आदरणीय भारतीय प्रधानमंत्री की खुले मे शौच मुक्त भारत का एक काव्यात्मक समर्थन————-
बिटिया खुले मे शौच जाती है
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आखिर बाप और भाई की ये कैसी छाती है?
जो उसकी जवान बहु-बेटी—————
खुले में शौच जाती है।
रास्ते भर फबत्ती और——–
किसी की छेड़खानी का डर क्या होता है?
कभी देखना हो,
तो उसका वे चेहरा देखना कि किस तरह वे चंद लम्बी साँसे लेती है,
जब सकुशल अपने घर लौट आती है।
अक्सर हम अखबार और टी.बी. मे ये पढ़ते व सुनते है,
कि अधिसंख्य————–
खुले मे शौच गई महिला की,
रेप या बलात्कार के साथ नृशंस हत्या,
सारे रोंगटे खड़े हो जाते है,
जब सबसे ज्यादा————
एैसे ही बलात्कार की रिपोर्ट आती है।
आओ हम बदले अपनी बहु और बिटिया के लिये,
ये ना समझो कि पहले कौन?
तन्हा लड़ो क्योंकि हर अच्छे के लिये———
फिर फौज आती है।
एै “रंग” ये महज़ कविता नही एक दर्द है,
कि आजादी के इतने सालो बाद भी,
हमारे देश की बिटिया———–
खुले में शौच जाती है।
@@@रचयिता—–रंगनाथ द्विवेदी।
जज कालोनी,मियाँपुर
जौनपुर (उत्तर-प्रदेश)।
रंगनाथ जी , आपने एक sensitive विषय पर बहुत ही उम्दा रचना लिखी है | महिलाओं के खुले में शौच करने की मज़बूरी को आपने बखूबी व्यक्त किया है | धन्यवाद |
धन्यवाद बबिता जी