दीपावली अँधेरे पर रौशनी की विजय का त्यौहार है | ये नन्हे – नन्हे दीपों का ही तो चमत्कार है की काली अमावस की रात टिमटिमाती रोशिनी से जगमग हो जाती है | दीप जलाने की इसी परंपरा को आगे बढाते हुए हमने प्रतीकात्मक रूप से कविताओं के सात दीप जलाए हैं | आखिर अज्ञान के अँधेरे को तो ज्ञान के दीप ही दूर करते हैं | इसमें हमने शामिल किये हैं …उषा अवस्थी , डॉ . भारती वर्मा ‘बौड़ाई “, डॉ .मधु त्रिवेदी , रंगनाथ द्विवेदी , बीनू भटनागर , संजय वर्मा , रोचिका शर्मा और रामचंद्र आज़ाद के काव्य दीप | आइये आप भी इन नन्हें दीपों के प्रकाश की जगमगाहट का आनंद लें |आशा है ये आप की दीपावली को कुछ और जगमग कर देंगे ….
एक दीपक जरा जलाओ तुम
दीपावली की रात अमावस के दिन
सैकड़ों दीप जलाए होगें
दूर करने को मन का अंधियारा
एक दीपक जरा जलाओ तुम
खूबसूरत ,नए चमकते कीमती कपड़े
अपने बच्चों को पिन्हाए होगें
ठ॔ड से कपकंपाते बच्चों को
एक फतुहीं जरा सिलाओ तुम
दूर – – – – –
गर्म पूड़ी , मिठाई, मेवे खा
तुमने त्योहार मनाया होगा
भूख से बिलबिलाते बच्चों को
एक रोटी जरा खिलाओ तुम
दूर – – – – –
नर्म गद्दे ,रजाई ,तकियों पर
लेते हो चैन की नीदें हरदम
काटते रात जो फुटपाथों पर
एक कम्बल उन्हे ओढ़ाओ तुम
दूर – – – – –
तुमने हर बार दीवाली की खुशी
सुन्दर रंगीन पटाखों से मनाई होगी
जबरन जिनसे कराते काम, नौनिहालों को
अक्षर -माला जरा दिलाओ तुम
दूर – – – – –
उषा अवस्थी
जलें दीप घर में मेरे
जलें दीप
घर में मेरे
पर हो उजाला सर्वत्र
एक दीप
पितरों के लिए
चल रहा आशीष जिनका
हर क़दम संग सबके
एक दीप
माँ-पिता के लिए
जन्म देकर
बनते प्रेरणा बच्चों की
जीवन भर के लिए
एक दीप
परिचित मित्रों के लिए
व्यवहार जिनका बनता
नयी सीख जीवन में
एक दीप
दुश्मनों के लिए
जो मेरी कमी से
नहीं बन सके
मेरे मित्र कभी
एक दीप
शहीदों के लिए
जिन्होंने रखी नींव
आज के स्वतंत्र भारत की
एक दीप
सैनिकों के लिए
जो रहते सरहद पर
तैनात देश की रक्षा में
दिन रात
एक दीप
किसानों के लिए
जो रचते अन्न-संगीत
कड़ी मेहनत से
एक दीप
उन सबके लिए
जो जुड़े है
किसी न किसी रूप में
हम सबसे
लेकिन हम हैं
अनजान उनसे
और इस तरह
जलायें इतने दीप
रह न पाये अँधेरा
भूले से भी कहीं।
डा० भारती वर्मा बौड़ाई
घर में मेरे
पर हो उजाला सर्वत्र
एक दीप
पितरों के लिए
चल रहा आशीष जिनका
हर क़दम संग सबके
एक दीप
माँ-पिता के लिए
जन्म देकर
बनते प्रेरणा बच्चों की
जीवन भर के लिए
एक दीप
परिचित मित्रों के लिए
व्यवहार जिनका बनता
नयी सीख जीवन में
एक दीप
दुश्मनों के लिए
जो मेरी कमी से
नहीं बन सके
मेरे मित्र कभी
एक दीप
शहीदों के लिए
जिन्होंने रखी नींव
आज के स्वतंत्र भारत की
एक दीप
सैनिकों के लिए
जो रहते सरहद पर
तैनात देश की रक्षा में
दिन रात
एक दीप
किसानों के लिए
जो रचते अन्न-संगीत
कड़ी मेहनत से
एक दीप
उन सबके लिए
जो जुड़े है
किसी न किसी रूप में
हम सबसे
लेकिन हम हैं
अनजान उनसे
और इस तरह
जलायें इतने दीप
रह न पाये अँधेरा
भूले से भी कहीं।
डा० भारती वर्मा बौड़ाई
दीप मिल कर जला दीजिये
दीप मिल कर जला दीजिये
मात लक्ष्मी बुला दीजिये
मात लक्ष्मी बुला दीजिये
साल में एक ही बार हो
वन्दवारे सजा दीजिये
वन्दवारे सजा दीजिये
साफ घर द्वार कर लो सभी
रोज छिप कर बुला दीजिये
रोज छिप कर बुला दीजिये
अर्चना आज तेरी करे
कष्ट सारे मिटा दीजिये
कष्ट सारे मिटा दीजिये
स्वस्तिकें द्वार अपने रखूँ
मात आ कर दुआ दीजिये
मात आ कर दुआ दीजिये
भोग तेरा लगा मात अब
पीर मेरी भगा दीजिये
पीर मेरी भगा दीजिये
घर पधारे सदा माँ मिरे
लाज मेरी बचा दीजिये
लाज मेरी बचा दीजिये
डॉ मधु त्रिवेदी
दिवाली नही आई
भरपेट भोजन की थाली नही आई,
कुछ एैसे भी घर है———-
जहां दिवाली नही आई।
रो रही घर में———
तक-तक के दरवाजे को भूखी बेटिया,
उन्हे अपनी माँ की बुलाती आवाज़,
प्यार भरी थपकी,
छोटी बिटिया के खुशीयो की——
वे ताली नही आई!
