ओटिसटिक बच्चे की कहानी -लाटा को पढने से पहले
जरूरी है कुछ बात आटिज्म पर की जाए | आटिज्म एक कॉम्पेक्स न्यूरोबेहेवियरल स्थिति है
| जो जन्मजात बिमारी है | जिसमें सोशल इंटरेक्सन बाधित होता है | भाषा भी पूर्ण
विकसित नहीं हो पाती | बातचीत में समस्या आती है |व् rigid repetitive behaviour
आदि शामिल हैं | वस्तुत : इसके सारे लक्षणों को मिला कर इसे autism spectrum
disorder (ASD)कहते हैं | ASD से ग्रस्त बच्चे इसकी मौजूदगी के अनुपात में पूर्ण विकलांग से ले कर काफी कुछ अपने आप कर लेने की क्षमता वाले होते हैं | हालांकि
उन्हें स्पेशल केयर की जरूरत होती है | ASDसे ग्रस्त बच्चों के लिए यह समझना
मुश्किल होता है की दूसरे लोग क्या सोंच व् महसूस कर रहे हैं | इस कारण वो खुद को
अभिव्यक्त करने में बहुत कठिनाई महसूस करते हैं चाहें वो शब्दों से हो , फेसिअल
एक्सप्रेशन के द्वारा हो | फिर भी भावनाएं तो होती हैं और ऐसी ही भावनाएं जिन्हें
अभिव्यक्त करने की कशमकश से जूझता रहा लाटा
ओटिसटिक बच्चे की भावनात्मक कहानी -लाटा
बात होती तो उसे ओटिसटिक (autistic) कहा जाता, पर उन दिनों तो ऐसे बच्चों को नीम पागल ही समझा जाता था.. कुछ बोलने में
उसकी जीभ अक्सर किसी न किसी शब्द में उलझ जाती.. मन करता हलक में हाथ डाल उसकी
मुश्किल आसान कर दूँ.. जब तक वह शब्द पूरा होकर बाहर नहीं आ जाता , उसकी सांस तो मुश्किल होती न होती, हमारी हो जाती..
तो लाटा था ना,
नीम पागल ! .. उसे क्या स्कूल भेजना ! माँ के सीने का बोझ था,
बाप के सर का ! .. उसे वे दोनों ही पसंद नहीं थे.. उसकी तो बस दादी
थीं, वो ही उसपर जान छिड़कती.. सबसे छुपा कर घी का बड़ा सा
ढेला उसके भात में छुपा देतीं.. वह भी भात की तहें खोलकर देखता, और खुश होकर लबेड के खा लेता.. दादी उसके सर पर हाथ फेरतीं प्यार से..
उन्ही के कमरे में सोता वह.. उसे दादी की भूत की कहानियां बहुत पसंद थीं.. वह उनके
साथ लेटकर कहानी सुनता और उनके थुलथुले पेट पर हाथ फेरता जाता |
माता पिता की विशेष कृपा रहती.. उनके लिए कभी कभार नए कपडे भी सिल जाते, पर इस बेचारे को मिलती उतरन.. जब तक बच्चा था, सब
ठीक रहा, जैसे बड़ा हुआ उसने भी नए कपड़ों की जिद करनी शुरू कर
दी.. ना मिले तो वह गुस्से में चीज़ें पटकने लगता.. उम्र के साथ उसका गुस्सा और
मुखर होने लगा.. भाई जब स्कूल चले जाते तो वह भी पिता के साथ खेतों की तरफ
निकल जाता.. पहले छोटा मोटा काम करता था अब खेती बाड़ी की तकनीकी भी समझने लगा..
