश में पद गया की वो अपने दोस्त की जान कैसे बचाये |
हैरान परेशां होकर इधर – उधर ढूँढने पर उसे एक रस्सी दिखाई दी | उसकी जान में जान आई |उसने रस्सी कुए में फेंक दी व् दूसरा सिरा अपने हाथ में पकडे रखा |अब उसने अपने १० साल वाले दोस्त को खींचना शुरू किया | खींचना मुश्किल था | पर उसने हिम्मत नहीं हारी खींचता रहा , खींचता रहा | आखिर कार उसने अपने दोस्त को कुए के बाहर खींच लिया | बाहर आने पर दोनों मित्र गले लग कर खूब रोये | फिर हँसते बतियाते घर की तरफ चल दिए |
गाँव पहुँच कर उन्होंने सारा किस्सा अपने घरवालों व् गाँव वालों को सुनाया की कैसे छोटे दोस्त ने बड़े दोस्त की जान बचाई | गाँव वाले उन किस्सा सुन कर हंसने लगे | कोई उन पर विश्वास ही नहीं कर रहा था | ऐसा कैसे हो सकता है की ५ साल का छोटा सा बच्चा १० साल के बच्चे को खींच कर निकाल ले |पर बच्चे बार – बार कह रहे थे की उन पर विश्वास करो वो सच बोल रहे हैं |
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बात फैलते – फैलते गाँव के सबसे समझदार रहीम चाचा के पास गयी | रहीम चाचा ने गाँव वालों से कहा , बच्चों पर मत हंसों वो सच बोल रहे हैं | अब आश्चर्य चकित होने की बारी गाँव वालों की थी | अरे , रहीम चाचा ऐसे कैसे कह सकते हैं | भला ५ सालका बच्चा १० साल के बच्चे को कैसे खींच सकता है | सब उत्तर के लिए रहीम चाचा का मुँह देखने लगे |
रहीम चाचा मुस्कुरा कर बोले इसमें न विश्वास करने वाली बात क्या है | छोटे बच्चे को तो बड़े बच्चे को बाहर निकालना ही था | क्योंकि जैसा की उसने कहा की वहां कोई नहीं था जो इससे कहता की तुम ये काम नहीं कर सकते हो | | लेकिन वो यह असंभव काम इसलिए कर पाया क्योंकि वहां …
” वो भी नहीं था ”
दोस्तों , ये खूबसूरत कहानी ” वो भी नहीं था | हमें सन्देश देती है की जब भी कोई कठिन काम करन चाहते हैं तो लोग हमें यह कहने लगते हैं ,” अरे तुम ये नहीं कर पाओगे | धीरे – धीरे ये सुनते सुनते हमारा मन भी यह कहने लगता है ,” क्या हम ये काम कर पायेंगे “? दरसल किसी काम को शुरू करने से पहले ही उसके बारे में इतनी NEGATIVE बातें सोंच कर हम अपनी SELF CONFIDENCE को कमजोर कर लेते है | और सफलता मिलना मुश्किल हो जाता है | इसलिए जब भी कोई काम शुरू करें तो “वो भी नहीं था” के सिद्धांत पर चलते हुए NEGATIVE THOUGHTS को अपने मन में न आने दें
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सुबोध मिश्रा
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कहानी मे बहुत सच्ची बात कही है कि हमारे आस पास ऐसे नकारात्मक तत्वो की बहुत ऊची ऊची दीवार है जो हमारी कार्यक्षमता को घटा देती हैं । अगर इन्हें अपने पर हानी न होने दिया जाए और खुद पर विश्वास रखा जाए तो हर काम को करना संभव हैं। बहुत अच्छा प्रेरक प्रसंग । धन्यवाद ।
धन्यवाद बबिता जी