अभी तलक———-
लौट कर इस घर की दिवाली नही आई।
सुबह के धुधलके में——–
दो पुलिसिये चादर में लपेटकर,
लाये थे नग्न लाश!
बेटिया डर गई,
एकटक देखा कि कौन है?
फिर माँ कह झिंझोडा——–
लेकिन उसकी माँ की खुली आँखो ने तका नही,
पहली बार-उसकी माँ के चेहरे पे
कोई लाली नही आई।
ये बेटिया क्या जाने?
कि करोड़ो के पटाखो में दब गई,
इनके माँ की सिसकिया!
देख लो आज तुम भी मेरी कविता,
इसके बदन पे हवस के निशान—–
ये आज भी अपने घर खाली नही आई,
ये और बात है कि———-
इसके घर कोई दिवाली नही आई। @@@रचयिता—–रंगनाथ द्विवेदी।
जौनपुर।
कुछ एैसे भी घर है———-
जहां दिवाली नही आई।
रो रही घर में———
तक-तक के दरवाजे को भूखी बेटिया,
उन्हे अपनी माँ की बुलाती आवाज़,
प्यार भरी थपकी,
छोटी बिटिया के खुशीयो की——
वे ताली नही आई!
अभी तलक———-
लौट कर इस घर की दिवाली नही आई।
सुबह के धुधलके में——–
दो पुलिसिये चादर में लपेटकर,
लाये थे नग्न लाश!
बेटिया डर गई,
एकटक देखा कि कौन है?
फिर माँ कह झिंझोडा——–
लेकिन उसकी माँ की खुली आँखो ने तका नही,
पहली बार-उसकी माँ के चेहरे पे
कोई लाली नही आई।
ये बेटिया क्या जाने?
कि करोड़ो के पटाखो में दब गई,
इनके माँ की सिसकिया!
देख लो आज तुम भी मेरी कविता,
इसके बदन पे हवस के निशान—–
ये आज भी अपने घर खाली नही आई,
ये और बात है कि———-
इसके घर कोई दिवाली नही आई। @@@रचयिता—–रंगनाथ द्विवेदी।
जौनपुर।
शायद कुछ एैसे वंचित घर है जहां दिवाली नही आती,फिर भी ईश्वर हर घर को रौशनी दे।
दिवाली
बहुरंगी रंगोली सजाई,
चौबारे पर दिये जलाये,
लक्ष्मी पूजन आरती वंदन,
कार्तिक मास
अमावस आई।
अमावस आई।
मन मयूर सा नाच उठा जब,
साजन घानी चूनर लाये,
घानी चूनर
जड़े सितारे,
जड़े सितारे,
दीप दिवाली के या तारे ।
खील बताशे पकवान,
और मिष्ठान निराले,
अपनो के उपहार अनोखे,
स्नेह संदेशालेकर आये ।
फुलझड़ी व अनार चलाये,
बंम रौकिट का शोर न करके,
फूलों से सजावट करके,
दीवाली त्योहार मनाये।
बीनू भटनागर
आओं हमारे घर
आओं हमारे घर
दीपावली में रोशनी लगती
जेसे घरों ने पहन लिए हो स्वर्णहार
लाल- हरी,पीली-नीली रंगोलिया
लक्ष्मी -कुबेर को दे रही हो
घर आने का निमंत्रण
बच्चे फुलझड़ियों की रौशनी से
करने लग जाते है मानो उनका अभिवादन
ऐसा लगता है कि दीवाली पर
माँ लक्ष्मी कृपा का भ्रमण करने
निकली हो संग कुबेर
तभी मन ही मन खुश होकर
झोपड़ी में जलते दीयों ने
एक साथ धीमे से पुकार दी
आओं हमारे घर माँ लक्ष्मी
हमारी कामना है कि
झोपड़ी भी स्वर्णहार पहने
और रह रहे इंसान बन जाए धन कुबेर
जेसे घरों ने पहन लिए हो स्वर्णहार
लाल- हरी,पीली-नीली रंगोलिया
लक्ष्मी -कुबेर को दे रही हो
घर आने का निमंत्रण
बच्चे फुलझड़ियों की रौशनी से
करने लग जाते है मानो उनका अभिवादन
ऐसा लगता है कि दीवाली पर
माँ लक्ष्मी कृपा का भ्रमण करने
निकली हो संग कुबेर
तभी मन ही मन खुश होकर
झोपड़ी में जलते दीयों ने
एक साथ धीमे से पुकार दी
आओं हमारे घर माँ लक्ष्मी
