राम , रहीम , भीम और अखबार

सरिता  जैन
ये कहानी है तीन मित्रों की |  उनमें से एक था मुस्लिम , एक , सवर्ण और एक दलित |नाम थे रहमान , राम और भीम  | तीनों एक दूसरे के सुख – दुःख के साथी |  रोज शाम को उनकी बैठक होती रहती थी | बातें भी बहुत होती | जैसा की पुरुषों में होता है अक्सर राजनैतिक चर्चाएं होने लगती हैं | यूँ तो तीनों कहने को बात कर रहे होते |पर कहीं न कहीं उनके मन में अपनी जाति और धर्म की भावना छिपी रहती  | इस कारण जब भी कोई खबर सामचारपत्रों में आती सबका उसको देखने का एंगल अलग अलग होता | इस कारण कभी कभी हल्की बहस भी हो जाती |

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एक बार एक अखबार के एक छोटे कॉलम में खबर छपी किसी पुरानी इमारत के टूटने की | उसमें से कुछ पपु राने मंदिरों की मूर्तियों के अवशेष निकले | खबर छोटे कॉलम में थी पर हिन्दू मुस्लिम दोस्तों के मध्य बड़ा विषय बन गया | काम अतीत में हुआ था , जिसकी जानकारी सभी को थी , पर लड़ाई आज करना जरूरी थी | बमुश्किल भीम ने बात खत्म कराई | उसने कहा जो अतीत में हो गया हो गया | अब तो हम सब ऐसे अन्यायों का विरोध कर सकते हैं | फिर क्यों अतीत पर झगडें |

पर मामला रफा दफा हुआ नहीं | रहीम ने भी आरोप लगाना शुरू कर दिया |असहिष्णुता  का आरोप  | आज हमें बोले का हक़ नहीं है | चारों और असहिष्णुता का बोलबाला है | ऐसे में कैसे हम अपने मन की आवाज़ कहें | राम ने तुरंत बात काटी | क्यों आप फेसबुक ट्विटर , इन्स्टा , सभाओं सब जगह बोल रहे हैं | फिर भय कैसा ?बोलते तो आप शुरू से रहे हैं बस सुनना  नहीं चाहते हैं  | हम सब एक देश के नागरिक हैं | आप को ही विशेष दर्जा क्यों ?

रहीम को बात नागवार गुजरी | न रहीम अतीत के गर्व में झूमने न राम भी अतीत भूलने को तैयार था | लिहाज़ा दोस्ती टूट गयी | रहीम उठ कर चला गया | 

अब राम और भीम ने बात करना शुरू किया | फिर अखबार की खबर का जिक्र था |  बहस एक किताब पर थी | जिसमें माँ दुर्गा को गाली दी गयी थी | स्त्री की अस्मिता के लिए लड़ने वाली माँ दुर्गा को XX तक कह दिया गया था | अब बारी राम के गुस्से में आने की थी | उसने माँ दुर्गा को अंट शंट  बोलने वाले को तार्किक तरीके से गलत सिद्ध करने की कोशिश की |

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अब बारी भीम की उबलने की थी | वही जो अभी तक राम को अतीत भूलने की सलाह दे रहा था | अब अतीत से किस्से ढूंढ – ढूंढ कर लाने लगा | राम ने कहा अब तो अतीत जैसा माहौल नहीं है | तुम लोगों को आरक्षण भी मिला है | और खबरों में तरजीह भी | दलित की बेटी के साथ अत्याचार तो खबर बनता है , जिस खबर में दलित या मुस्लिम इस्तेमाल नहीं होता वो सब सवर्ण की बेटियाँ होती हैं फिर खबर क्यों नहीं बनती की सवर्ण की बेटी के साथ अत्याचार | ये सब जानते हो फिर ये मुद्दा क्यों ?

पर भीम मानने को तैयार नहीं था | वो आज के आज बदला लेना चाहता था | उनसे जो अब उसे खुले दिल से स्वीकार करना चाहते थे | लिहाजा दोस्ती टूट गयी |भीम चला गया | 

दोस्तों तीन दोस्त जो एक दूसरे के सुख दुःख के साथी थे | जो एक अच्छे भविष्य को गढ़ सकते थे  | अतीत पर लड़ पड़े | और अलग हो गए | क्या आज हमारे देश में यही नहीं हो रहा | हम सब अखबार पढ़ते हैं | तर्क गढ़ते हैं | तर्कों में जीतते हैं तर्कों में हारते हैं | पर सुझाव के बारे में कोई नहीं सोंचता | अतीत  जिसे न सुधारा जा सकता है न संवारा जा सकता है | कुछ किया जा सकता तो सिर्फ वर्तमान में | जहाँ जरूरी है समझ सिर्फ इस बात की , कि अब हमें प्यार से रहना है | ताकि देश का भविष्य सुन्दर हो |

काश ये बात राम , रहीम और अखबार तीनों को समझ आ जाए | 




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5 thoughts on “राम , रहीम , भीम और अखबार”

  1. बहुत सुंदर कहानी हम चाहे आज कितने भी पढ़े लिखे क्यों ना हो लेकिन हमारे अंदर कही ना कही जाती धर्म की बात आने पर एक तरफ़ा सोच आ ही जाती हैं.

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