बच्चे हमारी पूरी दुनिया होते हैं | पर बच्चों की उससे अलग एक छोटी सी दुनिया होती है | कोमल सी , मासूम सी | उनमें एक कौतुहल होता है और ढेर सारी जिज्ञासाएं | हर बात पर उनके प्रश्न होते है | और हर प्रश्न के लिए उन्हें उत्तर चाहिए | मिल गया तो ठीक नहीं तो वो हर चीज को अपने तरीके से समझने की कोशिश करते हैं | बच्चे भले ही छोटे हों पर उनके मन को समझना बच्चों का खेल नहीं है | आज उनके हम उनके मनोविज्ञान को समझने की कोशिश करते हुए आप के लिए लाये हैं पांच लघुकथाएं …
पढ़िए बाल मनोविज्ञान पर पाँच लघु कथाएँ
चिंमटा
नन्हा रिंकू खेलने में मगन है | आज वो माँ रेवती के साथ किचन में ही खेल रहा है | घर की सारी कटोरियाँ उसने ले रखी हैं | एक कटोरी का पानी दूसरे में दूसरी का तीसरे में … बड़ा मजा आ रहा है उसको इस खेल में | तभी उसका ध्यान चिमटे की ओर चला जाता है | वो झट से चिंमटा उठा कर बजाने लगता है …टिंग , टिंग ,टिंग | रेवती उसे मना करती है ,” बेटा चिमटा मत बजाओ | पर रिंकू कहाँ मानने वाला है |
खेल चल रहा है … टिंग टिंग , टिंग
रेवती :मत बजाओ , रखो उसे
रिंकू :टिंग , टिंग , टिंग
माँ चिंमटा छींनते हुए कहती है ,”नहीं , बजाते चिमटा ,पता है चिंमटा बजाने से घर में कलह होने लगती है |
रिंकू रोने लगता है |
तभी रिकू के पापा सोमेश फाइलों से सर उठा कर कहते हैं ,”दे दो चिमटा | मुझे ये फ़ाइल कल ही जमा करनी है | इसकी पे पे से तो चिमटे की टिंग , टिंग भली
रेवती ; ऐसे कैसे दे दूँ | चिंमटा बजाने से घर में कलह होने लगती है |
सोमेश :क्या दकियानूसी बात है |
रेवती : दकियानूसी नहीं , पुरखों से चली आ रही है |ऋषि – मुनि कह गए हैं |
सोमेश : सब अन्धविश्वास है | कम से कम मेरे बेटे को तो अन्धविश्वास मत सिखाओ
रेवती : (आँखों में आँसूं भर कर )मुझे ही कहोगे | जब तुम्हारी माँ कहती हैं की चावल तीन बार मत धो , नहीं तो वो भगवान् के हो जाते हैं खा नहीं सकते | तब कहते हो मानने में क्या हर्ज है माँ कह रहीं है तो जरूर ही सच होगा | फिर उनका इतना मन तो रख सकते हैं | आज मैं अपने बेटे से इतना भी नहीं कह सकती |
सोमेश : (आवेश में ) देखो माँ को बीच में मत लाओ
रेवती : क्यों न लाऊ | जो तुम्हारी माँ कहे वो संस्कार , जो मैं कहूँ वो पोंगा पंथी
सोमेश : अच्छा, और तुम्हारी माँ तो …..
रिंकू सहम कर चिंमटा एक तरफ रख देता है | उसे पता चल गया है कि चिंमटा बजाने से घर में कलह होती है |
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क़ानून
सरला जी ने दरवाजा खोला
… ये क्या …. उनका ४ वर्षीय बेटा चिंटू आँखों में आँसू लिए खड़ा है ।
क्या हुआ बेटा … सरला जी ने
अधीरता से पूंछा ।
मम्मी आज मैं ड्राइंग की कॉपी
नहीं ले गया था, इसलिए मैम ने चांटा मार दिया ।
सरला जी का पारा सातवें आसमान पर पहुँच गया । गुस्से मैं बोलीं … ये कैसी औरत है , तुम्हारी टीचर क्या उसे बच्चों
के कानून के बारे में पता नहीं है । चलो मेरे साथ मैं आज ही उस को कानून बताउंगी ।
तमतमाती हुई सरला जी चिंटू को
साथ ले स्कूल पहुंची ।
प्रिंसिपल के पास जाकर शिकायत
की और उन्हें बच्चों के कानून का वास्ता दिया ।
प्रिंसिपल ने तुरंत टीचर को
बुलाकर ताकीद दी कि छोटे बच्चों को बिलकुल न मारा जाये ये कानून है ।
ख़ुशी ख़ुशी चिंटू अपनी मम्मी
के साथ घर आ गया । खेलते खेलते उसने ड्रेसिंग टेबल की अलमारी खोल ली । रंग बिरंगी
लिपस्टिक देखकर उसका मन खुश हो गया । कुछ दीवार पर पोत दी कुछ मुँह पर लगा ली और
कुछ सहज भाव से तोड़ दी ।
सरला जी वहां आयीं और ये नज़ारा देखकर उन्होंने आव
देखा न ताव … चट चट ३-४ तमाचे चिंटू के गाल पर जमा दिए और कोने में खड़े होने की
सजा दे दी ।
कोने में चिंटू खड़ा सोंच रहा
है …..
