हामारे देश में पति पत्नी के रिश्ते को सहेजने वाला त्यौहार है करवाचौथ | करवाचौथ एक
व्रत है आस्था का , प्रेम का विश्वास का |
सदियों से स्त्रियाँ विशेषकर भारतीय स्त्रियाँ अपने प्रेम को विभिन्न रूपों में
व्यक्त करती हैं | चाहे वो भोजन के माध्यम से हो , या ऊन से बुने स्वेटर के माध्यम
से हो या देखभाल के माध्यम से | व्रत उपवास भी उसी परंपरा का हिस्सा रहे हैं |
रहे वहां इन बातों का कोई मतलब नहीं है | लेकिन जहाँ वास्तव में आस्था है वहां
तर्क कैसा | कल करवाचौथ का व्रत था | सोशल मीडिया पर जितनी पोस्ट व्रत के पक्ष में
आई उतनी ही विरोध में | कहीं-कहीं परंपरा और बाजारवाद की जंग छिड़ी दिखी | करवाचौथ
पर लगे आरोपों के कारण मुझे इस पर एक विमर्श की आवश्यकता महसूस हुई | रखे गए
तर्कों के आधारपर ही बात की जाए तो …
विचार खुलकर रख रही हैं | मेरे विचार से हर स्त्री को स्वतंत्रता है की वो व्रत करे या
न करे परन्तु व्रत करने वाली स्त्रियों को पति की गुलाम कह देना मुझे उचित नहीं
लगता | पढ़ी लिखी आधुनिक युवा स्त्रियाँ भी स्वेक्षा से व्रत कर रही हैं | यहाँ
परंपरा को निभाने का कोई दवाब नहीं है | स्त्री विमर्श की खूबी यह होनी चाहिए की
हर स्त्री अपनी स्वतंत्रता से निर्णय ले |
क्योंकि न सारे पुरुष एक जैसे हो सकते हैं न सारी
स्त्रियाँ |
परन्तु ऐसा कौन सा त्यौहार है जिस पर बाजारवाद हावी नहीं हैं | पर काफी समय से
इसका निशाना करवाचौथ ही बन रहा है | दीपावली हो , होली या फिर ईद और क्रिसमस
बाजारवाद ने हर जगह पाँव पसार दिए हैं |
है | कई जगहों पर यह घरों में मनाया जाता है | वहां सजने की इतनी परंपरा नहीं है |
कुछ स्थानों पर यह सामूहिक रूप से मनाया
जाता है | वहां श्रृंगार की परंपरा ज्यादा है | यह परंपरा शुरू से थी |
सामूहिक रूप से मानाने से एक तरह से “एक समारोह “ का भाव आता है | वहाँ अच्छे कपडे पहनना व् तैयार हो कर जाना
स्वाभाविक हैं | वैसे अतिशय मेकअप की बात छोड़ दें तो सुरुचिपूर्ण ढंग से तैयार हो
कर कोई पूजा करना हमारी परंपरा का हिस्सा है | जिसमें किसी भी धातु के जेवर पहनना
भी शामिल है | पूजा करते समय धातु पहनने की वजह वैज्ञानिक है | इसी कारण पुरुष भी पहले जेवर पहनते थे | सुहाग के व्रत
में १६ श्रृंगार परंपरा का ही हिस्सा हैं | आधुनिकता का नहीं |
आज जब की पूरा विश्व “ग्लोबल विलेज “ कहलाने लगा है | ये बात कुछ सही नहीं लगती |
देश के कई हिस्सों में रहते हुए मैंने खुद कई ऐसे त्यौहार मनाना शुरू किया | जो
हमारे यहाँ परंपरा से नहीं होते थे | पर उनको मानाने में मुझे ख़ुशी मिलती थी |ख़ुशी
किसी नियम को नहीं मानती | जब आप किसी
दूसरे प्रांत में रह रहे हों और पूरा प्रांत किसी त्यौहार के रंग में रंगा हो तो उस सामूहिक ख़ुशी का हिस्सा बनने में एक अलग ही आनंद है |
करवाचौथ को फिल्मों ने अपनाया है पर असली करवाचौथ
फ़िल्मी नहीं है | सरगी खाने का रिवाज़ भी हर जगह नहीं है | आम भारतीय घरों में कोई
भी त्यौहार हो महिलाओं को रसोई से छुट्टी नहीं मिलती | मात्र ८ , ९ % उच्च वर्ग या
