एक थी , छोटी सी अल्हड़ मासूम बहना। …
छोड़ आई अपना बचपन ,तेरे अँगना ,
बारिश की बूंदो सी पावन स्मृतियाँ ,
नादाँ आँखे उसकी उन्मुक्त भोली हँसी, ….
क्या भैया ! तुमने उसे देखा है कही ,………… !
छोटी सी फ्राक की छोटी सी जेब में ,
पांच पैसे की टाफी की छीना -छपटी में ,
मुँह फूलती उसकी ,शैतानी हरकते
स्लेट के अ आ के बीच ,मीठी शरारते
क्या ?… तुम उसे याद करते हो कभी ,…. !
दिनभर, अपनी कानी गुड़िया संग खेलती ,
माँ की गोद में पालथी मारे बैठती ,
,जहा दो चोटियों संग माँ गूंथती ,
हिदायतों भरी दुनियादारी की बातें ,
बोलो भैया ,!वो मंजर भूल तो नहीं जाओगे कभी.… ,!
आज तेरे उसी घर – आँगन में,
ठहर जाये ,वैसी ही मुस्कानों की कतारे ,
हंसी -ठहाकों की लम्बी महफिले ,
हम भाई–बहनो के यादो से भींगी बातें ,
और ख़त्म ना हो खुशियो की ये सौगाते कभी भी,… !
राखी के सतरंगे धागो में गूँथे हुए अरमान ,
तुमने दिए ,मेरे सपनो को अनोखे रंग ,
और ख्वाईशों को दिए सुनहरे पंख ,
और अब सफेद होते बालो के संग ,
स्नेह की रंगत कम न होने देना कभी.… !
माथे पर तिलक सजाकर ,नेह डोर बांधकर,
भैया मेरे ,राखी के बंधन को निभाना ,
छोटी बहन को ना भुलाना ,
इस बिसरे गीत के संग ,
अपनी आँखे नम न करना कभी …. !
आँखों में , मीठी यादो में बसाये रखना,
इस पगली बहना का पगला सा प्यार ,
यही याद दिलाने आता है एक दिन ,
बूंदो से भींगा यह प्यारा त्यौहार,
बस ,भैया तुम मुझे भूला ना देना, कभी। …. ”’
ई. अर्चना नायडू
जबलपुर
सुंदर प्रस्तुति।
धन्यवाद ज्योति जी