क्या घर में छोटे बच्चों को
मारने से रोकने के लिए कोई कानून नहीं है ।
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आत्मा
दादी सुमित्रा देवी ने सोंचा कि आज छुट्टी का दिन है …. पोते की छुट्टी है तो चलो उसे ले चलते हैं, आखिर संस्कार भी तो सिखाने हैं ।
‘दादी दूसरा बताशा दे दो ये गिर गया है …. गन्दा हो गया है | ‘ सुधीर दादी का पल्ला खींचते हुए बोला ।
बाल मनोविज्ञान पर पाँच लघु कथाएँ
मेरा बेटा सीढियों से यही
चिल्लाता हुआ आया । आज किसी प्रबुद्ध महिला
से ‘औरतों का शोषण ‘ विषय पर विचार जानने का होमवर्क
मिला है । आज शाम को मैं सामने वाली नीतू
आंटी के घर जाकर उनसे इस विषय में विचार ले
लूँगा ।
मैं उसकी बात सुनकर चुपचाप
मुस्करा दी । पर मेरे दिल में कुछ खलबली सी
होने लगी । खाना खिलाते समय मैंने उससे
पूंछा ‘ बेटा तुम सामने वाली आंटी के
पास ही क्यों जाओगे … मैं उच्च शिक्षित हूँ सदैव मैंने अच्छे
नंबरों से ही डिग्री हांसिल की है ।
और तो और मैं तुम्हारी लिखने
में भी मदद कर सकती हूँ । नीतू आंटी मुझसे ज्यादा शिक्षित तो नहीं हैं ‘। शायद मेरा अहंकार नीतू का अपने
बेटे की नज़र मैं अपने से ज्यादा योग्य व शिक्षित पाने की बात को पचा नहीं पा रहा था । बेटे ने बड़ी बड़ी ऑंखें करके
मेरी ओर देखा ‘मम्मी प्रबुद्ध महिला के विचार
चाहिए ‘।
हूँ मैंने सीधे सीधे प्रश्न किया । ओफ्फो मम्मी । आप तो कुछ
समझती नहीं हैं । आप तो साडी पहनती हैं चूड़ी
बिंदी सारे रीति रिवाज़ फालो करती हैं । नीतू आंटी को देखो वो जींस पहनती हैं …
न पूजा न कोई रिवाज़ … वो प्रबुद्ध महिला हैं आप नहीं ।
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पूरी क्लास शांति से सुन रही है | टीचर दास गुप्ता बच्चों को सुकरात की कहानी सुना रही हैं | बच्चों ,सुकरात के शिष्यों ने उनसे आखिरी उपदेश देने को कहा | उसी समय सुकरात को जहर का प्याला दिया गया |
सुकरात ने प्याला उठाया और कहा ,” आई एम स्टिल अलाइव | फिर उन्होंने प्याला मुंह के पास किया और कहा ,” आई एम स्टिल अलाइव | फिर प्याला होठों से लगा कर कहा ,” आई एम स्टील अलाइव और ये कहते हुए उनकी गर्दन लुढक गयी |बट ही इज स्टिल एलाइव |
बच्चो जो लोग किसी उद्देश्य के लिए प्राण देते हैं वो कभी नहीं मरते वो मर कर भी अमर हो जाते हैं |
पूरी क्लास में तालियों की गडगड़ाहट गूँज गयी |
जब तालियाँ रुकी तो किसी के सिसकने की आवाज़ आई | सबने देखा ,पीछे की सीट पर बैठी अनन्या रो रही है |
मैडम दास गुप्ता ने उसे अपने पास बुलाया और रोने का कारण पूंछा |
अनन्या सुबकते हुए बोली ,” मैंम ये कहानी पूरी तरह से सच नहीं है |
क्यों ?मैंम ने आश्चर्य से पूंछा |
अनन्या : मैं मेरे पापा सेना में थे | देश के लिए लड़ते हुए उन्होंने जान दी | पूरे देश तो क्या पूरे स्कूल को भी नहीं पता कि मैं” शहीद प्रताप सिंह” की बेटी हूँ | मैं जो लोग पहले से प्रसिद्ध होते हैं वो अमर होते हैं | जो पहले से प्रसिद्ध नहीं होते वो अमर नहीं होते |वो बस एक संख्या बन जाते हैं | जैसे कारगिल में 500 जवान शहीद हुए |
ये अंतर क्यों है मैम |
दास गुप्ता मैं के पास कोई जवाब नहीं था | अनन्या वापस अपनी सीट पर जाने लगी | तभी सारी क्लास उठ कर उसे सैल्यूट करने लगी |
शायद ये उस अंतर को कम करने का उन बच्चों का एक छोटा सा प्रयास है |
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वंदना बाजपेयी
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सभी कहानियाँ बहुत सुन्दर और शिक्षाप्रद हैं…
बहुत सुन्दर….
सभी कहानी बहुत अच्छी और सोचने पर मजबूर करती है ।
बहुत सुन्दर! मुझे तो ये बड़ों के मनोविज्ञान को छूता ज्यादा नज़र आ रहा है!
बहुत अच्छी सीख, बच्चों की पल पल सीखने की भावनाओं की सहजता पूर्ण शब्दों के सही समय पर समझना चाहिए।