शारीरिक श्रम में उसका मन खूब लगता.. धुप में तपकर पसीना बहाना उसे अच्छा लगता
था | तीन भाई पढ़ाई के लिए शहर जा पहुंचे और फिर वहीं के हो लिए.. एक भाई वहीं
गाँव में मास्टरी करने लगा.. एक एक कर सबके ब्याह भी हो गए, परिवार
बस गए.. यहाँ तक छोटे भाई की भी गृहस्थी बस गयी.. पर वह वैसा ही रहा.. उसके ब्याह
का कौन सोचे, वह तो लाटा था.. अपने घर में ही बेगाना सा..
के मुह नहीं लगता,
लेकिन कोई कुछ कह दे तो ऐसी गालियों के बम गोले दागता की सबके ढेर
हो जाते.. वह अब अकेला घर भर का बोझ संभालने लगा .. माँ बाप बूढ़े हो चले थे..
लेकिन अब माँ बाप को उसका बोझ हल्का लगने लगा था.. उसके रहते वह निश्चिन्त थे..
खेत खलिहान और गाय भैंस की ज़िम्मेदारी उसने स्वतः ओढ़ ली थी.. दादी स्वर्ग सिधार
गयीं.. दादी का आखिरी वक़्त खासा कष्टकारी था.. उनका कष्ट देख कर कहता “दादी तू मर जा “..दादी मुस्कुरा देतीं.. जानती थीं
उनका दर्द, वह सह रहा है.. इधर दादी ने आखिरी हिचकी ली,
उधर वह लापता ! .. उसकी ढूंढ मची तो वह खेत के किनारे छुपा बैठा
मिला.. सबने मनुहार की, पर वह ना हिला.. आखिर दादी को उसके
काँधे बिना ही जाना पड़ा.. पर दादी, जो उसके मन की हर बात
समझती थीं, क्या यह ना समझी होंगी?
दादी तो चल बसी, पर अब उसकी भाभी ने उनका
स्थान ले लिया.. वह उसीप्रकार अपने देवर पर स्नेह बरसातीं.. उसके खाने पीने,
कपडे का ज़िम्मा सब भाभी ने ले लिया..
वज्रपात हुआ,
उसका मास्टर भाई एक्सीडेंट में मारा गया.. उसकी सबसे प्यारी भाभी अब
सोग की मूर्ती बन गयी.. छोटी भांजी के आंसू सूखते ना थे.. वह भाभी और भांजी की ओर
देखता और दहाड़ें मार कर रो उठता .. उसका विलाप सुन कर गाँव के बच्चे, बड़े, द्रवित हो उठे.. तेहरवीं के बाद भाभी के भाई
लेने आये, पर वे ना गयीं.. बोलीं “हरी
भाई हैं ना, मैं यहीं रहूँगी”.. सच
कितनी अच्छी हैं भाभी.. कितना डर रहा था वो.. अब वह भी तन मन से उनकी सेवा करेगा..
कोई आंच ना आने देगा
खटका भी हो तो वह दरांती ले पूरे घर का चक्कर लगा डालता.. गली में कोई जोर से बोले
भी तो वहीं से ऐसी घुड़की लगाता की लोग चुपचाप खिसक लेते.. वह घर की ऐसी मज़बूत
ड्योढ़ी था जिसके होते गरम हवा, ठंडी हो कर गुज़रती..
ढूंढ ही लाई.. और जब तक उसने गुडिया को गोद में उठाकर डोली में न बिठाया, गुडिया भी
विदा ना हुयी.. जाते जाते गुडिया ने प्यार से उसके कान में “ मेरा लाटा चाचू” कह दिया..
अच्छा लगा उसे..
पूनम डोगरा
भावनाओं को शब्द देने की कोशिश रहती है.. एक लम्बा समय से विदेश में हूँ..
पूनम जी,बहुत ही मन को छु जाने वाली कहानी.
धन्यवाद
आदरणीय पुनम जी –कितनी बढ़िया मर्म स्पर्शी कहानी लिख गयीं आप | मानवीय संवेदनाओं के शिखर छूती हुई | बहुत शुभकामना आपको —–
धन्यवाद रेनू जी