अंतर्राष्ट्रीय बिटिया दिवस पर एक बेटी की मार्मिक गाथा
प्यारे पापा
अंतर्राष्ट्रीय बिटिया दिवस पर न जाने क्यों आपसे कुछ कहने का मन हो रहा है लड़के मांगें जाते हैं मांग – मनौतियों से , बेटियाँ पैदा हो जाती हैं | वैसे ही जैसे गेंहूँ के खेत में खर – पतवार उग आती है | वैसे ही लडकियां आ जाती हैं कोख में अनचाही सी | कोसी जाती हैं दिन रात की खा रहीं है मेरे बेटे के हिस्से का खाद – पानी | तभी तो बढ़ नहीं पाती हैं अपनी पूरी ताकत भर | फिर काट कर फेंक दी जाती हैं एक दिन ये सोंचे बिना की क्या होंगा उनका | पापा आप भी सोंच रहे होंगे मैं ऐसा क्यों लिख रही हूँ | वो भी अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस के दिन | एक बेटी जो अपने पिता से इतना प्यार करती है वो ऐसे कैसे लिख सकती है | फिर भी कुछ तो है जो कहने को मन बेचैन हो रहा है |
आई लव यू पापा , इससे बेहतर शुरुआत मेरी दास्तान की कुछ और नहीं हो सकती | ये शब्द मैंने शायद तब कहा था जब मैंने पापा कहना भी नहीं सीखा था | जब मेरी नन्ही – नहीं अंगुलियाँ आप की दाढ़ी छूती और आप मेरा हाथ झटक देते तब भी मेरे मन से आई लव यू पापा निकलता | उस समय मुझे ये भी नहीं पता था की आप और दादी बेटी नहीं बेटा चाहते थे | और आ गयी मैं , अनचाही सी | उस पर भी मेरे जन्म के समय माँ का गर्भाशय फट जाने के कारण किसी दूसरी संतान की गुंजाइश ही नहीं रही |
ताने उलाहनों से आजिज़ आ कब मेरी माँ ने मुझे इस दुनिया की सारी सजाये भोगने के लिए अकेला छोड़ कर दूसरे लोक जाने का फैसला कर लिया , मुझ अबोध को पता ही नहीं चला |माँ मुक्त हो गयीं मैं कैद | जब पता चला तो मैंने माँ को ही कमजोर समझा था | जो अपनी लड़ाई लड़ नहीं पायीं | और उस नन्हीं सी उम्र में मैंने निर्णय ले लिया था की चाहें जितनी विपरीत परिस्तिथियाँ आये मैं उनके आगे झुकुंगी नहीं | आप दूसरी माँ ले आये | जिन्होंने आपको कुल दीपक दिया |
सौतेली माँ के अत्याचार और भेदभाव के साथ मेरा गहरा काला रंग मेरे दुखों का कारण बना | माँ तो सौतेली थी पर आप तो मेरे अपने थे पापा | आप ने क्यों नहीं समझा मेरा दर्द जब आप माँ के साथ मेरे रंग पर टिप्पड़ी करते हुए कहा करते थे की इसको कौन ब्याहेगा | इसका तो रंग ही देख कर लड़के वाले डर जायेंगें | मैं सोंचती शायद मेरा रंग इतना काला है इस कारण ये मेरे पिता की ईमानदार टिप्पड़ी है | मुझे अफ़सोस होता की मेरे कारण मेरे पिता को मेरे लिए वर खोजने में परेशानी उठानी पड़ेगी | मैं रातों को कितना तड़फ – तड़फ कर रोती पर तब भी कहती , आई लव यू पापा आप मेरी वजह से परेशान न हों मैं शादी नहीं करूँगीं |
एक दिन हिम्मत करके यही ऐलान मैंने सबके सामने कर दिया | मेरी उम्मीद के विपरीत सब बहुत खुश हुए | दहेज़ के पैसे बचे | मैं खुश थी की सब खुश हैं | मैं अपने सरकारी स्कूल में टॉप करती रही व् छोटा भाई महंगे इंगलिश मीडियम में फेल होता रहा | कितनी बार उसने एक क्लास को दुबारा पढ़ा | तब तक किसी को कोई दिक्कत नहीं थी | दिक्कत तब हुई जब मैंने कॉलेज जाने की फीस के पैसे मांगे | आपने इनकार कर दिया | घर के तमाम खर्चे गिना दिए | ये जानते हुए भी की आप झूठ बोल रहे हैं मैंने आप की बात पर पूरा विश्वास करने की कोशिश की | क्यों ? क्योंकि आइ लव यू पापा | मैंने फीस के लिए छोटे बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने का निर्णय लिया |