हमारी कामना है कि
झोपड़ी भी स्वर्णहार पहने
और रह रहे इंसान बन जाए धन कुबेर
संजय वर्मा “दृष्टि “
-धार
-धार
दिवाली दीप जलाऊं
झिलमिल दिवाली की रौनक सी ,घर
में खुशियाँ ले आती
में खुशियाँ ले आती
संपूर्ण तपस्या जीवन भर की,
बिटिया झलक जब दिखलाती
बिटिया झलक जब दिखलाती
इसके गृह प्रवेश संग तम,
कौने-कौने का हट जाता
कौने-कौने का हट जाता
निसदीन वास करे घर में तो,
दुख-दारिद्र भी घट जाता
दुख-दारिद्र भी घट जाता
उसके पग से छूटा अलता ,चौखटको
पावन कर जाता
पावन कर जाता
इंद्रधनुष से रंग बिखराती ,देहरी
की रंगोली को सजाता
की रंगोली को सजाता
भोली सूरत में इसकी समाहित अन्न,धन
और रत्न अनमोल
और रत्न अनमोल
मुस्कानों में फुलझड़ियाँ हैं,
किल्कारी आरती के बोल
किल्कारी आरती के बोल
इसकी महिमा जान न पाए,
क्यूँ लक्ष्मी पूजन करते हो
क्यूँ लक्ष्मी पूजन करते हो
गर्भ में जाँच कराते क्यूँ हो,
पैदा होने से डरते हो
पैदा होने से डरते हो
धन तेरस से पग हो माँडते ,द्वार
भी रख लेते हो खुला
भी रख लेते हो खुला
गर्भ द्वार करते निष्कासित,
तिरस्कृत लक्ष्मी मन की तुला
तिरस्कृत लक्ष्मी मन की तुला
लक्ष्मी पूजन की विधियों में ,
बैठी
लक्ष्मी की महिमा बड़ी
बैठी
लक्ष्मी की महिमा बड़ी
घर में पैदा लक्ष्मी हो जाए ,
बनेमुँह तयोरियाँ क्यूँचढीं
बनेमुँह तयोरियाँ क्यूँचढीं
जन-जन को ये शपथ दिलाऊं,
कन्या भ्रूण हत्या बंद कराऊँ
कन्या भ्रूण हत्या बंद कराऊँ
रोचिका शर्मा ,
चेन्नई
चेन्नई
डाइरेक्टर सुपर गॅन ट्रेडर अकॅडमी
दीपावली के दीप
दीप ऐसे जलाएं दिवाली में हम,
खुशियों से यह धरा जगमगाने लगे |
कोई कोने व अंतरे न बाकी रहें,
प्यार आँखों से ही छलछलाने लगे ||
चाँदनी की ज़रूरत निशा को न हो,
और धरा स्वर्ग के आशियाने से हो |
कूचे गलियों में भी ऐसी रौनक दिखे ,
गीत खुशियों के सब गुनगुनाने लगें ||
हर रकम के सुमन सम दीये की चमक ,
देख तारों का दल फुसफुसाने लगे |
देखिये वह धरा पर कोई अपना-सा ,
ऐसा कह-कह के वो मुस्कराने लगें ||
चहुँ दिशाओं में ऐसे पटाखे फुटें,
बादलों को जिन्हें देख अचरज लगे |
ये धरा पर भला किस तरह का जशन,
कोई हमको नहीं तो बुलाने लगे ||
रोशनी में नहायें सभी के भवन ,
और परिधान धारण किये हो नए |
ये अगर-धुप की खुशबू के साथ में ,
सब निशा की गमक को बढ़ाने लगें ||
रातरानी व चम्पा चमेली सभी ,
अपने अपने महक से सुशोभित करें |
आज दीपावली के स्वागत में मिल ,
प्रेम सबके दिलों में जगाने लगें ||
कवि एवं साहित्यकार- रामचंदर ‘आजाद’
फोटो क्रेडिट –by anand (flickr.com)
उम्मीद है दीपावली पर कविताओं के 7 दीप की हमारी ये कोशिश आपको अच्छी लगी होगी |पसंद आने पर शेयर करें व् हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको ” अटूट बंधन ” की रचनाएँ पसंद आती हैं तो हमारा फ्री इ मेल सब्स्क्रिप्शन लें ताकि आपको “अटूट बंधन ” की सारी पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर मिल जाएँ |