पति ———–
डम्प पड़े पटाखे के घाटे की तरह है,
पत्नी—–
सात आवाजा पटाखे की तरह है।
ससुर——-
जल रहे मुंडेर पे मोमबत्ती के धागे की तरह है,
सास——–
मेकप-पे-मेकप,साड़ी-पे-साड़ी,
उफ!इस उम्र मे भी वे———-
किसी बम के धमाके की तरह है।
शाली——-
दिवाली आॅफर से लबरेज लग रही,
छब्बीस में बीस की ऐज लग रही,
इस माह की सेलरी बचनी मुहाल है,
उसका इतना हँस-हँस के बोलना,
मुझसे खतरे की निशानी है,
क्योंकि इस दिवाली उसकी योजना,
जैसे मेरी भरी जेब के पैसो पे—–
एक डिजिटल डाके की तरह है,
मै भाग नही सकता,
इस दिवाली एै “रंग” ससुराल से—–
चाहे जैसे दगाये इनकी मरजी,
मै दामाद इनकी छत पे फटफटाके फट रहे,
इस साल बेमुरौवत———
लंम्बी चटाई के पटाखे की तरह हूँ।
@@@रचयिता—–रंगनाथ द्विवेदी।
जज कालोनी,मियाँपुर
जौनपुर(उत्तर-प्रदेश)।