पढ़ लिख कर मुझे नौकरी मिल गयी | उसी शहर में मैं किराए के घर में रहने लगी | आप और माँ चाहते थे की इन पैसों से मैं परिवार की मदद करूँ , आखिर अकेले का मेरा खर्चा ही कितना था | पर मैंने ऐसी लड़कियों को अपने पास रखने और पढ़ाने का जिम्मा उठाया जो अपनों के होते हुए भी अनाथ थीं | जो सारा भेदभाव झूठे
आई लव यू पापा के शब्दों के अन्दर दफनाये हुई थी | मेरी ये पहल सबको नागवार गुज़री और मेरा उस घर में आप सब से मिलने आना अवांछित हो गया | फिर भी मैं आती रही | कुछ नहीं तो अपने बचपन को छू लेने के लिए , सहेज लेने के लिए |
समय कब पंख लगा के उड़ गया |दूसरी माँ भी राम जी को प्यारी हो गयीं | भैया आप को आपके हाल पर छोड़ अपने परिवार के साथ खुश रहने लगा | ऐसे समय में आप गंभीर रूप से बीमार पड़े | अब आप को अपनों की सख्त जरूरत थी | तब आपके पास कोई अपना नहीं था | मैं … मैं कैसे न जाती … आफ्टर आल आई लव यू पापा | आप की बीमारी ओपरेशन और देखभाल का जिम्मा मैंने ख़ुशी – ख़ुशी निभाया | आने जाने वालों की आव – भगत की | सब कह रहे थे की बेटी हो तो ऐसी | आपकी आँखों में भी प्रशंसा के भाव थे | पर आपने कहा कभी नहीं |
आप ठीक हो गए मैं बहुत खुश थी | उस दिन जल्दी घर आने के लिए स्कूल से निकली | रास्ते में कुछ फूल ले लिए | यूँ ही आप को देने के लिए | दरवाजे से किसी के साथ आप की बात करने की आवाज़ सुनाई दी | आप कह रहे थे ,” वकील साहब , ये सही है की बिटिया ने मेरी बहुत सेवा की है | मुझे मरते से बचाया है | पर जमीन जायदाद तो वंश में जाए तो ठीक है | बिटिया ने इतनी सारी बच्चियों की जिम्मेदारी ले रखी है | क्या पता मेरे मरने के बाद लालच आ जाए | वैसे दिल की अच्छी है |पर जिम्मेदारी के लिए ही सही | बेहतर है आप मेरी वसीयत मेरे बेटे के नाम कर दें | ताकि मेरे बाद बेचारे को बहन से न निपटना पड़े |
मेरे हाथों से फूल गिरने लगे | मैंने उन्हें डाई निंग टेबल के ऊपर रखे फ्लावर पॉट में रख दिया | मैं खुश हूँ पापा की आपने मुझे कहा की मैं दिल की बुरी नहीं हूँ | यही जायदाद तो थी जो मैं पाना चाहती थी | अपनी बेटियों की जिम्मेदारी मैं खुद निभाने के लायक हूँ | बेशक आप सारी जायदाद भैया को दे दे | मुझे कोई गिला नहीं है
आई स्टिल लव यू पापा
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मित्रों , आज अंतर्राष्ट्रीय बिटिया दिवस है | किसी भी दिवस को मनाने का कारन क्या होता है | क्योंकि उसको न्याय नहीं मिला होता है | ये सच है की आज बहुत से घरों बेटा – बेटी में फर्क नहीं है | और जहाँ – जहाँ बेटियों को अवसर मिला है वे बेटों से कमतर नहीं रही हैं | परन्तु एक बड़े तबके में भेदभाव आज भी कायम है | जरूरत है उस अंतर को दूर करने की | बेटियाँ तो कहती हैं “ई लव यू पापा ” | जरूरत हैं हर परीवार को , हर पिता को , पूरे समाज को यह कहने की आई लव यू टू बेटी
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बहुत सुंदर पोस्ट
धन्यवाद