उच्च माध्यम वर्ग की महिलाओं को हम समस्त भारतीय महिलाओं का प्रतिनिधि नहीं मान
सकते | फिल्मों की बात पर हिलेरी क्लिंटन का एक वक्तव्य याद आता है | फिल्में किसी
भी देश की सही छवि नहीं व्यक्त करती |फिल्मों की माने तो अमेरिकी कपडे ही नहीं पहनते
व् भारतीय खाना ही नहीं खा पाते |
के फ़कीर बने रहने चाहते हैं
जरूरी ये नहीं की हर परंपरा को तोड़ दिया जाए | जरूरी ये है की
कुछ सुधार हो ताकि परंपरा भी बची रहे व्
नया संतुलित समाज भी विकसित हो | करवाचौथ उस दिशा में उठाया गया पहला कदम है |
जहाँ कई पति भी पत्नियों के लिए व्रत रख रहे हैं | जो व्रत नहीं रख पाते वो दिन भर
पत्नियों का ध्यान रख कर उन्हें स्पेशल फील कराते हैं |
त्यौहार की संज्ञा भी दे रहे हैं | मैंने पहले भी इस पर एक लेख “रात इंतज़ार चलनी और
चाँद “ लिखा था | ये सच है है की रात , चाँद और चलनी एक अनोखा समां बाँध देते हैं
| परन्तु पहले इसमें रोमांटिक तत्व नहीं थे | ये विशुद्ध पूजा के रूप में ही था |
आज अगर नयी पीढ़ी ने इसमें रोमांस ढूंढ निकाला है तो इसमें हर्ज ही क्या है ?
आखिरकार पति – पत्नी का रिश्ते में रोमांस की अहम् भूमिका है | करवाचौथ वाले दिन
जब इसे बड़ों की स्वीकृति व् आशीर्वाद भी प्राप्त हो तो प्रेम की इस अभिव्यक्ति से
परहेज कैसा | इस अभिव्यक्ति से दोनों उस प्रेम का अहसास करते हैं जो वर्ष भर की
जिम्मेदारियों में कहीं खो सा जाता है | या यूँ कहें की एक रिश्ता फिर से खिल जाता
है |
जहाँ पति – पत्नी के प्रेम को पह्चान रहा है , तवज्जो दे रहा है | यूँ भी पति –
पत्नी एक दूसरे को बिना मांगे देते ही रहते हैं | यही इस इस रिश्ते की खूबी है |परन्तु
कुछ ख़ास उपहार पत्नी कोअपने पति के जीवन में ख़ास होने के अहसास से भर देते हैं | कितने
घरों की स्त्रियाँ है जो स्वयं
गिफ्ट मांगती हैं | शायद उनकी संख्या अँगुलियों पर गिनी जा सके जो प्रेम और व्रत के
बदले गिफ्ट मांगती हों | ये पहल पुरुषों की तरफ से शुरू की गयी है | जो एक शुभ
संकेत हैं |
आज बदलती
जीवन शैली में जहाँ पति – पत्नी के लिए एक दूसरे के लिए समय निकालना बहुत मुश्किल
हो रहा है | वहाँ ये त्यौहार अपने रिश्तों
को फिर से मजबूत करने का अवसर देते हैं | समय की मांग है की रिश्ते वही मजबूत होते
हैं जहाँ एक दूसरे को स्पेशल फील कराया जाए | इस दिशा में करवाचौथ एक पहल है |
जहाँ परंपरा के साथ आधुनिकता को ख़ूबसूरती से बुना जा रहा है | ये फ़िल्मी नहीं है |
इसकी जडें गहरी हैं | मुझे कोई कारण नहीं लगता की एक दिन ये आउट डेटेड हो जाएगा |
मुझे
आशा है इस त्यौहार और पति – पत्नी के प्यार के दीर्घायु होने की
वंदना बाजपेयी
फोटो क्रेडिट –आजतक से साभार
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रिश्ते वहीं मजबूत होते हैं जहाँ एक दूसरे को स्पेशल फील कराया जाए। बिल्कुल सही कहा आपने की इस दिशा में करवा चौथ एक सही पहल हैं। सुंदर प्रस्तुति।
धन्यवाद ज्योति जी
बहुत सुंदर सटीक व सारगर्भित लेख
धन्यवाद